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लैंडफिल साइट बनने से पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान, उच्चस्तरीय तकनीक का होगा इस्तेमाल

बिजली निर्माण के बाद 20 से 30 फीसद वेस्ट बचता है, जो नुकसानदायक नहीं होता है। इसे ही नई लैंडफिल साइट पर भेजने की योजना है। लैंडफिल साइट का निर्माण उच्चस्तरीय तकनीक पर होना है, ताकि इसका सीपेज जमीन के अंदर नहीं जाए।

By Edited By: Published: Mon, 21 May 2018 10:12 PM (IST)Updated: Tue, 22 May 2018 08:39 PM (IST)
लैंडफिल साइट बनने से पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान, उच्चस्तरीय तकनीक का होगा इस्तेमाल
लैंडफिल साइट बनने से पर्यावरण को नहीं होगा नुकसान, उच्चस्तरीय तकनीक का होगा इस्तेमाल

नई दिल्ली [सुधीर कुमार]। सोनिया विहार और घोंडा गुजरान में प्रस्तावित लैंडफिल साइट को लेकर भले ही विरोध हो रहा हो, लेकिन पूर्वी निगम के आयुक्त डॉ. रणबीर सिंह दोनों ही जगहों को लैंडफिल साइट के लिए उपयुक्त बताते हैं। उनका कहना है कि इन दोनों साइटों पर कचरे का पहाड़ नहीं बनेगा, बल्कि यहां सिर्फ कचरे से बिजली बनाने के संयंत्र से निकली राख पहुंचेगी। फिर इस राख का भी इस्तेमाल किया जाएगा। इसके अलावा रिसाइकलिंग यूनिट भी बनाई जाएगी। इससे पर्यावरण को कोई नुकसान नहीं पहुंचेगा।

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बिजली निर्माण के बाद 20 से 30 फीसद वेस्ट बचता है

दैनिक जागरण से विशेष बातचीत में उन्होंने बताया कि पूर्वी दिल्ली से रोजाना करीब 2600 मीट्रिक टन कूड़ा निकलता है। इनमें 1300 मीट्रिक टन गाजीपुर वेस्ट टू एनर्जी प्लांट में जाता है। इस प्लांट में 2500 मीट्रिक टन कचरे का इस्तेमाल होना है, जिस पर काम चल रहा और 30 नवंबर तक लक्ष्य प्राप्त कर लिया जाएगा। बिजली निर्माण के बाद 20 से 30 फीसद वेस्ट बचता है, जो नुकसानदायक नहीं होता है। इसे ही नई लैंडफिल साइट पर भेजने की योजना है। इस वेस्ट से भी ईंटे बनाई जाएंगी और अन्य उपयोग किया जाएगा।

उच्चस्तरीय तकनीक पर होगा लैंडफिल साइट का निर्माण

डॉ. रणबीर सिंह ने बताया कि लैंडफिल साइट का निर्माण उच्चस्तरीय तकनीक पर होना है, ताकि इसका सीपेज जमीन के अंदर नहीं जाए। यहां रिसाइकलिंग यूनिट भी बनाई जाएगी और बिजली, गैस उत्पादन के उपकरण भी लगेंगे। इस प्लांट का निर्माण इस तरह किया जाएगा, ताकि बाढ़ आने पर भी न तो प्लांट को और न ही यमुना के पानी को नुकसान होगा। घोंडा गुजरान में जो प्रस्तावित साइट है, वह नदी किनारे से करीब डेढ़ किलोमीटर और सोनिया विहार की साइट करीब ढाई किलोमीटर दूर है।

गाजीपुर में बन रही है खतरनाक स्थिति

आयुक्त कहते हैं कि पूर्वी दिल्ली का एकमात्र लैंडफिल साइट 1984 में बना था और इसकी अधिकतम 25 मीटर ऊंचाई की क्षमता 2002 में पूरी हो गई। तब से लैंडफिल साइट की जगह तलाशी जा रही है। वर्तमान में इसकी ऊंचाई 62 मीटर तक पहुंच गई है। पिछले वर्ष एक सितंबर को कचरे का पहाड़ गिरने से दो लोगों की मौत के बाद उपराज्यपाल ने यहां कचरा डालने पर रोक लगा दी। विकल्प के तौर पर रानी खेड़ा में जगह दी गई, लेकिन वहां विरोध की वजह से साइट नहीं बनी। इसलिए गाजीपुर में ही कूड़ा डाला जा रहा है, जिससे खतरनाक स्थिति बनती जा रही है।

एनजीटी ने कहा था, वैज्ञानिक सोच के आधार पर बनाएं साइट

आयुक्त ने बताया कि डीडीए ने घोंडा गुजरान में 50 एकड़ व सोनिया विहार में 80 एकड़ जगह लैंडफिल साइट के लिए दी। एनजीटी ने इस मामले को लेकर बड़ी बैठक बुलाई थी, जिसमें तीनों निगमों के आयुक्त, मुख्य सचिव, प्रदूषण विभाग सहित अन्य विभागों के अधिकारी व प्रतिनिधि शामिल हुए थे। एनजीटी ने स्पष्ट किया था कि इमोशनल व पॉलीटिकल आधार पर नहीं, बल्कि वैज्ञानिक सोच के आधार पर लैंडफिल साइट का निर्माण होना चाहिए। इसी वजह से एनजीटी ने केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) से रिपोर्ट मांगी थी। सीपीसीबी ने स्वतंत्र एजेंसी नेशनल एनवायरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) से रिपोर्ट तैयार करवाई, जिसे उचित बताया गया। सीपीसीबी ने एनजीटी में शपथ पत्र दाखिल कर उपरोक्त जानकारी भी दी है।

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