पाकिस्तानियों के खिलाफ चलाया तहस-नहस अभियान, हथगोलों से उड़ा दी थी दुश्मन की बटालियन
पलटन ने दुश्मनों पर आक्रमण किया तो लालचंद आगे बढ़ते हुए एक के बाद एक हथगोले फेंकने लगे। दुश्मन की बटालियन साफ होने लगी।
नारनौल [सुभाष दूरदर्शी]। गांव उनींदा निवासी शहीद लालचंद 1965 में भारत-पाक युद्ध में अपना अदम्य साहस दिखाते हुए देश के लिए कुर्बान हो गए थे। उन्होंने अपने रणकौशल से दुश्मनों के दांत खट्टे कर दिए थे। 52 पर्वतीय रेजीमेंट (संजोई मीरपुर) में गनर लालचंद में देशभक्ति कूट-कूट कर भरी हुई थी। वीरता व दुश्मनों को तहस-नहस कर देने वाली गोलीबारी के कारण उन्हें 'संजोई मीरपुर' युद्ध सम्मान दिया गया।
दुश्मनों के खिलाफ चला तहस-नहस अभियान
एक सितंबर 1965 को जब लालचंद की पलटन ने दुश्मनों पर आक्रमण किया तो लालचंद आगे बढ़ते हुए एक के बाद एक हथगोले फेंकने लगे। दुश्मन की बटालियन साफ होने लगी, लेकिन इसी दौरान पाकिस्तानी सैनिक की एक गोली लालचंद के सीने में लगी। इस तहस-नहस अभियान से दुश्मन पर तो जीत हासिल कर ली, लेकिन गोली लगने के बाद अधिक खून बहने की वजह से जांबाज लालचंद ने देश पर हसंते-हंसते शहादत दे दी। आज भी उन्हें याद करने पर लोगों का सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है।
देश के काम आएं बेटे
14 जनवरी 1945 में गांव उनींदा में रिछपाल के घर जन्मे पांचों बच्चे बनवारी लाल, रघुवीर, लालचंद, धर्मपाल व अतर सिंह आगे चलकर सेना में भर्ती हुए। मेजर बनवारी लाल व रघुवीर ने 1962 में चीन व 1965 में भारत-पाक दोनों लड़ाइयां लड़ीं। पिता रिछपाल चाहते थे कि उनके बेटे देश के काम आएं।