पहले बढ़ गया बीपी, फिर झूम उठा परिवार
मुकाबले के दौरान एक वक्त ऐसा आया जब स्वर्ण पदक जीतने वाले चीन के शूटर और लक्ष्य बराबर अंकों पर आए गए थे। उस समय उनका बीपी हाई हो गया था।
फरीदाबाद (अभिषेक शर्मा)। चार साल पहले शूटिंग के बेहतर अभ्यास के लिए जींद से औद्योगिक नगरी में रहने आए हरियाणा के छोरे लक्ष्य श्योराण को एशियाई खेलों में लक्ष्य साधते देख एक बार तो धुरंधर निशानेबाज की मां प्रोमिला का बीपी बढ़ गया था और अफरा-तफरी मच गई, लेकिन परिजनों व पड़ोसियों ने हौसला देकर स्थिति सामान्य की और जब बेटा रजत पदक जीत गया, तो सेक्टर-48 की व्यूलेक सोसायटी में ढोल बजने लगे और सभी झूमने नाचने लगे।
जकार्ता में चल रहे एशियन गेम्स में रजत पदक जीतने वाले ट्रैप शूटर लक्ष्य की मां प्रोमिला टीवी पर अपने बेटे का मुकाबला देख रहीं थी। मुकाबले के दौरान एक वक्त ऐसा आया जब स्वर्ण पदक जीतने वाले चीन के शूटर और लक्ष्य बराबर अंकों पर आए गए थे। उस समय उनका बीपी हाई हो गया था। उस घर पर बेटी यशस्वी, देवर का बेटा कार्तिक और सुरेंदर मौजूद थे।
उन्होंने पानी पिलाकर बीपी को सामान्य किया। लक्ष्य के रजत पर निशाना लगाने के साथ ही पूरा परिवार झूम उठा। अब लक्ष्य के सेक्टर-48 स्थित लेक व्यू सोसायटी में निवास स्थान पर त्योहार का माहौल है। घर पर बधाई देने वालों का ताता लगा हुआ है। वह घर पर बधाई देने के लिए आने वाले लोगों का मुंह मीठा कराने वालों को ढोल की थाप पर नचवा कर स्वागत कर रहीं थी।
प्रोमिला सिंह ने बताया कि वह जींद में शूटिंग रेंज नहीं होने और सेक्टर-48 से दिल्ली शूटिंग रेंज की दूरी कम होने की वजह से लेक व्यू सोसायटी में आशियाना बनाया। उन्हें सुबह से ही लक्ष्य के इवेंट का बेसब्री से इंतजार था, लेकिन मुकाबला शाम हुआ।
प्रोमिला ने बताया कि पदक जीतने के बाद लक्ष्य से फोन पर बात हुई थी। वह काफी खुश था। आज का दिन उसके लिए यादगार दिन है, जब देश को उसकी वजह से गौरवान्वित होने का मौका मिल रहा है। लक्ष्य की छोटी बहन यशस्वी अगले साल से शूटिंग सीखने के लिए जाएगी।
लक्ष्य के पिता सोमवीर सिंह पहलवान रहे हैं और 20 साल पहले भारत कुमार रहे हैं, पर बेटे लक्ष्य ने बचपन में निशानेबाज खेलमंत्री राज्यवर्धन सिंह राठौर द्वारा ट्रैप शूटिंग में ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने के बाद निशानेबाजी में ही अभ्यास शुरू किया।
पड़ोसी बनाकर खिलाती थी रोटियां
प्रोमिला ने अपने बेटे लक्ष्य की जीत का श्रेय पड़ोस में रहने वाली बबीता को भी दिया। चार साल पूर्व वह अकेले यहां पर रहता था। उस समय लक्ष्य का खाना बनाना नहीं आता था। उस समय बबीता ने लक्ष्य को खाना बनाकर खिलाया।