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जानिए किन वजहों से राजधानी के बड़े अस्पतालों में पेसमेकर का दोबारा नहीं हो पा रहा इस्तेमाल, गरीब मरीजों की जान बचाने में था सहायक

डाक्टर बताते हैं कि दिल की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के दोबारा इस्तेमाल के मामले पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने कुछ साल पहले एक कमेटी गठित की थी लेकिन यह कमेटी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Wed, 04 May 2022 12:29 PM (IST)Updated: Wed, 04 May 2022 02:46 PM (IST)
जानिए किन वजहों से राजधानी के बड़े अस्पतालों में पेसमेकर का दोबारा नहीं हो पा रहा इस्तेमाल, गरीब मरीजों की जान बचाने में था सहायक
चिकित्सा शिविरों में अब भी गरीब मरीजों को लगाए जाते हैं इस्तेमाल किए हुए पेसमेकर

नई दिल्ली, राज्य ब्यूरो। राजधानी के बड़े अस्पतालों में अब पेसमेकर का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता। डाक्टर कहते हैं कि किसी मरीज की मौत के बाद दान में मिले पेसमेकर को संक्रमण मुक्त करके दोबारा इस्तेमाल संभव है। इससे गरीब मरीजों की जान बचाई जा सकती है, लेकिन कानूनी विवाद के डर व स्पष्ट दिशानिर्देश के अभाव के कारण अस्पतालों में पेसमेकर का दोबारा इस्तेमाल बंद कर दिया गया है।

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हालांकि, अब भी कई चिकित्सा शिविरों में इस तरह के ही पेसमेकर गरीब मरीजों को निशुल्क लगाए जाते हैं। पहले गंगाराम, एम्स सहित कई अस्पतालों में पेसमेकर का दोबारा इस्तेमाल होता था। कानूनी अड़चनें बढ़ने के कारण इसे बंद कर दिया गया है। दक्षिणी दिल्ली में स्थित निजी क्षेत्र के अस्पताल में कैंप करके गरीब मरीजों को इस तरह के पेसमेकर लगाए जाते थे। डाक्टर बताते हैं कि दिल की बीमारियों के इलाज में इस्तेमाल होने वाले उपकरणों के दोबारा इस्तेमाल के मामले पर भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आइसीएमआर) ने कुछ साल पहले एक कमेटी गठित की थी, लेकिन यह कमेटी किसी नतीजे पर नहीं पहुंच पाई।

एम्स में भी बहुत पहले एक कमेटी बनी थी। इन तमाम प्रयासों के बावजूद कोई दिशानिर्देश तैयार नहीं हो सका। डाक्टर बताते हैं कि अमेरिका सहित कई विकसित देशों में लोग पेसमेकर दान करते हैं, जिसका कई विकासशील देशों में इस्तेमाल होता है।एम्स के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. संदीप मिश्रा ने कहा कि दो तरह के मेडिकल उपकरण होते हैं। एक जो शरीर के बाहर होते हैं। ऐसे उपकरणों का कभी-कभी इस्तेमाल हो सकता है, लेकिन जो उपकरण शरीर के अंदर लगाए जाते हैं।

उसे दोबारा दूसरे मरीज में नहीं लगाया जा सकता है। पेसमेकर का दोबारा इस्तेमाल नैतिक रूप से विवाद और चर्चा का विषय है। जिन मरीजों को पैसे की बहुत दिक्कत होती है, उन्हें पेसमेकर स्ट्रलाइज करके दोबारा कहीं-कहीं निशुल्क लगाया जाता है। अच्छी बैटरी का पेसमेकर औसतन 10 से 12 साल तक अच्छा कार्य करता है।

पैकेट पर लिखा होता है सिंगल यूज डिवाइस

एम्स के कार्डियोलाजी विभाग के प्रोफेसर डा. अंबुज राय ने बताया कि पेसमेकर के पैकेट पर सिंगल यूज डिवाइस लिखा होता है। इसके दोबारा इस्तेमाल का प्रविधान नहीं है, लेकिन ठीक से स्ट्रलाइज करके पेसमेकर दोबारा लगाने में खास दिक्कत नहीं है। भारत जैसे देश में इसका प्रविधान होना भी चाहिए। बीएलके अस्पताल के कार्डियोलाजी विभाग के चेयरमैन डा. सुभाष चंद्रा ने कहा कि पेसमेकर जीवन रक्षक उपकरण होते हैं। ज्यादातर अधिक उम्र के लोगों व बुजुर्गो को यह लगाया जाता है।

यदि पेसमेकर ठीक से संक्रमण मुक्त कर लिया जाए तो जो लोग इलाज का खर्च नहीं उठा सकते, उन्हें यह लगाकर जान बचाई जा सकती है, लेकिन मरीज की सहमति होनी चाहिए। स्वदेशी पेसमेकर की कीमत 40 हजार है। बहुत मरीज यह खर्च भी नहीं उठा सकते। इसलिए सरकार को स्पष्ट दिशानिर्देश बनाना चाहिए, लेकिन आदर्श स्थिति यही है कि दोबारा इस्तेमाल न हो।

सरकार का यह निर्देश है कि सीजीएचएस (केंद्र सरकार स्वास्थ्य योजना) मरीजों में किसी उपकरण का दोबारा इस्तेमाल नहीं होना चाहिए। फोर्टिस एस्कॉ‌र्ट्स हार्ट इंस्टीट्यूट के कार्डियोलाजी के निदेशक डा. निशिथ चंद्रा ने कहा कि पेसमेकर के दोबारा इस्तेमाल से मरीज को संक्रमण का खतरा होता है। इसलिए अस्पताल में पेसमेकर का दोबारा इस्तेमाल नहीं होता। कुछ सरकारी अस्पतालों में दोबारा इस्तेमाल होता है। इसमें कोई बुराई भी नहीं है। पेसमेकर की नई कंपनियों की तरफ से जीवनभर के लिए गारंटी होती है।

यदि 10 से 12 साल बाद भी किसी कारण मशीन खराब होती है तो कंपनियां निशुल्क नई मशीन उपलब्ध कराती हैं। इस तरह की सुविधा पेसमेकर के दोबारा इस्तेमाल में नहीं मिल पाती। गंगाराम अस्पताल के कार्डियोलाजी के विशेषज्ञ डा. अमल मखिजा ने कहा कि पहले कभी गरीब परिवार के मरीजों में दोबारा इस्तेमाल करते थे, लेकिन अब नहीं किया जाता है क्योंकि संक्रमण होने का खतरा अधिक होता है।


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