जानिए क्यों बढ़ रही है दिल्ली में सांस के मरीजों की संख्या, 4 एजेंसियों के सर्वे में जानकारी आई सामने
दिल्ली एनसीआर सहित देश भर में श्वास की बीमारी के विस्तार में वायु प्रदूषण प्रमुख कारक के रूप में सामने आ रहा रहा है। आलम यह है कि पिछले 20 साल में श्वसन रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है।
संजीव गुप्ता, नई दिल्ली। दिल्ली एनसीआर सहित देश भर में श्वास की बीमारी के विस्तार में वायु प्रदूषण प्रमुख कारक के रूप में सामने आ रहा रहा है। आलम यह है कि पिछले 20 साल में श्वसन रोगियों की संख्या दोगुनी हो गई है। इनमें 68 फीसद रोगी ऐसी जगहों पर काम करते हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर सामान्य से कहीं ज्यादा रहता है।
यह तथ्य सामने आए हैं उस ताजा शोध में जो स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय के स्वास्थ्य अनुसंधान विभाग, यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज, दिल्ली विश्वविद्यालय, नेशनल एनवॉयरमेंटल इंजीनियरिंग रिसर्च इंस्टीट्यूट (नीरी) और दिल्ली विश्वविद्यालय के पर्यावरणीय विज्ञान विभाग के परस्पर सहयोग से हाल ही में किया गया है। शोध का उद्देश्य राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली (एनसीटी) पर क्रॉनिक ऑब्स्ट्रक्टिव पल्मोनरी डिजिजेस सीओपीडी के बोझ का आंकलन करना, इसके स्थानिक महामारी विज्ञान को समझना, एनसीटी में (सीओपीडी) के जोखिम वाले कारकों का आंकलन करना और दिल्ली वासियों के बीच वायु प्रदूषण के लिहाज से व्यक्तिगत जोखिम का अंदाजा लगाना है।
पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाली गैर सरकारी संस्था क्लाइमेट ट्रेंड्स ने इस शोध पर चर्चा के ही लिए शनिवार को एक वेबिनार भी आयोजित किया। यूनिवर्सिटी कॉलेज ऑफ मेडिकल साइंसेज के डायरेक्टर-प्रोफेसर डॉक्टर अरुण शर्मा बताते हैं कि सीओपीडी और ब्रोन्कियल अस्थमा सांस से जुड़ी सबसे आम बीमारियां हैं। वर्ष 2015 में सीओपीडी की वजह से 104.7 मिलियन पुरुष और 69.7 मिलियन महिलाएं प्रभावित हुईं। वहीं, वर्ष 1990 से 2015 तक सीओपीडी के फैलाव में भी 44.2 फीसद की वृद्धि हुई है। वर्ष 2017 में सीओपीडी की वजह से पूरी दुनिया में 32 लाख लोगों की मौत हुई और यह मौतों का तीसरा सबसे सामान्य कारण रहा।
भारत में इसके आर्थिक प्रभावों पर गौर करें तो वर्ष 1990 में 28.1 मिलियन मामले थे जो 2016 में 55.3 दर्ज किए गए। शोध के मुताबिक पिछले कुछ अर्से में वायु प्रदूषण सबसे उल्लेखनीय जोखिम कारक के तौर पर उभरा है। वायु प्रदूषण सीओपीडी के तीव्र प्रसार के लिए जिम्मेदार है। सीओपीडी का जोखिम पैदा करने वाले कारकों में धूम्रपान को सबसे आम कारक माना गया है। तीन अरब लोग बायोमास ईंधन जलाने से निकलने वाले धुएं जबकि 1.01 अरब लोग तंबाकू के धुएं के संपर्कमें आते हैं। इसके अलावा वातावरणीय वायु प्रदूषण, घरों के अंदर प्रदूषण, फसलों एवं खदान से निकलने वाली धूल और सांस संबंधी गंभीर संक्रमण भी सीओपीडी के प्रमुख जोखिम कारक हैं।
डॉक्टर शर्मा के मुताबिक सीओपीडी का सीधा संबंध वायु प्रदूषण से है। सीओपीडी के 68 फीसद मरीज ऐसे स्थलों पर काम करते हैं जहां वायु प्रदूषण का स्तर ज्यादा है। 45 फीसद मरीज ऐसे क्षेत्रों में काम करते हैं, जहां वायु प्रदूषण का स्तर खतरनाक श्रेणी में आता है। इसके अलावा 70 फीसद मरीजों ने बताया कि वे धूल की अधिकता वाले इलाकों में काम करते हैं। 64 फीसद मरीज बताते हैं कि वे धूम्रपान नहीं करते जबकि धूम्रपान करने वाले मरीजों का फीसद केवल 17.5 है।
जाहिर है कि लोगों पर अप्रत्यक्ष धूम्रपान का असर कहीं ज्यादा हो रहा है। नीरी के निदेशक डॉक्टर राकेश कुमार ने कहा कि दिल्ली में केरोसीन से लेकर कूड़े और गोबर के उपलों तक छह-सात तरीके के ईंधन का इस्तेमाल होता है। इनसे निकलने वाला प्रदूषण भी अलग-अलग होता है। आउटडोर के साथ इंडोर भी उतना ही अहम है। मच्छर भगाने वाली अगरबत्ती में भी हैवी मेटल्स होते हैं।
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