Inside Story: चुनाव में नहीं दिखेगा ओलंपियन सुशील कुमार का दांव
दुनियाभर के दिग्गज पहलवानों को कुछ मिनटों में चित कर देने वाले ओलंपियन सुशील कुमार अपनी राजनीतिक पारी की शुरुआत में ही धोबी पछाड़ खाकर किनारे हो गए।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दिल्ली के सियासी अखाड़े में ओलंपियन सुशील कुमार का दांव नहीं दिखेगा। हालांकि, उनका टिकट कटा नहीं है बल्कि सरकारी नौकर होने के कारण उन्होंने खुद ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया। अब यह बात अलग है कि इस इनकार के पीछे कई अपुष्ट सूचनाएं भी सामने आ रही हैं।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पश्चिमी दिल्ली सीट से सुशील कुमार के नाम का प्रस्ताव 11 अप्रैल को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआइसीसी) की केंद्रीय चुनाव समिति (सीईसी) की बैठक में स्वयं पार्टी अध्यक्ष राहुल गांधी ने रखा था हालांकि, प्रदेश कांग्रेस प्रभारी पीसी चाको ने आलाकमान को जो सूची भेजी उसमें पूर्वांचल मतदाताओं का बड़ा समीकरण पेश करते हुए उन्होंने इस सीट से महाबल मिश्रा का ही नाम रखा,लेकिन आलाकमान चाको के तर्क से सहमत नहीं हुए।
शनिवार सुबह उन्होंने जिस सूची पर हस्ताक्षर किए और जो रविवार को घोषित होनी थी, उसमें उन्होेंने पश्चिमी दिल्ली सीट से महाबल का नाम काटकर खुद से सुशील कुमार लिख दिया था, लेकिन सोमवार सुबह जब सीईसी प्रभारी मुकुल वासनिक ने दिल्ली की छह सीटों के उम्मीदवारों की सूची जारी की तो उसमें सुशील कुमार की जगह पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा का ही नाम लिखा था।
सूत्रों की मानें तो महाबल को अपनी यह सीट इसलिए वापस नहीं मिली, क्योंकि उनके समर्थकों ने रविवार को कांग्रेस मुख्यालय पर जोरदार धरना-प्रदर्शन किया था बल्कि इस वजह से मिली क्योंकि सुशील ने खुद से ही चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, सुशील सरकारी नौकर हैं। पहले वह उत्तर रेलवे में कमर्शियल अफसर थे, बाद में प्रतिनियुक्ति पर दिल्ली सरकार में विशेष कार्याधिकारी (खेल) बन गए। इस प्रतिनियुक्ति पर भी उनका एक कार्यकाल तो पूरा हो चुका है और दोबारा कार्यकाल विस्तार मिला हुआ है। अपुष्ट सूत्रों के मुताबिक चुनाव लड़ने के लिए उन्होंने अपनी इस सरकारी नौकरी से त्याग पत्र देना चाहा, लेकिन वह स्वीकार नहीं हुआ। मजबूरी में उन्हें चुनाव लड़ने का इरादा भी त्यागना पड़ा।
बताया जाता है कि दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार है, जबकि AAP और कांग्रेस में 36 का आंकड़ा है। ऐसे में कांग्रेस की टिकट पर लोकसभा चुनाव लड़ने की छूट देने के लिए दिल्ली सरकार ने सुशील का इस्तीफा स्वीकार ही नहीं किया। ऐसे में सुशील के सामने समस्या खड़ी हो गई।
बताया जाता है कि दिल्ली सरकार सुशील की ट्रेनिंग पर भी हर साल एक बड़ी राशि खर्च करती है। सूत्रों की ही मानें तो दिल्ली के त्रिकोणीय मुकाबले में कांग्रेस की टिकट पर सुशील चुनाव में अपनी जीत के लिए भी पूर्णतया आश्वस्त नहीं थे। उनकी रुचि भी AAP से गठबंधन होने पर चुनाव लड़ने में ज्यादा थी, जबकि वह हुआ नहीं। इन सूरते हाल उन्होंने फिलहाल पांव पीछे खींचने में ही भलाई समझी। हालांकि, सुशील का पक्ष जानने के लिए उन्हें कई बार फोन भी किया गया, लेकिन उन्होंने उठाया नहीं। उनके गुरु और ससुर महाबली सतपाल को भी फोन लगाया गया, लेकिन उन्होंने भी फोन नहीं उठाया। शायद दोनों ही मीडिया के सवालों से बचना चाह रहे थे।
1. सूत्रों का कहना है कि कांग्रेस ने पश्चिमी दिल्ली से महाबल मिश्रा की जगह सुशील कुमार को टिकट देने का मन बना लिया था, सिर्फ ऐलान होना बाकी थी। वहीं, पार्टी के अंदरूनी सूत्रों ने आलाकमान को जानकारी दी कि महाबल मिश्रा जैसे दिग्गज नेता को दरकिनार करने पर कांग्रेस का जमीनी स्तर पर नुकसान हो सकता है। यह सुशील के पक्ष में नहीं गई और टिकट कट गया।
2. सुशील कुमार के विरोधियों का तर्क था कि जाट समुदाय के लोग पूरी दिल्ली में हैं और दक्षिण दिल्ली में भी जाटों की संख्या है, ऐसे में सुशील कुमार को दक्षिण दिल्ली सीट से भी लड़ाया जा सकता है।
3. दिल्ली से पूर्व सांसद रह चुके वरिष्ठ कांग्रेसी नेता महाबल मिश्रा को शीला दीक्षित का करीबी माना जाता है और आलाकमान के भी काफी करीब थे। ऐसे में पश्चिमी दिल्ली से उनका टिकट तय माना जा रहा था। इस बीच पहलवान सुशील कुमार की दिल्ली की राजनीति में एंट्री ने महाबल मिश्रा का गणित बिगाड़ दिया। राहुल गांधी भी सुशील के पक्ष में थे, लेकिन जीत की ज्यादा संभावना और अनुभव के आगे सुशील फीके पड़ गए।
4. कांग्रेस सुशील को दक्षिणी दिल्ली सीट से मैदान में उतारना चाहती थी, लेकिन सुशील कुमार पश्चिमी दिल्ली की सीट चाहते थे। सूत्रों के मुताबिक इन सबके बीच बृहस्पतिवार को सुशील राहुल गांधी से मिलने उनके आवास पर पहुंचे। बताया जा रहा है कि उनकी राहुल गांधी से चुनाव लड़ने के संबंध में बातचीत हुई थी, लेकिन दिल्ली प्रदेश का नेतृत्व इस पक्ष में था कि सुशील दक्षिण दिल्ली सीट से लड़ें,लेकिन सुशील राजी नहीं थे।
5. पुराने कांग्रेस की उपेक्ष करना अालाकमान को उचित नहीं जान पड़ा इसलिए सुशील कुमार को वेस्ट दिल्ली से उम्मीदवार बनाने पर कांग्रेस ने ज्यादा माथापच्ची नहीं की।
बता दें कि सुशील कुमार के गुरु और ससुर पद्म भूषण महाबली सतपाल ने पिछले दिनों इस बात का खुलासा किया था कि कांग्रेस ने सुशील कुमार को दिल्ली से प्रत्याशी बनाने के लिए इच्छा जताई है। वर्ष 2006 में अर्जुन पुरस्कार और 2011 में पद्मश्री से सम्मानित सुशील ने देश का नाम पूरे विश्व में रौशन किया है। फ्रीस्टाइल रेसलिंग में सुशील कुमार को पहली कामयाबी साल 1998 में वर्ल्ड कैडेट गेम्स में मिली थी। फिर 2000 में एशियन जूनियर कुश्ती चैम्पियनशिप में भी गोल्ड जीता था और 2003 में एशियन कुश्ती चैंपियनशिप में उन्होंने ब्रॉन्ज जीता। 2005 में उन्होंने कॉमनवेल्थ कुश्ती चैंपियनशिप में गोल्ड जीता था।