EXCLUSIVE: पढ़िए- आखिर क्यों दिल्ली में लगातार दूसरी बार बुरी तरह हार रही है कांग्रेस
पार्टी के सातों उम्मीदवार भी अपने दम पर अलग- अलग लड़ते नजर आए पार्टी के दम पर संयुक्त रूप से चुनाव लड़ते कहीं कोई दिखाई नहीं दिया।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। दोपहर एक बजे तक के चुनावी रुझान पर नजर डालें तो दिल्ली की भी सातों लोकसभा सीटों पर कांग्रेस काे हार का मुंह देखना पड़ रहा है। वहीं, पांच सीटों पर कांग्रेस पार्टी दूसरे नंबर पर है, लेकिन मतों का अंतर इतना ज्यादा है कि जीतना नामुमकिन है। पार्टी को हार का मुंह देखना पड़ा है तो जाहिर है उसके लिए खुद कांग्रेस ही जिम्मेदार है। चुनाव के दौरान भी पार्टी में न सिर्फ गुटबाजी चलती रही, बल्कि भीतरघात से भी इनकार नहीं किया जा सकता। यहां तक कि पार्टी के सातों उम्मीदवार भी अपने दम पर अलग- अलग लड़ते नजर आए, पार्टी के दम पर संयुक्त रूप से चुनाव लड़ता कहीं कोई दिखाई नहीं दिया।
पार्टी सूत्रों की मानें तो प्रदेश कांग्रेस को इस चुनाव में बेहतर प्रदर्शन की प्रबल उम्मीद थी। पार्टी के दिग्गज नेता एक-दो सीट जितने का दावा भी मजबूती से कर रहे थे, लेकिन कुछ नेता सिक्के के दूसरे पहलू पर भी उतनी ही गंभीरता से विचार कर रहे थे। पार्टी की हार के पीछे भी उनके अपने अपने तर्क हैं। पहली बात तो कांग्रेसी यही कह रहे हैं कि इस चुनाव ने पार्टी को दिल्ली में वापस स्थापित कर दिया। कांग्रेस का कैडर बहुत हद तक वापस लौट आया है। जो अभी नहीं लौटा है, वह विधानसभा चुनाव के दौरान वापस आ जाएगा।
दूसरी तरफ कांग्रेस अपनी हार देखकर भी चल रही है। कांग्रेस के कई वरिष्ठ नेता इस बात को स्वीकार कर रहे हैं कि पार्टी के भीतर जो गुटबाजी देखने को मिली, वही इसका सबसे बड़ा कारण होगी। इस चुनाव में सबसे अजीब बात तो यही देखने को मिली कि पार्टी और प्रत्याशियों के बीच आपसी सामंजस्य नहीं था। हर उम्मीदवार अपना चुनाव खुद ही लड़ रहा था। पार्टी का सहयोग या समर्थन कहीं नहीं नजर आ रहा था। प्रत्याशी अपने ही ढंग से प्रचार कर रहे थे। सभी की सोच भी अलग-अलग ही थी। मसलन, पूर्वी दिल्ली लोकसभा सीट से अरविंदर सिंह लवली ने अपनी सीट का घोषणा पत्र भी तैयार किया, जबकि अन्य किसी उम्मीदवार ने ऐसा नहीं किया और न ही इस मसले पर पार्टी से कोई सलाह-मशवरा किया गया।
पार्टी सूत्रों के मुताबिक, पार्टी में गुटबाजी भी इतनी अधिक थी कि मतदान से एक दिन पहले तक इसका असर देखा गया। उत्तर-पश्चिमी लोकसभा सीट से दलित नेता राजकुमार चौहान अंतिम क्षणों में भाजपा में शामिल हो गए, जिससे दलित वोट बंट गए। इसी लोकसभा सीट से तीन ब्लॉक अध्यक्षों को भी इसी दौरान पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया गया। इसका भी खामियाजा पार्टी को भुगतना पड़ सकता है। उत्तर पूर्वी लोकसभा सीट पर कांग्रेस के पूर्व विधायक भीष्म शर्मा की बगावत भी भारी पड़ी है। भीष्म को भी चुनावी माहौल में ही पार्टी से बाहर किया गया था, जो बाद में भाजपा में शामिल हो गए।
दक्षिणी दिल्ली की कहानी भी अलग ही है। इस क्षेत्र के स्थानीय नेता बॉक्सर विजेन्द्र सिंह को पचा नहीं पाए। यही वजह रही कि विजेन्द्र का चुनाव प्रचार भी रंग नहीं पकड़ सका, जबकि विजेन्द्र खुद भी किसी सेलीब्रिटी से कम नहीं हैं। अब अगर विजेन्द्र सिंह को भी हार का मुंह देखना पड़े तो क्या कहेंगे? चर्चा है कि स्थानीय नेताओं ने दिल से विजेन्द्र का पूरी तरह साथ नहीं दिया। यही वजह रही कि उनका प्रचार भी उथला-उथला सा रहा।
दिल्ली-NCR की ताजा खबरों को पढ़ने के लिए यहां पर करें क्लिक
लोकसभा चुनाव और क्रिकेट से संबंधित अपडेट पाने के लिए डाउनलोड करें जागरण एप