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कौन करता है ये दावा कि दिल्लीवालों को पनीर टिक्का खाना उन्होंने ही सिखाया

मुल्तानी यानी वे लोग, जिनके पूर्वज देश के बंटवारे के समय सरहद के उस पार के पंजाब के मुल्तान शहर से राजधानी या देश के दूसरे भागों में आकर बसे थे।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 25 Aug 2018 12:29 PM (IST)Updated: Sat, 25 Aug 2018 12:44 PM (IST)
कौन करता है ये दावा कि दिल्लीवालों को पनीर टिक्का खाना उन्होंने ही सिखाया
कौन करता है ये दावा कि दिल्लीवालों को पनीर टिक्का खाना उन्होंने ही सिखाया

नई दिल्ली (विवेक शुक्ला)। क्रिकेटर गौतम गंभीर पंजाबी समाज से आते हैं। पर उनकी एक पहचान मुल्तानी परिवार से संबंध रखने वाले इंसान की भी है। मुल्तानी यानी वे लोग, जिनके पूर्वज देश के बंटवारे के समय सरहद के उस पार के पंजाब के मुल्तान शहर से राजधानी या देश के दूसरे भागों में आकर बसे थे। अकेले दिल्ली-एनसीआर में 10-12 लाख से अधिक हैं मुल्तानियों की आबादी मानी जाती है। दरअसल जब पंजाबी समाज की बात होती तो ना जाने क्यों मान लिया जाता है कि सब एक ही जैसी भाषा या बोली बोलते होंगे या सबका एक जैसा ही खान-पान होगा। ये बात सही नहीं है। पंजाबी सरायकी, मुल्तानी, बन्नूवाली, झांगी जैसी बोलियां भी बोलते हैं। ये सब एकदूसरे से थोड़ी-बहुत भिन्न हैं।

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यहां बसे मुल्तानी

दिल्ली में 50 पार कर चुके मुल्तानी अब भी आपसी बातचीत में मुल्तानी में ही बात करना पसंद करते हैं। लेकिन आज की युवा पीढ़ी अब मुल्तानी नहीं बोल पाती। दिल्ली में पहाड़गंज का मुल्तानी ढांडा, अशोक विहार, शहादरा, कृष्णा नगर, गीता कॉलोनी, पीतम पुरा, रानी बाग, आदर्श नगर, मुल्तान नगर, नबी करीम, राम नगर, चूना मंडी, मॉडल टाउन जैसे इलाके मुल्तानियों से भरे पड़े हैं। पंजाबी समाज से संबंध रखने वाले अरोड़ा, गंभीर, सचदेवा, चावला, सरदाना, नागपाल, आहूजा, मुखी वगैरह अधिकतर मुल्तानी ही हैं। अंडमान-निकोबार के उप राज्यपाल जगदीश मुखी भी मुल्तानी समाज से हैं। वे दिल्ली के वित्त मंत्री भी रहे हैं। हां, मुल्तानी पंजाबी का विवाह गैर-मुल्तानी से हो सकता है। गौर करें कि ये अधिकतर शाकाहारी हैं। इनके घरों में मांस का सेवन लगभग निषेध है।

पनीर टिक्का खाना सिखाया

मुल्तानियों का दावा है कि दिल्ली वालों को शाही पनीर और पनीर टिक्का उन्होंने ही खाना सिखाया। मुल्तानी परिवारों में पनीर टिक्का लगातार खाया-पकाया जाता है। मुल्तानी समाज प्रति वर्ष सावन का महीना आते ही अपने एक खास पर्व को मनाने में जुट जाता है। इस समाज के लोग एकजुट हो जोत महोत्सव मनाते हैं। दरअसल अखिल भारतीय मुल्तान युवा संगठन के प्रधान डॉ.महेंद्र नागपाल बताते हैं कि सन् 1911 में मुल्तान शहर से जोत महोत्सव की शुरुआत हुई थी। ये पर्व उस मुल्तान जोत की याद में ही मनाया जाता है जब भगत रूपचन्द्र मुल्तान से जोत लेकर पैदल हरिद्वार आए थे। तब से लेकर आज तक जोत महोत्सव आपसी भाईचारे, एकता और समृद्धि के लिए आयोजित किया जाता है।

मुल्तान जोत महोत्सव के दौरान देशभर से मुल्तानी बिरादरी के लोग हरिद्वार में पहुंचकर गंगा में जोत अर्पित करते हैं। इस बार मुल्तान जोत विगत 19 अगस्त को आयोजित हुई थी। इसमें राजधानी के सैकड़ों मुल्तानी रेलों, बसों और कारों से हरिद्वार पहुंचे, लेकिन इस बार अटल बिहारी वाजपेयी की मृत्यु के कारण मुल्तान जोत को लेकर उत्साह ठंडा रहा। मुल्तानी समाज अटल बिहारी वाजपेयी को अपना संरक्षक मानता था। मुल्तानी भले ही अधिकतर कारोबारी हैं, पर ये शिक्षा पर विशेष जोर देने वाला समाज है। इन्होंने विभाजन के बाद दिल्ली में आते ही ओल्ड राजेन्द्र नगर में मुल्तान डीएवी स्कूल स्थापित किया था। ये स्कूल गौतम गंभीर के घर से खासा करीब है।

मुल्तान का सुल्तान

क्रिकेटर वीरेंद्र सहवाग के लिए भी मुल्तान बेहद अजीज है। उन्होंने 2004 में पाकिस्तान के खिलाफ मुल्तान टेस्ट मैच में तिहरा शतक ठोका था। वे एक बार बता रहे थे कि मुल्तान को मस्जिदों और मकबरों का शहर भी माना जाता है। दिल्ली-मुल्तान का एक तरह से पुराना संबंध भी रहा है। शेर शाह सूरी (1486- 1545) ने दिल्ली- मुल्तान के बीच के शहरों में व्यापार और यातायात को बेहतर करने के लिए एक राजमार्ग का निर्माण करवाया था। कहते हैं कि हर चंद मील पर चौकियां स्थित थीं जहां घोड़े तैयार रहते थे, जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान तक संदेश और डाक जल्दी पहुंचवाने के लिए प्रयोग किया जाता था। दिल्ली-एनसीआर के मुल्तानी अब अपनी जड़ों से बहुत दूर हो चुके हैं। उधर का बहुत कुछ पीछे छूट चुका है। पर इन्हें अब भी अपने को मुल्तानी कहने में अच्छा लगता है।

(लेखक व इतिहासकार)


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