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Delhi Congress Crisis: जानिये- आखिर किस धर्म संकट में फंसे हैं दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी

Delhi Congress Crisis दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी अपनी टीम बनाना चाह रहे हैं। इसके लिए अलग-अलग स्तरों पर चर्चा जारी हैं। पता कर रहे हैं कि किस नेता को कहां जगह दी जा सकती है। समस्या यह है कि इनके अधीन कोई वरिष्ठ नेता काम नहीं करना चाहता।

By JP YadavEdited By: Published: Mon, 26 Oct 2020 04:37 PM (IST)Updated: Mon, 26 Oct 2020 04:37 PM (IST)
Delhi Congress Crisis:  जानिये- आखिर किस धर्म संकट में फंसे हैं दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी
दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी की फाइल फोटो।

नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। Delhi Congress Crisis: देश के सबसे पुराने सियासी दल कांग्रेस की दिल्ली इकाई में आजकल कुछ नाम खोजे जा रहे हैं। नाम चाहिए कार्यकारिणी के लिए। दरअसल, देर आए, दुरुस्त आए की तर्ज पर दिल्ली कांग्रेस अध्यक्ष अनिल चौधरी अपनी टीम बनाना चाह रहे हैं। इसके लिए अलग- अलग स्तरों पर चर्चा कर रहे हैं। पता कर रहे हैं कि किस नेता को कहां जगह दी जा सकती है। लेकिन, समस्या यह आड़े आ रही है कि इनके अधीन कोई वरिष्ठ नेता काम नहीं करना चाहता। उन तक कार्यकारिणी में शामिल होने का प्रस्ताव भी जा रहा है तो वो मना कर दे रहे हैं। ऐसे में अध्यक्ष के समक्ष भी धर्मसंकट उत्पन्न हो गया है। समझ नहीं आ रहा कि क्या किया जाए। नए नामों पर भी विचार चल रहा है। अब कहीं ऐसा न हो कि कार्यकारिणी भी हल्की और कमजोर बना दी जाए। हालांकि यह भी सामने आ रहा है कि कार्यकारिणी का गठन दिवाली के बाद ही होना है। अभी तो दिल्ली प्रभारी शक्ति सिंह गोहिल बिहार चुनाव में व्यस्त हैं। उनके दिल्ली लौटने पर ही प्रक्रिया आगे बढ़ेगी।

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फिर मजबूत हो रहे पुराने अध्यक्षों के खेमे

दिल्ली कांग्रेस में मौजदा प्रदेश अध्यक्ष की कमजोरी पुराने अध्यक्षों की मजबूती की वजह बन रही है। तमाम पार्टी नेता और यहां तक कि जिला अध्यक्ष भी पूर्व प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन, सुभाष चोपड़ा, अरविंदर सिंह लवली और जयप्रकाश अग्रवाल से संपर्क साध रहे हैं। इन सबकी चर्चा का केंद्र बिंदु यही रहता है कि किस तरह दिल्ली में पार्टी को मजबूत किया जाए। इसके लिए सभी एकमत से एक मजबूत और अनुभवी अध्यक्ष की वकालत कर रहे हैं। हालांकि पूर्व अध्यक्षों की ओर से उन्हें कोरोना काल खत्म होने तक रुकने को कहा जा रहा है। इसके बाद ही मजबूत अध्यक्ष की तलाश शुरू की जाएगी। इस बीच ज्यादातर जिला अध्यक्ष अब प्रदेश कार्यालय के फेरे न लगाकर अपने जिले में केंद्रित होने लगे हैं। यहां तक कि सभी उपाध्यक्ष भी अपने अपने एजेंडे पर चल रहे हैं। अहम सवाल यह कि अपनी ढफली, अपना राग की तर्ज पर हो रही यह जद्दोजहद कहीं पार्टी की रही सही साख पर भी बट्टा न लगा दे।

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