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14 आतंकवादियों को ढेर कर हंसते-हंसते शहीद हो गए यशपाल सिंह, मां ने कहा- शहादत पर गर्व

यशपाल ने डटकर आतंकियों का मुकाबला किया और 14 दहशतगर्दों को ढेर कर देश को आतंकी हमले से बचाया। गंभीर रूप से घायल इस शेर ने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 13 Aug 2018 04:24 PM (IST)Updated: Mon, 13 Aug 2018 06:34 PM (IST)
14 आतंकवादियों को ढेर कर हंसते-हंसते शहीद हो गए यशपाल सिंह, मां ने कहा- शहादत पर गर्व
14 आतंकवादियों को ढेर कर हंसते-हंसते शहीद हो गए यशपाल सिंह, मां ने कहा- शहादत पर गर्व

फरीदाबाद [अभिषेक शर्मा]। दुश्मनों में इतनी हिम्मत कहां कि हमारी मातृभूमि की ओर आंख उठाकर भी देख सकें। छिपकर वार करने वाले इन कायर आतंकियों की रूह भारत माता के वीर सपूतों की दहाड़ से ही कांपने लगती है। ग्रेटर फरीदाबाद के गांव खेड़ीकलां के यशपाल सिंह नरवत 4 जून 2001 को कुपवाड़ा में टुकड़ी के साथ गश्त कर रहे थे। कायर आतंकियों ने घात लगाकर उनकी टुकड़ी पर हमला कर दिया। यशपाल ने डटकर आतंकियों का मुकाबला किया और 14 दहशतगर्दों को ढेर कर देश को आतंकी हमले से बचाया। गंभीर रूप से घायल इस शेर ने हंसते-हंसते देश के लिए अपनी जान न्यौछावर कर दी।

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शहादत पर गर्व

शहीद यशपाल की मां धर्मपाली को बेटे की शहादत पर गर्व है। वहीं 17 साल बाद भी सर्वोच्च बलिदान देने वाले इस लाल की बहादुरी के किस्से गांव के बच्चे-बच्चे को याद है। यशपाल चार भाइयों में सबसे छोटे थे। पिता भरत लाल सेना में सिपाही और उनके बड़े भाई रविंद्र सिंह भी सेना में थे। उनके आदर्शों पर चलते हुए 21 वर्ष की आयु में अप्रैल 1997 को नासिक में 290 मीडियम रेजीमेंट में वह भर्ती हुए और 30 आरआर केयर ऑफ 56एपीओ के तहत कश्मीर में पोस्टिंग हुई। उस दौरान घाटी में आतंकवाद चरम पर था और कुपवाड़ा में आतंकियों से निपटने की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गई। उन दिनों घाटी में रोजाना आतंकी घटनाओं की सूचना मिलती थी।

घात लगाकर आतंकियों ने किया हमला 

मां धर्मपाली ने बताया कि यशपाल 4 जून 2001 को अपने दल के साथियों के साथ कुपवाड़ा में गश्त कर रहे थे। इसी दौरान आतंकी उनके दल पर हमला करने के लिए घात लगाकर छिपकर बैठे हुए थे। आतंकियों की नजर दल पर नजर पड़ते ही उन्होंने ताबड़तोड़ फायरिंग शुरू कर दी। यशपाल ने खुद को और अपने साथियों को बचाते हुए आतंकियों से डटकर मुकाबला किया। इस दौरान उनके सीने पर कई गोलियां लगीं, लेकिन भारत मां के इस अमर सपूत ने अपने प्राणों की परवाह किए बिना फायरिंग जारी रखी। 14 आतंकियों को मारने के बाद ही उन्होंने अंतिम सांस ली। 


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