एनसीआर में जलभराव की ये हैं पांच प्रमुख वजहें
हर साल इन शहरों में जलभराव से निपटने के लिए अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं। बावजूद समस्या साल दर साल गंभीर होती जा रही है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। मानसून की वजह से दिल्ली समेत एनसीआर के ज्यादातर शहरों में बृहस्पितवार को एक बार फिर से जनजीवन बुरी तरह प्रभावित हुआ। कुछ घंटे की बारिश के बाद सुबह ऑफिस व अस्पताल जाने को निकले लोग घंटों जाम में फंसे रहे। जाम में फंसने वालों में एंबुलेंस, दमकल, राहत व बचाव टीमों के साथ सुबह स्कूल के लिए छोटे बच्चें भी शामिल थे। हर साल इन शहरों में जलभराव से निपटने के लिए अरबों रुपये खर्च किए जाते हैं। बावजूद समस्या साल दर साल गंभीर होती जा रही है। इसके लिए सरकारी एजेंसियों के साथ-साथ एनसीआर में रहने वाले आम लोग भी जिम्मेदार हैं। यहां के शहरों की भौगोलिक स्थित जलभराव की समस्या को और गंभीर बना देती है।
डूब क्षेत्र में है ज्यादातर शहर
दिल्ली, नोएडा, ग्रेटर नोएडा, गाजियाबाद, फरीदाबाद, गुड़गांव, सोनीपत समेत एनसीआर का ज्यादातर हिस्सा यमुना, हिंडन और गंगनहर के किनारे डूब क्षेत्र में बसा है। डूब क्षेत्र में होने की वजह इन शहरों का स्तर नदी के प्राकृतिक जल स्तर से नीचे है। इन तीन नदियों के अलावा भी एनसीआर के शहरों में दो दर्जन से ज्यादा सीजनल या सिंचाईं नहरें हैं। एनसीआर के ज्यादार शहरों की नालियों का पानी ट्रीट करने के बाद या सीधे इन्हीं नदियों में जाता है। इन नदियों का प्राकृतिक बहाव अंधाधुंध विकास में संकरा और बाधित हो चुका है। ऐसे में बारिश के दौरान इन नदियों में भी जल स्तर बढ़ जाता है। इससे शहर का पानी नदियों में जाने की जगह नदी का पानी उल्टा शहर में आने लगता है। जल स्तर बढ़ने पर नहर के पानी को शहर में आने से रोकने के लिए इससे जुड़े हुए ज्यादातर नालों के मुहाने पर गेट लगा दिए गए हैं। बारिश के दौरान इन गेट को नहर का पानी रोकने के लिए बंद कर दिया जाता है। इस गेट को दोबारा नहर का जल स्तर नीचे होने पर ही खोला जाता है। इस वजह से भी शहर की सड़कों पर घंटों पानी भरा रहता है।
अतिक्रमण दूसरी सबसे बड़ी वजह है
एनसीआर के शहरों में साल दर साल तेजी से बढ़ रहा अतिक्रमण, मानसून के दौरान जलभराव की दूसरी सबसे बड़ी वजह है। अतिक्रमण की वजह से आज एनसीआर के शहरों में 30 से ज्यादा अवैध कॉलोनियां नदी के लिए दोनों तरफ बने बांध के अंदर बस चुकी हैं। दोनों तरफ बांध नदी के प्राकृतिक बहाव को बरकरार रखने के लिए बने हैं। अवैध कॉलोनियां बसाने के लिए इन बंधों के किनारे बड़े पैमाने पर भराव किया जाता है। इससे बहाव प्रभावित होता है। इसके अलावा ज्यादातर कॉलोनियों में आम लोगों ने नालियों के ऊपर अतिक्रमण कर रखा है। इस वजह से आधी से ज्यादा नालियां कभी साफ नहीं हो पाती। इसके विपरीत लोग खुद इन नालियों को पॉलिथीन, मलबा या अन्य ठोस कचरा डालकर जाम करते रहते हैं। लोगों ने अपने घरों या संस्थानों के सामने फुटपाथ ऊंची कर रखी है। इस वजह से सड़क पर भरने वाला पानी दोनों किनारों पर बनी नालियों में नहीं जा पाता है। इसलिए भी सड़कों पर काफी देर तक पानी भरा रहता है।
समय पर नहीं होती नालों की सफाई
मानसून को देखते हुए प्रत्येक वर्ष 31 मई तक नालों की सफाई का काम पूरा हो जाना चाहिए। नालों की सफाई के साथ ही इनकी गाद भी तुरंत उठा ली जानी चाहिए। हालांकि निविदा प्रक्रिया की वजह से न तो समय पर नालों की सफाई का काम पूरा होता है और न ही इनकी गाद उठाई जाती है। भ्रष्टाचार की वजह से कई बार कागजों में तो नालों की सफाई पूरी हो जाती है, लेकिन वास्तविकता में थोड़े से हिस्से को ही साफ किया जाता है। भ्रष्टाचार भी नालों की सफाई में होने वाली देरी की अहम वजह है।
विकास को लेकर तालमेल का अभाव
एनसीआर कहने को एक रीजन है और इसके लिए एनसीआर प्लानिंग बोर्ड भी बना है। बावजूद एनसीआर के शहरों में विकास को लेकर कोई तालमेल नहीं है। ये शहर आपस में जुड़े हुए हैं। तालमेल का अभाव होने के कारण इन शहरों के नालों का बहाव एक जैसा नहीं है। यहां तक कि एक ही शहर के अंदर भी नालों का ढलान एक दिशा में नहीं है। इस वजह से इन नालों में हमेशा पानी भरा रहता है। एनसीआर के शहरों में पानी निकासी या जलभराव से निपटने के लिए कोई एकीकृत योजना नहीं है।
विकास के मानकों का नहीं होता है पालन
एनसीआर के शहरों में जिस तेजी से विकास हो रहा है, मनमानी की रफ्तार उससे भी ज्यादा है। एनजीटी, हाईकोर्ट व सुप्रीम कोर्ट आदि के आदेश के बाद भी निर्माण एजेंसियों मानकों का पालन करने को गंभीर नहीं हैं। मसलन एनसीआर के शहरों में आए दिन सड़क के नीचे ड्रिल कर या खुदाई कर पाइप लाइन या केबल डाली जाती है। मानक अनुसार पाइप या तार डालने वाली एजेंसी को जैसे-जैसे काम पूरा होता जाए, उस हिस्से में क्षतिग्रस्त सड़क की भी मरम्मत करनी होती है। किसी भी निविदा के लिए ये सबसे महत्वपूर्ण शर्त होती है। बावजूद एजेंसियां अपना काम पूरा करने के बाद सड़कों को क्षतिग्र्स्त हालत में छोड़कर चली जाती हैं। इससे भी सड़कों का बहाव प्रभावित होता है। सड़क धंसने से कभी भी बड़ा हादसा होने का खतरा रहता है।