अधिकारियों की हड़ताल का बहाना, लोकसभा चुनाव है असली निशाना, धूमिल हुई 'आप' की छवि
राजनीतिक जानकारों की मानें तो धरने का एकमात्र मकसद अपनी साढ़े तीन साल की नाकामियां छिपाने और जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना था।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। राजनिवास में नौ दिन तक धरने पर बैठे मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की मंशा जन समस्याएं सुलझाना नहीं, 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए आधार तैयार करना था। यही वजह है कि उनके धरने की वजह बना जो मुद्दा हल्का पड़ता जाता है, वह उसे छोड़ नई मांग रखना शुरू कर देते। उनका प्रयास धरने के जरिये विपक्षी पार्टियों का समर्थन पाना और अपनी राजनीतिक आकांक्षाओं को खुला आकाश देना था।
तीनों मुद्दे खत्म हो गए हैं
बीते सोमवार शाम तकरीबन छह बजे जब केजरीवाल ने तीन अन्य सहयोगी मंत्रियों के साथ उपराज्यपाल अनिल बैजल से बातचीत के बहाने राजनिवास में घुसकर वहां डेरा डाला तो तीन मांगें रखी थीं। पहली, अधिकारियों की चार माह से चल रही हड़ताल खत्म कराई जाए, हड़ताली अधिकारियों पर एक्शन लिया जाए और राशन की डोर स्टेप डिलीवरी योजना को मंजूरी दी जाए। जबकि आज यह तीनों ही मुद्दे खत्म हो गए हैं।
जब खुल गई कलई
जब कलई खुली कि राशन की डोर स्टेप डिलीवरी वाली फाइल खुद मंत्री ने ही दबा रखी है तो वह मांग गौण हो गई। अधिकारियों ने पत्रकार वार्ता कर हड़ताल के आरोप नकारे और सरकार की ही पोल खोल दी तो मुख्यमंत्री वहां भी बैकफुट पर आ गए। लेकिन, धरना खत्म नहीं किया। फिर उन्होंने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर वह सारी शक्तियां लौटाने की मांग रख दी जो सन 2015 से पूर्व दिल्ली सरकार के पास हुआ करती थीं।
लोकसभा चुनाव पर नजर
राजनीतिक जानकारों की मानें तो इस धरने का एकमात्र मकसद अपनी साढ़े तीन साल की नाकामियां छिपाने और जनता का ध्यान अपनी ओर आकर्षित करना था। अत्यधिक राजनीतिक महत्वाकांक्षाएं रखने वाले केजरीवाल जानते हैं कि 2019 का लोकसभा चुनाव नजदीक है। कांग्रेस उससे गठबंधन के नाम पर पहले ही किनारा कर चुकी है। इसीलिए यह प्रपंच रचा गया, रविवार को प्रधानमंत्री आवास तक मार्च भी निकाला गया।
हुआ है बड़ा नुकसान
आप सरकार इससे भी उत्साहित है कि उन्हें इस धरने के दौरान विभिन्न राजनीतिक पार्टियों का समर्थन मिल चुका है। तृणमूल कांग्रेस, जेडीएस, सीपीआइ एम, तेलगु देशम पार्टी, जनता कांग्रेस छत्तीसगढ़, शिवसेना, समाजवादी पार्टी और राजद सहित जेडीयू के एक नेता भी उन्हें अपना समर्थन दे चुके हैं। यद्यपि इनमें से किसी भी पार्टी का दिल्ली में जनाधार नहीं है। लेकिन इन्हीं के साथ केजरीवाल लोकसभा चुनाव में विपक्षी एकता का तीसरा मोर्चा का हिस्सा बनकर अपने उम्मीदवार खड़े करना चाह रहे हैं। यह बात अलग है कि उनकी राजनीतिक आकांक्षाएं आज आप पर भी भारी पड़ने लगी हैं। राजनिवास के धरने से पार्टी और केजरीवाल दोनों की ही छवि को खासा नुकसान पहुंचा है।
जनता का ध्यान भटकाना था मकसद
नेता प्रतिपक्ष विजेंद्र गुप्ता का कहना है कि आप सरकार ने काम न करके हमेशा ही आरोप-प्रत्यारोप की राजनीति की है। इनका यह धरना भी केवल जनता का ध्यान भटकाने का जरिया था। यह बात हम पहले से भी कहते आ रहे हैं। धीरे-धीरे जनता भी यह सच्चाई मानने लगी है।
जनता अब कभी स्वीकार नहीं करेगी
दिल्ली कांग्रेस प्रदेश अध्यक्ष अजय माकन ने कहा कि केजरीवाल पूरी तरह से अवसरवादी नेता हैं। वे कब किसके साथ खड़े हो जाएंगे और क्या बयान दे देंगे, उनको खुद नहीं पता होता। दूसरों के घर में जबरदस्ती घुसकर यह लोग जनता के लिए संघर्ष करने का दंभ भरते हैं। ऐसे नेता और ऐसी पार्टी को जनता अब दोबारा कभी स्वीकार नहीं करेगी।
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