यहां पढ़िए- दिल्ली की सियासी नब्ज को पहचानने वाले अरुण जेटली की खूबियां
दिल्ली की सियासी नब्ज को अरुण जेटली बखूबी समझते थे। समय के साथ उनका राजनीतिक कद जरूर बढ़ता गया पर दिल्ली से उनका जुड़ाव पहले की तरह ही बना रहा।
नई दिल्ली [संतोष कुमार सिंह]। राजनीति के माहिर खिलाड़ी और दिग्गज नेता अरुण जेटली का दिल्ली से करीबी रिश्ता रहा है। देश की राजधानी में ही उनका जन्म हुआ और यहीं के स्कूल-कॉलेज व विश्वविद्यालय से शिक्षा ग्रहण की। यहां पढ़ाई के दौरान ही वह सक्रिय राजनीति में आए और छात्र राजनीति से लेकर भाजपा में कई महत्वपूर्ण जिम्मेदारी निभाते हुए राष्ट्रीय राजनीति में पहुंचे। इस वजह से दिल्ली की सियासी नब्ज को वह बखूबी समझते थे। समय के साथ उनका राजनीतिक कद जरूर बढ़ता गया पर दिल्ली से उनका जुड़ाव पहले की तरह ही बना रहा। बात चाहे दिल्ली भाजपा की संगठनात्मक जिम्मेदारी की हो या फिर चुनावी तैयारी, हर मामले में उनकी राय व पसंद पार्टी नेतृत्व के लिए विशेष मायने रखती थी। यही कारण है कि यहां के नेताओं व कार्यकर्ताओं का उनसे विशेष लगाव था। दिल्ली विश्वविद्यालय से अपनी सियासत की शुरुआत करने वाले जेटली भारतीय राजनीति के पटल पर छाए।
भाजपा में कई पदों पर रहने के साथ ही वाजपेयी सरकार से लेकर नरेंद्र मोदी सरकार में महत्वपूर्ण मंत्रालय उनके पास रहे। पार्टी के बड़े रणनीतिकारों में उनकी गिनती होती थी। इन बड़ी जिम्मेदारियों को निभाने के साथ ही वह दिल्ली की राजनीति में हमेशा दिलचस्पी लेते रहे। यहां के नेताओं व कार्यकर्ताओं से उनका जुड़ाव हमेशा बना रहा। अल्पकालिक सूचना पर भी वह अपनी पार्टी के उम्मीदवारों के चुनाव प्रचार के लिए तैयार हो जाते थे।
आपातकाल से ठीक पहले वह दिल्ली विश्वविद्यालय छात्रसंघ (डूसू) के अध्यक्ष बने। जब तत्कालीन कांग्रेस सरकार ने देश में आपातकाल की घोषणा की तो वह इसके खिलाफ मुखर होकर सड़क पर उतर गए, इस वजह से उन्हें गिरफ्तार कर जेल में डाल दिया गया। जेल से बाहर निकलने के बाद उन्हें अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) दिल्ली का अध्यक्ष बनाया गया, कुछ समय बाद उन्हें राष्ट्रीय सचिव की भी जिम्मेदारी दे दी गई।
1980 में भाजपा का गठन होने पर वह इसमें शामिल हो गए और उन्हें भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) का प्रदेश अध्यक्ष बनाया गया।
लगभग डेढ़ वर्षों तक इस पद पर रहने के बाद वह दिल्ली की सियासत से दूर राष्ट्रीय राजनीति में व्यस्त हो गए। हालांकि इस बीच, वाजपेजी सरकार में मंत्री रहते हुए वह वर्ष 2002 में प्रदेश भाजपा प्रभारी भी रहे। उस समय मदन लाल खुराना दिल्ली भाजपा के अध्यक्ष थे और उनके नेतृत्व में पार्टी ने विधानसभा चुनाव लड़ा था।
उन्होंने खुराना के साथ मिलकर चुनावी रणनीति तैयार की थी, लेकिन कांग्रेस को सत्ता से हटाने में असफल रहे। इस हार के बावजूद जीवन के अंतिम क्षण तक वह दिल्ली में भाजपा को मजबूत करने में लगे रहे। अपने सरकारी निवास और पार्टी कार्यालय में दिल्ली के नेताओं के साथ अक्सर चर्चा करते और उन्हें दिशा दिखाते रहे। अब कुछ माह बाद दिल्ली में विधानसभा चुनाव है जिसकी तैयारी में जुटी भाजपा नेताओं को उनकी कमी जरूर खलेगी।