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पढ़िए- क्यों-कैसे जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार समेत कई नेताओं के करियर पर लगा ब्रेक

परिसीमन ने जहां कुछ नेताओं का करियर खत्म किया वहीं परिसीमन से निश्चित ही क्षेत्रों की असमानता दूर हुई। परिसीमन से बने नए संसदीय क्षेत्रों में दस-दस विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 11 Apr 2019 01:58 PM (IST)Updated: Thu, 11 Apr 2019 02:37 PM (IST)
पढ़िए- क्यों-कैसे जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार समेत कई नेताओं के करियर पर लगा ब्रेक
पढ़िए- क्यों-कैसे जगदीश टाइटलर, सज्जन कुमार समेत कई नेताओं के करियर पर लगा ब्रेक

नई दिल्ली [नवीन गौतम]। वर्ष 2008 में हुए लोकसभा क्षेत्रों के परिसीमन ने न केवल सदर, करोलबाग व बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र को अतीत का हिस्सा बना दिया था, बल्कि दिल्ली का राजनीतिक नक्शा ही बदलते हुए जगदीश टाइटलर जैसे कई पुराने दिग्गज नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर पूर्ण विराम लगा दिया था, तो कई नेताओं के लिए संसद पहुंचने के रास्ते भी परिसीमन ने खोल दिए। वोटरों की संख्या के लिहाज से देश के सबसे बड़े संसदीय क्षेत्र बाहरी दिल्ली को पूरी तरह से खत्म कर उसे चार लोकसभा क्षेत्रों का हिस्सा बना दिया गया, जिसने पूर्व सांसद सज्जन कुमार की राजनीतिक सीमाएं भी तय कर दी थीं।

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पूर्वी दिल्ली भी दो हिस्सों में बांट दिया गया, तब सबसे छोटे संसदीय क्षेत्र चांदनी चौक ने सरहदें लांघी परिसीमन के बाद इसमें चार विधानसभा क्षेत्र से दस विधानसभा क्षेत्र को गए। नए परिसीमन ने जिस तरह से बाहरी दिल्ली को इतिहास बना दिया, ठीक उसी तरह से सदर व करोलबाग संसदीय क्षेत्र भी हमेशा के लिए अतीत के पन्ने बन गए।

इस उलटफेर में बहुत से नेताओं की जमीन भी खिसक गई। ऐसे नेता जिन्होंने इन संसदीय क्षेत्रों से ही अपनी पहचान बनाई, उनका राजनीतिक भविष्य ही खत्म हो गया। सदर संसदीय क्षेत्र का लंबे समय तक प्रतिनिधितत्व करने वाले कांग्रेस नेता जगदीश टाइटलर को कांग्रेस ने परिसीमन के बाद उत्तर पूर्वी व सज्जन कुमार को दक्षिणी दिल्ली से उम्मीदवार भी कोशिश कर दिया था, मगर इसके विरोध में तत्कालीन गृहमंत्री पी.चिदंबरम पर उछले जूते ने इन दोनों की टिकट काटने के लिए कांग्रेस आलाकमान को विवश कर दिया था। सज्जन कुमार को अपने भाई रमेश कुमार को टिकट दिलाकर सांसद बनवाने में सफल गए थे, मगर जगदीश टाइटलर के लिए तभी से रास्ते बंद पड़े हैं।

परिसीमन ने जहां कुछ नेताओं का करियर खत्म किया, वहीं परिसीमन से निश्चित ही क्षेत्रों की असमानता दूर हुई। परिसीमन से बने नए संसदीय क्षेत्रों में दस-दस विधानसभा क्षेत्र शामिल किए गए। उससे पहले बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र में 21, पूर्वी दिल्ली में 20, दक्षिण दिल्ली में 10, सदर, नई दिल्ली और करोल बाग में पांच-पांच तथा चांदनी चौक क्षेत्र में चार विधानसभा क्षेत्र आते थे। परिसीमन से उस नई दिल्ली संसदीय क्षेत्र का स्वरूप भी बदला जिस सीट से अटल बिहारी वाजपेयी, लालकृष्ण आडवाणी, जगमोहन, राजेश खन्ना जैसे लोग पहुंचे। पहले इस संसदीय क्षेत्र में केवल पांच विधानसभा क्षेत्र होते थे। परिसीमन के बाद इस सीट का जो नया स्वरूप बना उसमें पुराने संसदीय क्षेत्र के नई दिल्ली, कस्तूरबा नगर और आरकेपुरम विधानसभा क्षेत्र इसमें शामिल किए गए। इसके अलावा करोल बाग, सदर और बाहरी दिल्ली की सीटें भी इस नए क्षेत्र में आ गई हैं। इस सीट का स्वरूप ही पूरी तरह से बदल गया। इसमें केन्द्र सरकार के कर्मचारी तो हैं ही, करोल बाग, राजेन्द्र नगर, पटेल नगर, ग्रेटर कैलाश और मालवीय नगर जैसे इलाके भी आ गए।

परिसीमन के बाद दक्षिणी दिल्ली संसदीय क्षेत्र का जो स्वरूप बदला उसने उसे गुर्जर बाहुल्य बना दिया। बदरपुर, तुगलकाबाद, संगम विहार, छतरपुर और कालकाजी का कुछ हिस्सा गुर्जरों के दबदबे वाला इलाका माना जाता है। ये सारे इलाके पहले बाहरी दिल्ली सीट में आते थे। पश्चिमी दिल्ली सीट का उदय भी बाहरी दिल्ली संसदीय क्षेत्र का अस्तित्व खत्म होेने के साथ ही हुआ। बिजवासन, नजफगढ़, मटियाला और हस्तसाल बाहरी दिल्ली का ही हिस्सा हुआ करते थे। परिसीमन के बाद ही दिल्ली की राजनीति में महाबल मिश्रा व प्रवेश वर्मा जैसे नेताओं का उदय हुआ।

परिसीमन के बाद चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र भी चार संसदीय क्षेत्रों का मिश्रण बन गई। इस सीट में तत्कालीन संसदीय क्षेत्र की चार में से तीन सीटें चांदनी चौक, बल्लीमारान और मटिया महल तो हैं ही, पूर्वी दिल्ली से निकालकर आदर्श नगर और वजीरपुर इस सीट में शामिल किए। इसके अलावा शालीमार बाग, शकूर बस्ती और त्रिनगर बाहरी दिल्ली का हिस्सा रहे उन्हें भी चांदनी चौक संसदीय क्षेत्र में शामिल कर दिया गया। मॉडल टाउन व सदर बाजार विधानसभा क्षेत्र सदर संसदीय क्षेत्र से लिए गए हैं। सदर संसदीय क्षेत्र खत्म होने के बाद विजय गोयल तो यहां से फिर चांदनी चौक शिफ्ट हो गए थे लेकिन कांग्रेस के जगदीश टाइटलर का चुनाव क्षेत्र की खत्म हो गया था।

अनुसूचित जाति के लिए आरक्षित करौलबाग संसदीय क्षेत्र पूरी तरह से खत्म हो गया, जिससे मीरा कुमार जैसी नेता चुनाव लड़कर लोकसभा के अध्यक्ष पद तक पहुंची। करौलबाग खत्म हुआ तो उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र असितत्व में आ गया। करोलबाग से कांग्रेस की तत्कालीन सांसद कृष्णा तीरथ को उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र में शिफ्ट कर दिया गया था। वह सांसद भी बनीं। उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र ऐसा क्षेत्र है जहां दोनों बार के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस व भाजपा ने स्थानीय नेताओं पर भरोस करने के बजाय बाहरी नेताओं को ही उम्मीदवार बनाया था।

परिसीमन के बाद यमुनापार दो हिस्सों में बंट गया। पूर्वी दिल्ली और उत्तर-पूर्वी दिल्ली। पूर्वी दिल्ली तत्कालीन दक्षिण दिल्ली सीट से ओखला और नई दिल्ली से जंगपुरा को शामिल किया। जिससे कांग्रेस के संदीप दीक्षित पहली बार सांसद बने तो दूसरी बार भाजपा के महेश गिरी का सितारा चमका। परिसीमन के बाद नए बने उत्तर पूर्वी संसदीय क्षेत्र में तत्कालीन पूर्वी दिल्ली संसदीय क्षेत्र के आठ विधानसभा क्षेत्रों के साथ ही सदर संसदीय क्षेत्र के तिमारपुर विधानसभा क्षेत्र और नए बने बुराड़ी विधानसभा क्षेत्र को शामिल किया। परिसीमन के बाद यहां कांग्रेस ने जगदीश टाइटलर को अपना उम्मीदवार घोषित किया था मगर जूता कांड ने उनके स्थान पर चांदनी चौक के पूर्व सांसद जेपी अग्रवाल को उम्मीदवार बनवा दिया। चांदनी चौक में कांग्रेस ने कपिल सिब्बल को अपना उम्मीदवार बनाया था। दूसरी बार हुए लोकसभा के चुनाव में यहां से भाजपा के मनोज तिवारी लोकसभा पहुंचने में कामयाब हुए।

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