Women's Day: जानें- आज क्यों याद आए 'वो सुबह कभी तो आएगी' लिखने वाले साहिर
महिलाओं और उनकी समस्याओं को लेकर साहिर ने फिल्मी गीेत लिखे हैं जो महिला दिवस पर भी गुनगनाए जाते हैं। ये गीत महिलाओं की खूबसूरती को बयां करने के बजाय उनके हालात को बयां करते हैं।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। जहां एक ओर भारत समेत पूरी दुनिया में International Women's Day विश्व महिला दिवस मनाया जा रहा है तो वहीं, 1921 में आज ही के दिन यानी 8 मार्च को उर्दू के महान शायर और बेमिसाल गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म हुआ था। साहिर लुधियानवी शायरी-अदब की दुनिया में किसी भी पहचान के मोहताज नहीं हैं, वह एक प्रसिद्ध शायर और गीतकार थे। दरअसल, महिलाओं और उनकी समस्याओं को लेकर साहिर ने जोरदार फिल्मी गीेत लिखे हैं, जो महिला दिवस पर भी गुनगनाए जाते हैं। ये गीत महिलाओं की खूबसूरती को बयां करने के बजाय उनके हालात को बयां करते हैं।
साहिर ने 'साधना (1958)' फिल्म में 'औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया' गीत लिखा था। यह गीत जबरदस्त मशहूर हुआ था। लता मंगेशकर की आवाज में यह गीत महिलाओं के साथ होने वाले व्यवहार को बखूबी बयां करता है।
गीत का अंश
'औरत ने जनम दिया मर्दों को मर्दों ने उसे बाजार दिया
जब जी चाहा मसला कुचला जब जी चाहा धुत्कार दिया
तुलती है कहीं दीनारों में बिकती है कहीं बाज़ारों में
नंगी नचवाई जाती है अय्याशों के दरबारों में'
पढ़िए पूरा गीत
वो सुबह कभी तो आएगी, वो सुबह कभी तो आएगी
इन काली सदियों के सर से, जब रात का आंचल ढलकेगा
जब अम्बर झूम के नाचेगी, जब धरती नग़मे गाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
जिस सुबह की खातिर जुग-जुग से,
हम सब मर-मर के जीते हैं
जिस सुबह की अमृत की धुन में, हम ज़हर के प्याले पीते हैं
इन भूखी प्यासी रूहों पर, एक दिन तो करम फ़रमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
माना के अभी तेरे मेरे इन अरमानों की, कीमत कुछ नहीं
मिट्टी का भी है कुछ मोल मगर,
इनसानों की कीमत कुछ भी नहीं
इनसानों की इज़्ज़त जब झूठे सिक्कों में ना तोली जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
दौलत के लिये अब औरत की, इस्मत को ना बेचा जाएगा
चाहत को ना कुचला जाएगा, गैरत को ना बेचा जाएगा
अपनी काली करतूतों पर, जब ये दुनिया शरमाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
बीतेंगे कभी तो दिन आखिर, ये भूख और बेकारी के
टूटेंगे कभी तो बुत आखिर, दौलत की इजारेदारी की
अब एक अनोखी दुनिया की, बुनियाद उठाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी ...
मजबूर बुढ़ापा जब सूनी, राहों में धूल न फेंकेगा
मासूम लड़कपन जब गंदी, गलियों में भीख ना मांगेगा
हक मांगने वालों को, जिस दिन सूली न दिखाई जाएगी
वो सुबह कभी तो आएगी।
8 मार्च 1921 को जन्में मशहूर शायर साहिर लुधियानवी ने 59 साल की उम्र में 1980 में दुनिया को अलविदा कहा था। लेकिन, उनके गीत आज भी उतने ही ताजा और अर्थपूर्ण नज़र आते हैं। उनकी शायरी और नगमों के अलावा कई किस्से भी मशहूर हैं। मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम और उनकी प्रेम कहानी भी इन्हीं में से एक है। जैसे साहिर को लेकर एक यह किस्सा काफी प्रचलित है कि वो एक बार कार से लुधियाना जा रहे थे। मशहूर उपन्यासकार कृश्न चंदर भी उनके साथ थे। शिवपुरी के पास डाकू मान सिंह ने उनकी कार रोक कर उसमें सवार सभी लोगों को बंधक बना लिया। जब साहिर ने उन्हें बताया कि उन्होंने ही डाकुओं के जीवन पर बनी फ़िल्म 'मुझे जीने दो' के गाने लिखे थे तो उन्होंने उन्हें सम्मानसहित जाने दिया था।
यह करिश्मा था शायर साहिर का! उनके शब्दों और गीतों ने हिंदी सिनेमा और हिंदुस्तान की अवाम पर भी एक गहरा असर छोड़ा है। आज भी प्यासा फ़िल्म से उनकी यह पंक्तियां कितनी प्रासंगिक जान पड़ती है। "ये कूचे, ये नीलामघर दिलकशी के,ये लुटते हुए कारवां ज़िंदगी के,कहां है कहां है मुहाफ़िज़ खुदी के? जिन्हें नाज़ है हिंद पर,वो कहां हैं?" ऐसे सैकड़ों उदाहरण हैं। आज ही नहीं आने वाले कल और अगली सदी के शायर हैं साहिर। 1963 में आई ताजमहल के लिए उन्हें फ़िल्मफेयर अवॉर्ड से नवाजा गया। इसके बाद 1976 में उन्होंने कभी कभी के गीत 'मैं पल दो पल का शायर हूं' के लिए भी फ़िल्म फेयर जीता।
कैफ़ी आज़मी ने अपने दोस्त और शायर साहिर साहब के लिए कहा है- "साढ़े पांच फ़ुट का क़द, जो किसी तरह सीधा किया जा सके तो छह फ़ुट का हो जाए, लंबी लंबी लचकीली टांगे, पतली सी कमर, चौड़ा सीना, चेहरे पर चेचक के दाग़, सरकश नाक, ख़ूबसूरत आंखें, आंखों से झींपा –झींपा सा तफ़क्कुर, बड़े बड़े बाल, जिस्म पर क़मीज़, मुड़ी हुई पतलून और हाथ में सिगरेट का टिन।" साहिर के व्यक्तित्व का इससे बेहतर डिस्क्रिप्शन आपको शायद ही मिले।
जानिए साहिर के बारे में अहम बातें
- साहिर लुधियानवी का असली नाम अब्दुल हयी साहिर था।
- साहिर बहुत रईस खानदान से थे, लेकिन मां के पिता से अलग रहने की वजह से उन्हें दिन गरीबी में काटने पड़े।
- साहिर और मशहूर लेखिका अमृता प्रीतम के प्रेम प्रसंग आज भी रहस्य की तरह ही है।
- कहा जाता है कि साहिर से अमृता प्रीतम एक तरफा प्रेम करती थीं
- साहिर ने गुरुदत्त की 'प्यासा' के लिए गीत लिखे और ये गीत खूब हिट रहे।
- इस शायर का 25 अक्टूबर, 1980 को निधन हो गया।