Move to Jagran APP

जानिए किन शहरों में गंगाजल के नमूनों में पाया गया प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक, रिपोर्ट में आया सामने

अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक उत्पादों की सर्वाधिक मात्र वाराणसी में पाई गई है। नदी के किनारे कई शहरों से गैर-शोधित सीवेज औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक से नदी में भारी मात्र में प्रदूषक तत्व मिल रहे हैं। प्लास्टिक उत्पादों व कचरे को नदी में छोड़ या फेंक दिया जाता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Fri, 23 Jul 2021 12:16 PM (IST)Updated: Fri, 23 Jul 2021 12:16 PM (IST)
जानिए किन शहरों में गंगाजल के नमूनों में पाया गया प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक, रिपोर्ट में आया सामने
प्लास्टिक उत्पादों की सर्वाधिक मात्र वाराणसी में पाई गई है।

नई दिल्ली, [संजीव गुप्ता]। पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले दिल्ली के गैर सरकारी संगठन टाक्सिक लिंक के नए अध्ययन में सामने आया है कि प्लास्टिक और माइक्रोप्लास्टिक से गंगा का जल तेजी से प्रदूषित हो रहा है। बृहस्पतिवार को जारी किए गए ‘गंगा नदी के किनारे माइक्रोप्लास्टिक का मात्रात्मक विश्लेषण’ नामक इस अध्ययन में सामने आया है कि हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी में गंगा जल के सभी नमूनों में माइक्रोप्लास्टिक पाया गया है।

loksabha election banner

अध्ययन के मुताबिक प्लास्टिक उत्पादों की सर्वाधिक मात्र वाराणसी में पाई गई है। नदी के किनारे कई शहरों से गैर-शोधित सीवेज, औद्योगिक कचरा और प्लास्टिक से नदी में भारी मात्र में प्रदूषक तत्व मिल रहे हैं। प्लास्टिक उत्पादों व कचरे को नदी में छोड़ या फेंक दिया जाता है। यह प्लास्टिक धीरे-धीरे अति सूक्ष्म कणों में बदलकर नदी की तलहटी में बैठ जाता है।

हरिद्वार, कानपुर और वाराणसी में नदी से पानी के नमूने एकत्रित कर गोवा में राष्ट्रीय समुद्र विज्ञान संस्थान (एनआइओ) के सहयोग से इनकी जांच की गई।

परिणाम दर्शाते हैं कि गंगा जल में माइक्रोप्लास्टिक के तौर पर भी 40 प्रकार के अलग-अलग पालिमर मौजूद हैं। तीनों स्थानों में ईवीओएच, पलीएसिटिलीन, पीआइपी, पीवीसी और पीवीएएल जैसे रेजिन भारी मात्र में मौजूद थे। वाराणसी और कानपुर में एकदम छोटे-छोटे दाने देखे गए, जबकि हरिद्वार में कोई दाना नहीं पाया गया। एनआइओ के प्रमुख अनुसंधानकर्ता डा. महुआ साहा ने बताया कि वाराणसी और कानपुर की तुलना में हरिद्वार में गंगा जल में माइक्रोप्लास्टिक की संख्या सबसे कम 1.30 से 0.518 तक माइक्रोप्लास्टिक प्रति घन मीटर थी।

भविष्य को देखते हुए जलीय जीवन पर प्लास्टिक के खतरे से निपटने की अत्यंत जरूरत है। उद्योग, सरकार, नागरिक समाज संगठनों सहित विभिन्न दावेदारों को प्लास्टिक कचरा प्रबंधन में सुधार और बाद में माइक्रोप्लास्टिक प्रदूषण में कमी के लिए हाथ मिलाने की जरूरत है।

-सतीश सिन्हा, एसोसिएट डायरेक्टर, टाक्सिक लिंक।

पर्यावरण के क्षेत्र में काम करने वाले दिल्ली के गैर सरकारी संगठन टाक्सिक लिंक के अध्ययन में आया सामने

यह रहे अध्ययन के प्रमुख निष्कर्ष

  • गंगा मुख्य रूप से सिंगल यूज प्लास्टिक और प्लास्टिक के बने सेकेंडरी उत्पादों से प्रदूषित पाई गई।
  • वाराणसी में गंगा नदी के सतही जल में 2.42 से 0.405 तक माइक्रोप्लास्टिक प्रति घन मीटर मिली।
  • कानपुर में गंगा नदी के सतही जल में 2.16 से 0.500 तक माइक्रोप्लास्टिकप्रति घन मीटर पाई गई।
  • हरिद्वार में 1.30 से 0.518 तक माइक्रोप्लास्टिक प्रति घन मीटर पाई गई। यह मात्र वाराणसी और कानपुर की तुलना में कम है।
  • सभी जगहों पर सबसे अधिक टुकड़े पाए गए, जिसके बाद ङिाल्ली और रेशे। कानपुर में थोड़ा अंतर पाया, क्योंकि वहां ङिाल्ली की तुलना में रेशे अधिक मात्र में पाए गए।
  • तीनों जगहों पर सबसे अधिक काले और भूरे रंग के टुकड़े पाए गए। काले रंग के टुकड़ों का अधिक होना यह बताता है कि ये टायरों के टुकड़े थे। नदी में कई प्रकार के रबर (ब्यूटाडीन, पालीसोप्रीन, प्राकृतिक रबर) प्रचुर मात्र में पाए गए।

Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.