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जानिए यमुना खादर के भू-जल की क्षमता व इसकी गुणवत्ता पर कितने साल से नहीं किया गया कोई अध्ययन, चौंक जाएंगे आप

इसके प्रदूषण स्तर का पता लगाया जा सके। विशेषज्ञों का मानना है कि नदी तट से 500 मीटर की दूरी तक की धरती नदी के पानी से ही रीचार्ज होती है और धरती की सतह से पांच से सात मीटर गहरे तक यह पानी आसानी से पहुंच जाता है।

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Sun, 04 Jul 2021 01:15 PM (IST)Updated: Sun, 04 Jul 2021 01:15 PM (IST)
जानिए यमुना खादर के भू-जल की क्षमता व इसकी गुणवत्ता पर कितने साल से नहीं किया गया कोई अध्ययन, चौंक जाएंगे आप
पिछले करीब 25 साल से यमुना खादर के भू-जल की क्षमता व इसकी गुणवत्ता पर कोई अध्ययन नहीं किया गया,

नई दिल्ली, [अरविंद कुमार द्विवेदी]। यमुना के जिस प्रदूषित पानी के कारण सरकार ने इसमें मछलियां पकड़ने पर प्रतिबंध लगा दिया है, वहीं पानी यमुना के तटीय क्षेत्र के भूजल को भी जहरीला बना रहा है। लेकिन, पिछले करीब 25 साल से यमुना खादर के भू-जल की क्षमता व इसकी गुणवत्ता पर कोई अध्ययन नहीं किया गया, जिससे इसके प्रदूषण स्तर का पता लगाया जा सके। हालांकि, विशेषज्ञों का मानना है कि नदी तट से करीब 500 मीटर की दूरी तक की धरती नदी के पानी से ही रीचार्ज होती है और धरती की सतह से पांच से सात मीटर गहरे तक यह पानी आसानी से पहुंच जाता है। इसीलिए नदी के किनारे का भूजल प्रदूषित हो रहा है।

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विशेषज्ञ मानते हैं कि मिट्टी में यह क्षमता होती है कि वह एक स्तर तक के प्रदूषक तत्वों को फिल्टर कर देती है, लेकिन यमुना का पानी इतना अधिक प्रदूषित हो चुका है कि इसके आसपास की मिट्टी की यह क्षमता भी धीरे-धीरे समाप्त हो गई है। प्रदूषित नदी अपने सबसे करीबी बाढ़ क्षेत्र के भू-जल को प्रदूषित करती है जिसे ठीक करना बहुत मुश्किल है। हर प्रकार से हानिकारक है खादर का भूजलतमाम औद्योगिक इकाइयों का पानी बिना ट्रीट किए सीधे यमुना में पहुंच रहा है। इसमें लेड, जिंक, क्लोराइड, फ्लोराइड, आर्सेनिक व बोरोन आदि जहरीले व प्रदूषक तत्व होते हैं। वहीं, कांच, सेरेमिक और कास्मेटिक उद्योग के अपशिष्ट पदार्थ नदी की तलहटी में बैठ जाते हैं और पानी के साथ धीरे-धीरे धरती में पहुंच जाते हैं।

नदी के तट पर ही बोर लगे हैं। वहीं, बहुत से किसान सीधे नदी के पानी से ही फसलों की सिंचाई करते हैं। सिंचाई से ये जहरीले पदार्थ पौधों में जाकर और कंसंट्रेट हो जाते हैं। विशेषज्ञों के अनुसार, मानक यह है कि किसी भी नदी के तट से करीब 500 मीटर दूर का ही भूजल सिंचाई आदि के लिए उपयोग में लाया जाना चाहिए, लेकिन राजधानी में इस मानक का भी पालन नहीं हो रहा है। चार साल पहले दिल्ली विश्वविद्यालय के भू विज्ञान विभाग की एक टीम ने ओखला बैराज के पास यमुना खादर से भूजल के 12 नमूने लिए तो पता चला कि इसमें निर्धारित मानक से 83 फीसदी ज्यादा प्रदूषक तत्व हैं। इसमें एल्युमिनियम की मात्रा 75 फीसद, बोरोन की 58, मैंगनीज की 41.6, लौह तत्व की मात्रा 35 और कापर की मात्रा 33.3 फीसदी ज्यादा मिली थी। ये सभी तत्व स्वास्थ्य के लिए हानिकारक हैं।

इन बीमारियों का है खतरा

प्रदूषित पानी पीने, नहाने या किसी भी तरह इस्तेमाल करने और इससे ¨सचित सब्जियां खाने से पेट, त्वचा, तंत्रिका तंत्र, लिवर, किडनी व मस्तिष्क, कैंसर, पीलिया, हेपेटाइटिस, डिहाइड्रेशन जैसी गंभीर बीमारियों का खतरा कई गुना बढ़ जाता है। बोरोन की अधिक मात्रा व्यक्ति को कोमा में भी पहुंचा देती है।

वैज्ञानिकों के बयान

1996 में सेंट्रल ग्राउंड वाटर बोर्ड व सेंट्रल पाल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने यमुना के बाढ़ क्षेत्र के भूजल का अध्ययन किया था। तब पांच-पांच किलोमीटर के ग्रिड एरिया से सैंपल लिया गया था। हालांकि, वह अध्ययन अब प्रासंगिक नहीं रह गया है। अब यमुना के तटवर्ती क्षेत्र के भूजल की माइक्रो लेवल मैपिंग की जरूरत है। इस अध्ययन के लिए 500-500 मीटर की ग्रिड के आधार पर सैंपल लेने चाहिए, ताकि भूजल की क्षमता, गुणवत्ता व इसमें मौजूद प्रदूषक तत्वों की सटीक मात्रा का पता चल सके।

- शशांक शेखर, प्रोफेसर, भू विज्ञान विभाग, दिल्ली विश्वविद्यालय

यमुना के तटवर्ती क्षेत्र के भूजल की गुणवत्ता व इसमें मौजूद प्रदूषक तत्वों के बारे में कोई सरकारी डाटा ही नहीं है। दिल्ली में प्रवेश करते ही प्रदूषण से यमुना का बुरा हाल हो जाता है। इसी पानी से यमुना बाढ़ क्षेत्र रीचार्ज होता है और यमुना ही नहीं, देश की ज्यादातर नदियों का यही हाल है। सरकारों ने नदियों की सफाई या उनके पुनर्जीवन के लिए कभी कोई ठोस कदम उठाए ही नहीं।

- एसए नकवी, संयोजक, सिटीजन फ्रंट फार वाटर डेमोक्रेसी


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