India Monsoon News Update: आखिर कैसे बादलों की उड़ान ने बदल डाली मानसून की चाल
India Monsoon News Update भारत में भी साल दर साल बारिश का यह पैटर्न बदलता जा रहा है। अब बारिश का स्वरूप भी बदल गया है और इसके दिन भी घट गए हैं।
नई दिल्ली [संजीव गुप्ता]। India Monsoon News Update: जलवायु परिवर्तन के असर से सर्दी और गर्मी के बाद मानसून का चक्र भी बदल रहा है। ऐसे में बारिश के मौसम में कम ऊंचाई वाले बादल बनने बंद हो गए हैं और अधिक ऊंचाई वाले बादल रिमझिम फुहार नहीं करते। हालांकि, जब बरसते हैं तो अच्छे से बरसते हैं, लेकिन कुछ देर की अधिक बारिश न फसलों के लिए अच्छी होती है, न ही भूजल रिचार्ज के लिए।
बारिश के दिन घटे और स्वरूप भी
गौरतलब है कि दिल्ली एनसीआर में मानसून सामान्य तौर पर तीन माह सक्रिय रहता है। जुलाई, अगस्त और सितंबर। इन तीन माह के दौरान पहले 60 से 70 दिन बारिश हो जाती थी। कभी रिमझिम फुहार, कभी बूंदाबांदी और कभी मूसलधार। लेकिन साल दर साल बारिश का यह पैटर्न बदलता जा रहा है। अब बारिश का स्वरूप भी बदल गया है और इसके दिन भी घट गए हैं।
फसलों के अच्छी होती है बारिश
मौसम विशेषज्ञों के मुताबिक, अब मौसम की यह बारिश बमुश्किल 30 से 40 दिन होती है। रिमझिम फुहारें नहीं के बराबर रह गई हैं। हल्की बारिश भी कम होती है। अमूमन जब भी ठीक से बारिश होती है तो तेज या मूसलधार ही होती है। इससे न फसलों को फायदा होता है, क्योंकि उन्हें पर्याप्त नमी नहीं मिल पाती। न ही ऐसी बारिश से भूजल रिचार्ज हो पाता है। बहाव ज्यादा होने से तेज बारिश का सारा पानी सड़कों और नालों में ही बह जाता है।
सरप्लस की बारिश के बाद भी नहीं पूरी होती पानी की कमी
भारतीय मौसम विज्ञान विभाग के पूर्व महानिदेशक डॉ केजे रमेश (Former Director General of Indian Meteorological Department, Dr. KJ Ramesh) का कहना है कि जलवायु परिवर्तन के असर से मौसम के शॉर्ट टर्म इवेंट्स खत्म हो रहे हैं और एक्सट्रीम इवेंट्स बढ़ रहे हैं। मतलब, सर्दी में सर्दी रिकॉर्ड तोड़ रही है तो गर्मी में गर्मी। मानसून में भी पिछले कुछ सालों से तेज बारिश वाले दिन बढ़ गए हैं। माह के तीन सप्ताह सूखे रहते हैं, बारिश भी सामान्य से कम रहती है, जबकि एक सप्ताह मूसलधार बारिश हो जाती है। इससे बारिश की कमी ही पूरी नहीं होती, वह सरप्लस भी हो जाती है। लेकिन यह पैटर्न सही नहीं है।
प्रदूषण और घटते वन क्षेत्र से बारिश प्रभावित
मौसम विशेषज्ञ बताते हैं कि पूर्व के वर्षों में 8 से 10 हजार फीट की ऊंचाई पर भी बादल बनते थे। यह बादल रिमझिम फुहार करते रहते थे,लेकिन अब यह बादल 35 से 50 हजार फीट की ऊंचाई पर बनने लगे हैं। इसी तरह पहले गरजने वाले बादल बहुत ज्यादा नहीं बनते थे, लेकिन अब बादल गरजते भी हैं और एकाएक बरसने भी लगते हैं। जलवायु परिवर्तन के साथ-साथ स्थानीय प्रदूषण और घटता वनक्षेत्र भी बारिश के बदले पैटर्न के लिए उत्तरदायी है।
जलवायु परिवर्तन से बड़ा बारिश पर असर
महेश पलावत (मुख्य मौसम विज्ञानी, स्काईमेट वेदर) का कहना है कि इसमें कोई संदेह नहीं कि जलवायु परिवर्तन से मौसम पर गहरा असर पड़ रहा है। बादलों की ऊंचाई बढ़ गई है, बारिश की रिमझिम फुहारें घट गई हैं। मौसम के एक्सट्रीम इवेंट्स अब ज्यादा होने लगे हैं।