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Kisan Andolan: 240 दिन बाद भटका सा नजर आया किसान आंदोलन, न दशा की फिक्र और न दिशा का अंदाजा

Kisan Agitation गणतंत्र दिवस पर लाल किला हिंसा एक युवती से दुष्कर्म से लेकर टीकरी बॉर्डर पर एक शख्स को जिंदा जलाने जैसे दाग किसान आंदोलन पर लग चुके हैं। किसान आंदोलन के दामन पर लगे दाग इस कदर गाढ़े हो गए हैं कि इन्हें साफ करना नामुमकिन है।

By Jp YadavEdited By: Published: Mon, 26 Jul 2021 02:44 PM (IST)Updated: Tue, 27 Jul 2021 08:03 AM (IST)
Kisan Andolan: 240 दिन बाद भटका सा नजर आया किसान आंदोलन, न दशा की फिक्र और न दिशा का अंदाजा
न खुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम: 8 महीने पूरे होने पर कुछ ऐसा है किसान आंदोलन का हाल

नई दिल्ली, जागरण डिटिजल डेस्क। 'न खुदा ही मिला, न विसाल-ए-सनम, न इधर के रहे न उधर के रहे' उर्दू का यह मशहूर शेर पिछले 8 महीने से चल रहे किसान आंदोलन पर पूरा सटीक बैठता है। पूरी तरह भटकाव की राह पर चल पड़ा किसान आंदोलन 200 दिन बाद अपनी दिशा ही भूल गया है और किसान आंदोलन की दशा तो जग जाहिर हो चुकी है। गणतंत्र दिवस पर लाल किला हिंसा, एक युवती से दुष्कर्म से लेकर टीकरी बॉर्डर पर एक शख्स को जिंदा जलाने जैसे दाग किसान आंदोलन पर लग चुके हैं। किसान आंदोलन के दामन पर लगे दाग इस कदर गाढ़े हो गए हैं कि इन्हें साफ करना नामुमकिन है। सच बात तो यह है कि नाम कमाने से ज्यादा देशभर में अब किसान आंदोलन बदनाम हो गया है। अब आम जनता भी समझ नहीं पा रही है कि जब केंद्र सरकार तीनों केंद्रीय कृषि कानूनों को स्थगित कर चुकी है तो आखिर किसान प्रदर्शनकारी जिद क्यों किए हुए हैं।

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आंदोलन स्थलों पर पसरा रहता है सन्नाटा

26 जून को किसान आंदोलन की शुरुआत हुई थी तो दिल्ली-एनसीआर के चारों बॉर्डर (टीकरी, सिंघु, शाजहांपुर और गाजीपुर) पर हजारों की संख्या में प्रदर्शनकारी जमा हो गए थे। 24 घंटे लंगर चलता था। कूलर-एसी समेत किसानों के लिए यहां पर तमाम संसाधन उपलब्ध कराए गए थे। धीरे-धीरे किसान आंदोलन फीका पड़ा तो भीड़ गायब होने लगी। 8 महीने पूरे होने पर स्थिति यह है कि चारों बॉर्डर पर प्रदर्शनकारियों की कुल संख्या भी 1000 तक नहीं पहुंच रही है।

टेंट खड़े हैं किसान पहुंच गए अपने घर

टीकरी, सिंघु और गाजीपुर बॉर्डर पर कभी सैकड़ों की संख्या में टेंट मौजूद थे। एक-एक टेंट में 100 के करीब किसान प्रदर्शनकारी मौजूद रहते थे। अब किसान आंदोलन के 8 महीने पूरे होने पर किसान प्रदर्शन गायब हैं। पूर्व में कहा गया था कि गेहूं की कटाई के लिए गए हैं, लेकिन 4 महीने बाद भी हालात खराब हैं। टेंट तो हैं, लेकिन टेंट में किसान नहीं है। किसान संगठन से जुड़े बड़े कार्यकर्ता जरूर इन टेंटों में पैर पसार कर लेटे नजर आते थे। हां, कभी-कभी बड़े नेताओं के आगमन पर प्रदर्शनकारी जरूर जुटते हैं, लेकिन माननीय नेताओं के जाते ही फिर सूनापन छा जाता है।

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चुनाव लड़ने की सुगबुगाहट ने घटाई किसान आंदोलन की साख

संयुक्त किसान मोर्चा के बड़े नेताओं में शुमार गुरनाम सिंह चढ़ूनी पिछले दिनों ही पंजाब विधानसभा चुनाव में हाथ आजमाने की बात कर चुके हैं। इतना ही नहीं, इसके चलते उनका निष्कासन भी हो गया था, लेकिन वह अब भी अपने रुख पर कायम हैं। वहीं, भारतीय किसान यूनियन के राष्ट्रीय अध्यक्ष राकेश टिकैत पहले ही दो बार चुनाव में हाथ आजमा चुके हैं। 

नहीं खुला रास्ता तो जाम करेंगे सड़कें

वहीं, कृषि कानून विरोधी आंदोलन के कारण पिछले आठ माह से बंद जीटी रोड को खुलवाने के लिए चल रहा आंदोलन जोर पकड़ रहा है। राष्ट्रवादी परिवर्तन मंच के बैनर तले जीटी रोड का एक लेन खुलवाने की मांग कर रहे कुंडली और आसपास के ग्रामीणों ने पैदल मार्च के बाद अब ग्रामीण सड़कें बंद करने का निर्णय लिया है। मंच के अध्यक्ष हेमंत नांदल ने बताया कि पैदल मार्च के बाद प्रशासन ने उन्हें एक माह में एक तरफ का रास्ता खुलवाने का आश्वासन दिया है। उन्होंने स्पष्ट किया कि यदि इसके बाद भी रास्ता नहीं खुला तो वे लोग बार्डर के आसपास की सभी ग्रामीण सड़कों को जाम कर देंगे।

लोगों की नौकरियां गई छूट

बता दें कि कुंडली बार्डर पर जीटी रोड बंद होने के कारण अधिकांश गाड़ियां कुंडली, दहिसरा, झुंडपुर जाखौली, मनौली आदि गांव के रास्ते दिल्ली की ओर जा रहे हैं। फिलहाल पानीपत की ओर से आने वाली गाड़ियों के लिए ग्रामीण सड़क ही दिल्ली जाने का मुख्य रास्ता है। यदि इन सड़कों को जाम कर दिया गया तो लोगों का दिल्ली जाना मुश्किल हो जाएगा। जीटी रोड खोलने की मांग कर रहे ग्रामीणों ने पैदल मार्च के दौरान ही स्पष्ट कर दिया था कि यदि उन्हें रास्ता नहीं मिला तो वे सभी रास्ते को बंद कर देंगे, क्योंकि आठ माह से रोड बंद होने के कारण क्षेत्र के उद्योग-धंधे बर्बादी के कगार पर पहुंच चुके हैं।

काम धंधों पर पड़ा असर

छोटे व्यापारी और दुकानदारों का धंधा पूरी तरह से बंद हो चुका है और यहां लोगों के समक्ष रोजी-रोटी का संकट पैदा हो गया है। राष्ट्रवादी परिवर्तन मंच के अध्यक्ष हेमंत नांदल ने बताया कि पिछले दो महीने से वे लोग एक तरफ का रास्ता खोलने की मांग कर रहे हैं, लेकिन सरकार व प्रशासन इस ओर कोई ध्यान नहीं दे रहा है। इसलिए उन्होंने तय समय के बाद ग्रामीण रास्तों को भी बंद करने का निर्णय लिया है। ग्रामीण उनसे संपर्क कर रहे हैं और बैठकें भी जा रही है। गांव-गांव में कमेटी भी बना रहे है।

काली पट्टी बांधकर विरोध जताएंगे उद्यमी

राई इंडस्ट्रीज मैन्यूफैक्चरिंग एसोसिएशन के प्रधान राकेश देवगन ने बताया कि आंदोलन के कारण उद्योगपति परेशान हो गए हैं। उद्योगपति अब काली पट्टी बांधकर इसका अपना विरोध दर्ज कराएंगे। प्रदेश सरकार इस समस्या का जल्द से जल्द समाधान कराए।

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