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ये 'पहाड़ियां' न होतीं तो जीना होता मुहाल, जानें- कैसे संकट में हैं दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग

राजस्थान के नजदीक होने के बावजूद दिल्ली में कभी रेगिस्तान की आंधियां तबाही नहीं करती क्योंकि इन धूल भरी आंधियों से बचाव करने को प्राचीनतम अरावली पर्वतमाला यहां है।

By JP YadavEdited By: Published: Sat, 09 Mar 2019 09:43 AM (IST)Updated: Mon, 11 Mar 2019 08:54 AM (IST)
ये 'पहाड़ियां' न होतीं तो जीना होता मुहाल, जानें- कैसे संकट में हैं दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग
ये 'पहाड़ियां' न होतीं तो जीना होता मुहाल, जानें- कैसे संकट में हैं दिल्ली-NCR के करोड़ों लोग

नई दिल्ली [बिजेंद्र बंसल]। देश की राजधानी दिल्ली और इसके आसपास के प्रमुख शहरों को रिहायश ही नहीं बल्कि वाणिज्यिक और औद्योगिक गतिविधियों के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है। पर्यावरणविद् स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती बताते हैं कि दिल्ली और इसके आसपास के क्षेत्र में खुशहाली का कारण यह नहीं है कि यह राष्ट्रीय राजधानी है और यहां समग्र विकास हुआ है। बल्कि इसका कारण यह है कि यहां मानव के अनुकूल सभी प्राकृतिक संपदाएं भी अनुकूल हैं। दिल्ली से यमुना गुजरती है इसलिए यहां पर्याप्त मात्रा में पानी उपलब्ध है। राजस्थान के नजदीक होने के बावजूद भी दिल्ली में कभी रेगिस्तान की आंधियां तबाही नहीं करती क्योंकि इन धूल भरी आंधियों से बचाव करने को प्राचीनतम अरावली पर्वतमाला यहां है। अरावली की हरियाली ही दिल्ली और आसपास के शहरों जैसे गुरुग्राम,फरीदाबाद, नोएडा, गाजियाबाद को भरपूर मात्रा में आक्सीजन मिलती है। स्वामी ज्ञानानंद सरस्वती के अनुसार दिल्ली के विकास में अरावली का यह योगदान एक दिन का नहीं है बल्कि अंग्रेजों ने अरावली बचाने को एक ऐसा कानून बनाया हुआ है, जिसके कारण भू-माफिया की नजर कभी अरावली पर नहीं पड़ी।

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यह कानून है पंजाब लैंड प्रिजर्वेशन एक्ट (पीएलपीए)-1900, इसमें अरावली में न तो निर्माण करने और न ही पेड़ कटाई की अनुमति मिलती थी। सेव अरावली संस्था के प्रवक्ता जीतेंद्र भड़ाना बताते हैं कि हरियाणा सरकार ने विधानसभा में पीएलपीए-1900 की धारा 2,3,4,5,6 में बदलाव का संशोधन विधेयक 27 फरवरी को पारित किया है। हालांकि इस पर एक मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगा दी है बावजूद इसके सवाल यह उठता है कि 100 साल पुराने इस कानून में बदलाव क्यों किया जा रहा है। भड़ाना के अनुसार अरावली में पेड़ कटाई और निर्माण की अनुमति वाला यह संशोधन विधेयक पूरे दिल्ली-एनसीआर के पर्यावरण पर कुठाराघात का कानून है।

भूकंप से बचाव में भी कारगर

भूकंप की दृष्टि से दिल्ली-एनसीआर को जोन चार में शामिल किया गया है। दिल्ली में भूकंप की आशंका वाले इलाकों में यमुना तट के करीबी इलाके, पूर्वी दिल्ली, शाहदरा, मयूर विहार, लक्ष्मी नगर शामिल हैं। दिल्ली की सिस्मिपक माइक्रोजोनेशन रिपोर्ट में यह पता चला है कि रियेक्टर पैमाने पर 8 तीव्रता तक का भूकंप आ सकता है। इसी जोन में हरियाणा के दो बड़े औद्योगिक शहर गुरुग्राम और फरीदाबाद भी आते हैं। पर्यावरणविद् एलएन पाराशर बताते हैं कि अरावली में पीएलपीए-1900 इसलिए लागू किया गया था कि यहां भूमि कटाव न हो, इसलिए ही पीएलपीए के तहत इस क्षेत्र में पेड़ कटाई पर रोक लगाई हुई थी।

अवैध खनन भी सुप्रीम कोर्ट ने इसलिए ही बंद किया था। अरावली का दोहन हुआ तो दिल्ली व आसपास के क्षेत्रों में भूकंप के झटके कभी भी बड़ी तबाही ला सकते हैं। पाराशर कहते हैं कि पीएलपीए में संशोधन विधेयक एक काला कानून है। इसमें जनभावनाओं का ध्यान नहीं रखा गया है। हमने सुप्रीम कोर्ट में पीएलपीए में संशोधन विधेयक को निरस्त करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की है।

इसमें तर्क दिया है कि पीएलपीए-1900 से ही अरावली और शिवालिक पहाड़ियों का संरक्षण हो रहा था तथा हरियाणा विधानसभा द्वारा पारित पीएलपीए संशोधन विधेयक के बाद पूरी अरावली और शिवालिक की पहाड़ियां नष्ट हो जाएंगी। पेड़ कटाई और निर्माण दोनों की अनुमति इस संशोधन विधेयक में है, जबकि अरावली का संरक्षण अब तक पेड़ों के कारण ही हो रहा था। अरावली की इस हरियाली के कारण ही दिल्ली-एनसीआर का भू-जल स्तर बचा हुआ है और रेगिस्तान से आने वाली धूल भरी आंधियां भी अरावली में हरियाली के कारण ही रुकती हैं।

अरावली के साथ कुछ किया तो संकट में होगी सरकार

यहां पर बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने हरियाणा सरकार को चेतावनी दी है कि अरावली पहाड़ियों को नुकसान पहुंचाया गया तो वह संकट मोल लेगी। शीर्ष कोर्ट ने कहा है कि यदि राज्य सरकार ने निर्माण की अनुमति देने के लिए कानून में संशोधन कर अरावली की पहाड़ियों या वन क्षेत्र को कोई नुकसान पहुंचाया तो वही मुसीबत में होगी। जस्टिस अरुण मिश्र और जस्टिस दीपक गुप्ता की पीठ ने यह टिप्पणी उस समय की जब हरियाणा सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि वह कोर्ट को इस बात से संतुष्ट करेंगे कि पंजाब भूमि संरक्षण कानून 1900 में संशोधन किसी की मदद के लिए नहीं किए गए हैं। पीठ ने उनसे कहा, ‘हमारा सरोकार अरावली को लेकर है। यदि आपने अरावली या कांत एंक्लेव के साथ कुछ किया तो फिर आप मुसीबत में होंगे। यदि आप वन के साथ कुछ करेंगे तो आप मुसीबत में होंगे।’

पीठ ने एक मार्च को भूमि संरक्षण कानून में संशोधन करने के लिए हरियाणा सरकार को आड़े हाथ लेते हुए कहा था कि कोर्ट की अनुमति के बगैर सरकार इस पर काम नहीं करेगी। हरियाणा विधानसभा ने 27 फरवरी को कानून में संशोधन पारित कर हजारों एकड़ वन भूमि क्षेत्र गैर वानिकी और रियल एस्टेट की गतिविधियों के लिए खोल दिया था। यह इलाका एक सदी से भी अधिक समय से इस कानून के तहत संरक्षित था। विधानसभा ने विपक्ष के विरोध और बहिष्कार के बीच ये संशोधन पारित किए थे। हरियाणा के सीएम मनोहर लाल ने कहा था कि पंजाब भूमि संरक्षण (हरियाणा संशोधन) विधेयक- 2019 समय की मांग है और यह कानून बहुत ही पुराना है। इस दौरान काफी बदलाव हो चुके हैं। सॉलिसिटर जनरल ने शुक्रवार को कहा कि विधानसभा ने विधेयक पारित किया है, लेकिन यह अभी कानून नहीं बना है।

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