संभव है AAP-कांग्रेस गठबंधन, इन 2 नेताओं की बात नहीं टाल पाएंगे राहुल-केजरीवाल
पश्चिम बंगाल की सीएम ममता व तेदपा के मुखिया चंद्रबाबू नायडु शुरू से ही कांग्रेस व AAP गठबंधन के समर्थक रहे हैं। यही आशंका गठबंधन विरोधी कांग्रेस-AAP नेताओं को परेशान कर रही है।
नई दिल्ली [नवीन गौतम]। लोकसभा चुनाव 2019 के लिए कांग्रेस व आम आदमी पार्टी (AAP) में गठबंधन को लेकर अभी भले ही योजना परवान न चढ़ी हो, मगर संभावना अभी पूरी तरह से खत्म नहीं हुई हैं। इसकी वजह है राष्ट्रीय परिपेक्ष्य में भाजपा विरोधी दलों का महागठबंधन, जिसमें बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी व आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री चंद्र बाबू नायडू शुरू से अहम रोल निभा रहे हैं। इन दोनों नेताओं के कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी व AAP संयोजक अरविंद केजरीवाल से अच्छे संबंध हैं।
प्रदेश कांग्रेस नेतृत्व ने भले ही अभी राहुल गांधी के माध्यम से गठबंधन की बात से इनकार करवा दिया हो, मगर ममता व चंद्रबाबू नायडु की बात को टालना न तो राहुल गांधी के आसान है और न ही अरविंद केजरीवाल के लिए।
बता दें कि ममता व चंद्रबाबू नायडु शुरू से ही कांग्रेस व AAP गठबंधन के समर्थक रहे हैं। यही आशंका गठबंधन विरोधी कांग्रेस के नेताओं को तो परेशान कर ही रही है। साथ ही परेशान उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र में आम आदमी पार्टी के वह कार्यकर्ता भी हैं, जो पिछले लंबे समय से लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटे हैं।
दिल्ली कांग्रेस के नेताओं की राहुल गांधी से मुलाकात से पहले तक दिल्ली में लोकसभा चुनाव के लिए आम आदमी पार्टी और कांग्रेस में गठबंधन की संभावनाओं के मद्देनजर उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र के आम आदमी पार्टी के नेताओं में मायूसी दिख रही थी। मायूसी इस बात को लेकर कि अगर गठबंधन हुआ तो यह सीट कांग्रेस के हिस्से में चली जाएगी, जैसा कि फॉर्मूला तैयार भी किया गया था। ऐसा होता तो इससे यहां आम आदमी पार्टी की उन तैयारियों को झटका लगता, जो पिछले तीन माह से लगातार की जा रही हैं।
यहां से आम आदमी पार्टी ने पूर्व विधायक गुग्गन सिंह को अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया है। कार्यकर्ता मानकर चल रहे हैं कि गुग्गन सिंह जैसे मजबूत उम्मीदवार के चलते यहां आम आदमी पार्टी को किसी भी दल से गठबंधन की जरूरत नहीं है।
AAP कार्यकर्ताओं में मायूसी इस बात को लेकर थी कि AAP ने तो अपना उम्मीदवार घोषित कर दिया, जिसके साथ तमाम AAP के नेता व कार्यकर्ता मिलकर चल रहे हैं। वहीं, जिस कांग्रेस के उम्मीदवार का अभी तक कोई अता-पता नहीं है और वहां एक दर्जन से अधिक दावेदार हैं, ऐसे में यह सीट कांग्रेस को देना उचित नहीं होगा।
AAP के नेता खुलकर तो नहीं, लेकिन दबी जुबान से कह रहे हैं कि अगर यह सीट कांग्रेस को दी गई तो यहां से आम आदमी पार्टी को विधानसभा के चुनाव में भी काफी नुकसान उठाना पड़ेगा। कांग्रेस तो लोकसभा चुनाव जीतेगी नहीं, बल्कि इससे भाजपा को ही यहां से फायदा होगा। उत्तर पश्चिम संसदीय क्षेत्र से AAP के अधिकांश नेताओं व कार्यकर्ताओं की राय है कि गठबंधन होता भी है तो यह सीट किसी भी सूरत में कांग्रेस को नहीं दी जानी चाहिए।
कांग्रेस को सीट दिए जाने के विरोधी AAP नेताओं का तर्क है कि पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान आम आदमी पार्टी ने पांच लाख से ज्यादा वोट लिए थे, मगर कांग्रेस एक लाख ही वोट हासिल कर पाई थी। विधानसभा सीटों के हिसाब से भी इस संसदीय क्षेत्र की दस सीटों में से नौ पर आम आदमी पार्टी का कब्जा है, तो एक सीट भाजपा के पास है।
विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के कई उम्मीदवारों की तो जमानत तक नहीं बची थी। इसी प्रकार की स्थिति नगर निगम के चुनाव में रही। यहां तक कि बवाना विधानसभा के उपचुनाव में भी कांग्रेस उम्मीदवार को तीसरे स्थान पर रहकर ही संतोष करना पड़ा था।
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