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विकसित होगा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इनहेलर व नेबुलाइजर, AIIMS कर रहा तैयारी

Coronavirus Treatment हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा का इस्तेमाल सुरक्षित है और यह कोरोना के इलाज में काम आ रही है। इसलिए एम्स ने भी इसका ट्रायल शुरू कर दिया है।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 11 Apr 2020 09:18 PM (IST)Updated: Sun, 12 Apr 2020 07:13 AM (IST)
विकसित होगा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इनहेलर व नेबुलाइजर, AIIMS कर रहा तैयारी
विकसित होगा हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इनहेलर व नेबुलाइजर, AIIMS कर रहा तैयारी

नई दिल्‍ली (रणविजय सिंह)। Coronavirus Treatment: कोरोना के इलाज के लिए अभी तक कोई प्रमाणित दवा नहीं है लेकिन हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन से चिकित्सा जगत की उम्‍मीदें लगातार बढती जा रही है। इसलिए दुनिया भर में इस दवा की मांग भी बढी है। यहां भी मरीजों को क्लीनिकल ट्रायल के रूप में यह दवा दी जाने लगी है। एम्स भी कोरोना के इलाज में इस दवा का ट्रायल कर रहा है। साथ ही इस दवा का इनहेलर व नेबुलाइजर विकिसत करने की कोशिशें शुरू कर दी गई है। क्योंकि़, इनहेलर व नेबुलाइजर के माध्यम से दवा आसानी से सीधे फेफडे तक पहुंच सकेगी। जो इलाज में मददगार हो सकती है। एम्स के निदेशक डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि यह अभी शोध के स्तर पर है।

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मलेरिया के इलाज में आती है काम

उन्होंने कहा कि हाल के दिनों में कुछ ऐसे अध्‍ययन आए हैं, जिसमें यह पाया गया है कि मलेरिया के इलाज में इस्तेमाल होने वाली हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा का इस्तेमाल सुरक्षित है। यह कोरोना के इलाज में काम भी कर रही है। इसलिए यहां भी ट्रायल के रूप में इसका इस्तेमाल शुरू कर दिया गया है। साथ ही उसका डाटा एकत्रित किया जा रहा है और यह देखा जा रहा है कि यह इलाज में कितना प्रभावी है।

नैनो तकनीक से सीधे फेफड़े में पहुंचाने पर चल रहा रिसर्च

इसके साथ ही नैनो तकनीक आधारित हाइड्रोक्लोरोक्वीन की दवा बनाने पर भी शोध चल रहा है। इसके पीछे कोशिश यह है कि नैनो पार्टिकल के माध्यम से दवा को सीधे फेफड़े में पहुंचाया जाए। उन्होंने कहा कि इसके इनहेलर व नेबुलाजर के रूप में इस्तेमाल के लिए भी ट्रायल चल रहा है।

क्यों बन रहा इनहेलर और नुबुलाइजर
क्‍योंकि, यह देखा गया है कि सांस की बीमारियों में इनहेलर व नेबुलाइजर के रूप में ली जाने वाली दवाएं ज्‍यादा असरदार होती हैं। क्योंकि वह सीधे फेफड़े में पहुंचकर जल्दी अपना असर दिखाती हैं। कोरोना वायरस भी फेफडे पर अटैक करता है। इस वजह से हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन का इनहेलर तैयार करने की कोशिश की जा रही है। आगे इस पर क्या परिणाम निकलेगा अभी कुछ कहना मुश्किल है।

हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन दवा का दो तरह से इस्तेमाल

डॉ रणदीप गुलेरिया ने कहा कि इस दवा का दो तरह से इस्तेमाल किया जा रहा है। एक तो स्वास्थ्य कर्मियों को हाइड्रोक्सीक्लोरोक्विन प्रोफाइल एक्सिस (बीमारी से पहले बचाव के लिए दी जाने वाली दवा) के रूप में दी जा रहा है। ताकि यदि इलाज के दौरान उनमें थोड़ा भी संक्रमण है तो वह ठीक हो सकें। दूसरा ऐसे मरीजों को दिया जा रहा है जिन्हें बीमारी का लक्षण है और ऑक्सीजन की कमी हो रही है या आइसीयू में हैं।

पांच दिन तक किया जा रहा परीक्षण

उन्हें पांच दिन के लिए यह दवा देकर देखा जा रहा है कि उन पर क्‍या असर पडा। डाटा तैयार होने पर परिणाम सामने आएगा। उल्लेखनीय है कि फ्रांस में कोरोना के मरीजों पर इस दवा का परीक्षण किया गया है, जिसमें इस दवा को कोरोना के इलाज में असरदार बताया गया है, लेकिन अध्ययन में कम मरीजों के शामिल होने के कारण अभी इसके इस्‍तेमाल को लेकर आम सहमति नहीं बन पाई है।

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