Move to Jagran APP

पुराने किले में तो दफन नहीं पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ, जल्द उठेगा राज पर से पर्दा

धार्मिक ग्रंथों में जिस जगह पांडवों की राजधानी बताई गई है, वर्तमान में वह दिल्ली में पुराना किला परिसर टीले पर स्थित है।

By JP YadavEdited By: Published: Sun, 11 Feb 2018 07:53 AM (IST)Updated: Mon, 12 Feb 2018 08:41 AM (IST)
पुराने किले में तो दफन नहीं पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ, जल्द उठेगा राज पर से पर्दा
पुराने किले में तो दफन नहीं पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ, जल्द उठेगा राज पर से पर्दा

नई दिल्ली (वीके शुक्ला)। पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ पुराना किला के टीले पर थी या नहीं, इस रहस्य से पर्दा उठाने के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) ने फिर से कमर कसी है। आजादी के बाद से यह चौथा प्रयास है, जब इस मामले से पर्दा उठाने के लिए खोदाई शुरू हुई है। खोदाई करीब 13 दिन पहले शुरू हुई है।

loksabha election banner

वहीं, एएसआइ का कहना है कि इस बार इस मामले की तह तक जाने का प्रयास होगा। खोदाई अगले कई माह तक चलेगी। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में जिस जगह पांडवों की राजधानी बताई गई है, वर्तमान में वह स्थान दिल्ली में पुराना किला परिसर टीले पर स्थित है। हालांकि, एएसआइ के पास इसके प्रमाण नहीं है।

इसके चलते आधिकारिक रूप से इस बारे में कोई चर्चा नहीं होती। इस सच्चाई का पता लगाने के लिए सबसे पहले वर्ष 1955, इसके बाद वर्ष 1969 से वर्ष 1972 तक तथा तीसरी बार वर्ष 2014 में किला में खोदाई हुई, लेकिन इस निष्कर्ष पर नहीं पहुंचा जा सका कि इस टीले को आधिकारिक रूप से इंद्रप्रस्थ माना जाए या नहीं।

कुछ माह पहले इस किले के खोदाई स्थलों को संरक्षित करने का फैसला किया गया था। उस समय फिर से 2014 वाले स्थल पर खोदाई को आगे बढ़ाना तय किया गया। इस खोदाई में विभाग को मौर्य काल की कुछ वस्तुएं मिली थीं।

शुंग काल और मौर्य काल की वस्तुओं के मिले अवशेष

ताजा चल रही खोदाई में एक स्थान पर पत्थर की दीवार के साथ घोड़े की हड्डियां मिली हैं। वहीं, दूसरे भाग में तांबे के दो सिक्के मिले हैं, जिसमें एक पर हाथी का चित्र बना है। इसे मौर्य काल का माना जा रहा है।

मिट्टी के बने जानवरों (खिलौने) के अवशेष भी मिले हैं, जिनमें शुंग काल का कुत्ता व मौर्य काल का मेढ़ा, बैल व हाथी शामिल हैं। खंडित मानव मूर्तियों से अद्भुत केश सज्जा के प्रमाण मिले हैं।

बालों के जूड़े में लगाने वाली पिन मोती व हड्डियों की बनी है। एक गणोश प्रतिमा भी मिली है। मौर्य काल से संबंधित काली चमकीली मृदभांड (मिट्टी के बर्तन) तथा चित्रित धूसर मृदभांड भी मिले हैं। कई इतिहासकार चित्रित मृदभांड को पांडवकालीन बताते हैं।

यहां पर बता दें कि दिल्ली का इतिहास भारतीय महाकाव्य महाभारत के समय से है। धार्मिक ग्रंथों के मुताबिक, भगवान कृष्ण की सलाह पर पांडवों ने इंद्रप्रस्थ के निर्माण किया था। इसके हिसाब से यह (पुराना) किला पांडवों की राजधानी इंद्रप्रस्थ के स्थल पर है।

कहा जाता है कि पांडवों ने ईसापूर्व से 1400 वर्ष सबसे पहले दिल्ली को अपनी राजधानी इन्द्रप्रस्थ के रूप में बसाया था। 1955 में पुराने किले के दक्षिण पूर्वी भाग में हुई पुरातात्त्विक खुदाई में कुछ मिट्टी के पात्रों के टुकड़े पाए गए जो कि महाभारतकालीन पुरा वस्तुओं से मेल खाते थे।

एएसआइ द्वारा कराई गई खुदाई से पता चला है कि लगभग 1,000 ईसा पूर्व के काल में यहां लोग रहते थे। खोदाई में मिले विशिष्ट प्रकार के बर्तनों और सलेटी रंग की चीजों के इस्तेमाल से इसकी पुष्टि होती है। यहां खुदाई में मिले बर्तनों के अवशेषों के आधार पर पुरातत्वविदों की मान्यता है कि यही जगह पांडवों की राजधानी रही होगी।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.