59 मौतों की कीमत 60 करोड़ रुपये और कुछ महीने की सजा, इंसाफ की हो रही पुकार
90 के दशक में देश की राजधानी दिल्ली को दिल दहला देने वाले 'उपहार' सिनेमा अग्निकाड की आज (13 जून) 21 वीं बरसी है।
नई दिल्ली (जागरण स्पेशल)। 90 के दशक में देश की राजधानी दिल्ली को दिल दहला देने वाले 'उपहार' सिनेमा अग्निकाड की आज (13 जून) 21 वीं बरसी है। जहां इस केस के मुख्य मामले में दोषियों को सुप्रीम कोर्ट से सजा हो चुकी है, लेकिन न्याय मिलना अब भी बाकी है। वजह यह है कि उपहार सिनेमा अग्निकांड में लापरवाही के दोषी देश के जानेमाने बिल्डर अंसल बंधुओं को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिल चुकी है। अब उन्हें 60 करोड़ रुपये जुर्माना भरने पर आगे की जेल नहीं काटनी पड़ेगी। हालांकि, यह मामला कोर्ट में लंबित है। 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने सुशील और गोपाल अंसल की सजा 30-30 करोड़ रुपये जुर्माना और काटी जा चुकी जेल तक सीमित कर दी है। इस मामले में सुशील अंसल 5 महीने 20 दिन और गोपाल अंसल 4 महीने 22 दिन की जेल काट चुके हैं। इस फैसले के खिलाफ पीड़ितों की लड़ाई जारी है।
ऐसे हुआ था हादसा
13 जून, 1997 को शुक्रवार के दिन 'उपहार' सिनेमा हॉल में बॉर्डर फिल्म का शो चल रहा था। इसी शाम पांच बजकर 10 मिनट पर अचानक सिनेमा हॉल में लगे एक बिजली के ट्रांसफार्मर में विस्फोट के साथ आग लग गई। उस समय सिनेमा हॉल में उसकी क्षमता से कहीं अधिक लोग थे। आग लगने से 59 लोगों की मौत हो गई और 103 लोग घायल हो गए थे। इस अग्निकांड में बहुत से लोग घुटन और भगदड़ में मारे गए थे।
कब और क्या हुआ
13 जून 1997 को उपहार सिनेमा में लगी आग के कारण 59 लोगों की मौत हो गई थी। हौज खास थाने में दर्ज एफआईआर में सुशील अंसल व गोपाल अंसल सहित 16 लोगों को आरोपी बनाया गया था। मामले की जांच अपराध शाखा को सौंपा गया।
22 जुलाई 1997 को अपराध शाखा ने सुशील और प्रणव अंसल को मुंबई में गिरफ्तार किया। 24 जुलाई 1997 उपहार हादसे की जांच सीबीआई को सौंपी गई।
15 नवंबर 1997 को सीबीआई ने सुशील अंसल और गोपाल अंसल सहित 16 आरोपियों के खिलाफ मेट्रोपॉलिटन मजिस्ट्रेट ब्रिजेश सेठी की अदालत में चार्जशीट दाखिल की। 4 जनवरी 1999 को केस की सुनवाई सत्र न्यायालय में स्थानांतरित।
10 मार्च 1999 को अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश एल डी मलिक की कोर्ट में सीबीआई की बहस खत्म हुई।
10 जनवरी 2000 को केस न्यायाधीश ममता सहगल की अदालत में स्थानांतरित हुआ।
16 अगस्त 2000 को कोर्ट में बहस शुरू हुई।
11 फरवरी 2004 को संयुक्त पुलिस आयुक्त आमोद कंठ को बतौर आरोपी बनाने की मांग की। 20 फरवरी 2004 को हाई कोर्ट ने ट्रायल कोर्ट के ऑर्डर के खिलाफ दाखिल की गई सभी संशोधन याचिका के आवेदनों को खारिज कर दिया।
5 मई 2006 को हाई कोर्ट ने निचली अदालत के रेकॉर्ड के साथ छेड़छाड़ और कुछ दस्तावेजों के गायब होने के संबंध में पुलिस को केस दर्ज करने के निर्देश दिए। 17 मई 2006 को दिल्ली पुलिस ने विभिन्न धाराओं के तहत एफआईआर दर्ज की। 2 अगस्त 2006 को बचाव पक्ष की गवाही खत्म।
14 फरवरी 2007 को बचाव पक्ष ने एमसीडी और दिल्ली विद्युत बोर्ड के पांच अधिकारियों के खिलाफ जिरह खत्म की। हाई कोर्ट ने 2 जुलाई 2007 से उपहार हादसे की हर रोज सुनवाई के निर्देश दिए। हाई कोर्ट ने निचली अदालत को 40 तारीखों में 31 अगस्त 2007 तक केस खत्म करने के भी निर्देश दिए।
20 नवंबर 2007 को निचली अदालत ने बंसल बंधुओं सहित 12 लोगों को सजा सुनाई।
19 दिसंबर 2008 को हाई कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा दो साल से घटाकर एक साल की। पांच आरोपियों की सजा 7 साल से घटाकर दो-दो साल की, चार आरोपियों को बरी भी किया। उपहार पीड़ित एसोसिएशन ने फैसले को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी। फिलहाल अंसल बंधु सहित सभी आरोपी जमानत पर है।
5 मार्च 2014 को सुप्रीम कोर्ट ने अंसल बंधुओं की सजा को बरकरार रखा। लेकिन सजा को लेकर अलग-अलग राय के कारण मामले को तीन सदस्यीय खंडपीठ के हवाले कर दिया।
साल 2015 में सुप्रीम कोर्ट ने आगे जेल भेजने के बजाय दोनों पर 30-30 करोड़ जुर्माना लगा दिया।