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Nirbhaya case verdict : SC में अक्षय की फांसी पर फिर मुहर, क्या ये 2 विकल्प दिला पाएंगे राहत?

Nirbhaya case verdict दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के दोषी अक्षय कुमार सिंह की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 19 Dec 2019 09:09 AM (IST)Updated: Thu, 19 Dec 2019 02:40 PM (IST)
Nirbhaya case verdict : SC में अक्षय की फांसी पर फिर मुहर, क्या ये 2 विकल्प दिला पाएंगे राहत?
Nirbhaya case verdict : SC में अक्षय की फांसी पर फिर मुहर, क्या ये 2 विकल्प दिला पाएंगे राहत?

नई दिल्ली [माला दीक्षित]। Nirbhaya case verdict : दिल्ली सामूहिक दुष्कर्म कांड के दोषी अक्षय कुमार सिंह की फांसी की सजा पर सुप्रीम कोर्ट ने एक बार फिर अपनी मुहर लगा दी है। बुधवार को सर्वोच्च अदालत ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका को आधारहीन बताते हुए खारिज कर दिया। बाकी तीन दोषियों की पुनर्विचार याचिका पिछले वर्ष ही खारिज हो चुकी हैं। हालांकि, इन दोषियों के पास अभी क्यूरेटिव याचिका दाखिल करने और राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका देने का विकल्प बचा हुआ है।

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जस्टिस आर.भानुमति, अशोक भूषण व एएस बोपन्ना की पीठ ने बुधवार को अक्षय के वकील एपी सिंह की सारी दलीलें खारिज करते हुए कहा कि उन्हें अक्षय को मृत्युदंड सुनाने के 5 मई 2017 के फैसले में कोई खामी नजर नहीं आती। न ही उन्हें पुनर्विचार याचिका में ऐसा कोई आधार दिखा है, जिससे कोर्ट अपने फैसले पर पुनर्विचार करे। कोर्ट ने कहा कि अक्षय ने अपनी पुनर्विचार याचिका में वही आधार दिए हैं, जिन पर पहले ही कोर्ट विचार कर चुका है। ऐसे ही आधार तीन अन्य सहअभियुक्तों की ओर से भी दिए गए, जिन पर विचार करने के बाद कोर्ट ने 9 जुलाई 2018 को उनकी पुनर्विचार याचिका खारिज की थी।

कोर्ट ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका में दिल्ली में वायु प्रदूषण की स्थिति की गंभीरता का मुद्दा उठाए जाने और प्रदूषण के कारण लोगों की जिंदगी घटने की दलील और कलयुग में व्यक्ति को जिंदा लाश के समान बताते हुए मृत्युदंड देना बेकार कहे जाने की दलीलों को दुर्भाग्यपूर्ण करार दिया है। कोर्ट ने कहा कि यह बड़े दुर्भाग्य की बात है कि इतने गंभीर मामले में इस तरह के तर्क दिए गए हैं। बहस के दौरान अक्षय के वकील ने तिहाड़ जेल के पूर्व विधि अधिकारी की सेवानिवृत्ति के बाद लिखी गई किताब ‘ब्लैक वारंट’ का जिक्र किया और कहा कि उसमें विधि अधिकारी ने इस मामले में एक आरोपित राम सिंह की जेल में हत्या होने की आशंका जताई है। कोर्ट ने दलीलें खारिज करते हुए कहा कि किताब में कही गई बातें मात्र राय हैं। उसके साथ कोई भी सहयोगी साक्ष्य नहीं पेश किए गए। ऐसे में उसके आधार पर फैसले पर पुनर्विचार नहीं हो सकता।

कोर्ट ने कहा कि अगर उस विधि अधिकारी को राम सिंह की मौत के बारे में कोई शंका थी तो उसे अदालत में आकर गवाही देनी चाहिए थी या फिर वह इस बारे में कोर्ट में हलफनामा देता। कोर्ट ने जांच में खामी और पीड़िता के मृत्यु पूर्व दिए बयानों पर उठाए गए सवालों को भी खारिज कर दिया और कहा कि इस सब बातों पर विस्तृत विचार करने के बाद 5 मई 2017 का फैसला सुनाया था।

... भगवान का भी सिर शर्म से झुका होगा

सुनवाई के दौरान दिल्ली पुलिस की ओर से पेश सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने अक्षय की पुनर्विचार याचिका का विरोध करते हुए कहा कि यह किसी भी तरह के रहम का हकदार नहीं है। कुछ अपराध ऐसे होते हैं, जिनसे मानवता रोती है। निर्भया (पीड़िता का बदला हुआ नाम) पर हुआ अपराध भी वैसा ही था। मेहता ने कहा कि इसे देखकर भगवान का भी सिर शर्म से झुक गया होगा। उसके दो कारण होंगे। पहला तो यह कि वे एक निदरेष असहाय पीड़िता को बचा नहीं पाए और दूसरा इन पांच राक्षसों को उत्पन्न करने के कारण। उन्होंने कहा कि निचली अदालत से सुप्रीम कोर्ट तक इसे सजा सुनाई जा चुकी है। अब फैसले पर पुनर्विचार की कोई जरूरत नहीं है।

तय समय में याचिका दाखिल करने की छूट : कोर्ट

पुनर्विचार याचिका खारिज होने के बाद अक्षय के वकील ने राष्ट्रपति के समक्ष दया याचिका दाखिल करने के लिए कोर्ट से तीन सप्ताह का समय मांगा, लेकिन तुषार मेहता ने मांग का विरोध करते हुए कहा कि कानून में इसके लिए सात दिन की अवधि तय है। कोर्ट ने कोई स्पष्ट आदेश नहीं दिया, सिर्फ इतना कहा कि कानून में तय समय के भीतर उसे याचिका दाखिल करने की छूट होगी। बता दें कि दिल्ली में 16 दिसंबर 2012 को पैरामेडिकल की छात्र से रात में चलती बस में सामूहिक दुष्कर्म हुआ था। छात्र को गंभीर चोटें पहुंचाई गईं। इलाज के दौरान 29 दिसंबर 2012 को उसकी मौत हो गई। इस मामले में कुल छह अभियुक्त थे, जिनमें से एक अभियुक्त राम सिंह ने तिहाड़ जेल में खुदकशी कर ली थी और एक अन्य दोषी नाबालिग था, जिसका मामला जुविनाइल जस्टिस बोर्ड में चला। बाकी के चार दोषियों मुकेश, पवन, विनय और अक्षय को निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक ने फांसी की सजा सुनाई थी।

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