'कुछ देर पहले जिंदा था फिर बन गया लाश'- पढ़िए, पंजाब के रतन की दर्दनाक कहानी
रतन बताती हैं- दर्द से छटपटाते मैंने तीन और लोगों को देखा। साथ ही कराहते हुए 12 साल के बच्चे को भी देखा जो मुझसे वहां से न जाने की विनती कर रहा था।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। तारीख-13 अप्रैल 1919 को पंजाब के जलियांवाला बाग में अंग्रेजों की गोलियों से देशभक्तों के शरीर छलनी पड़े थे। इसी बाग के निकट रतन देवी का घर था। वह गोलियों की आवाज सुनकर दौड़कर वहां पहुंची तो वहां देखा तो शवों के ढेर लगे थे। उन ढेरों में वह अपने पति को तलाश रही थीं। उनकी पीड़ा और आंसू केंद्रीय पर्यटन मंत्रालय द्वारा लाल किले में तैयार कराए गए संग्रहालय में महसूस किए जा सकते हैं। इस संग्रहालय को याद-ए-जलियां नाम दिया गया है।
संग्रहालय में रतन देवी की फोटो के साथ उनका बयान भी है, जिसमें वह कहती हैं- 'जलियांवाला बाग के निकट ही मेरा घर था। गोलियों की आवाज सुनकर मैं दौड़कर वहां पहुंची और देखा कि वहां शवों के ढेर पड़े थे। उनमें से मैंने अपने पति को खोजा। दो और लोग अपने घरवालों को ढूंढ़ रहे थे। मैंने उनसे एक चारपाई ला देने के लिए कहा ताकि अपने पति का शरीर घर ले जा सकूं। कर्फ्यू लग चुका था, कोई भी मेरी मदद नहीं कर सका। तब तक रात के दस बज चुके थे। मैं बस इंतजार करती रही और रोती रही। कोई मदद न मिलने पर मैं हारकर वहीं बैठ गई। कुत्तों को भगाने के लिए मैंने एक छड़ी खोज ली।
वहीं, दर्द से छटपटाते मैंने तीन और लोगों को देखा। साथ ही कराहते हुए 12 साल के बच्चे को भी देखा, जो मुझसे वहां से न जाने की विनती कर रहा था। मैंने उससे कहा कि क्या मैं उसे कुछ ओढ़ा दूं, मगर उसे पानी चाहिए था। मैं पानी कहां से लाती। सुबह छह बजे मेरी गली के कुछ लोग चारपाई लेकर आए और पति के शरीर को मैं अपने घर ले जा सकी। अपनी पीड़ा को व्यक्त करना मेरे लिए संभव नहीं है। शवों के ढेर पड़े थे...कुछ पेट के बल तो कुछ पीठ के बल। उनमें कुछ छोटे-छोटे मासूम बच्चे भी थे। सारी रात रोती बिलखती इधर-उधर लाशों को देखती रही।'
यहां पर बता दें कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (एएसआइ) द्वारा बनाए गए याद-ए-जलियां संग्रहालय में महत्वपूर्ण साक्ष्य जुटाए गए हैं। इसी साल 23 जनवरी को इसे शुरू किया गया है। यहां बड़ी संख्या में पर्यटक आते हैं। संग्रहालय में दस्तावेजों को पढ़ने पर जलियांवाल बाग नरसंहार आंखों के सामने आ जाता है। संग्रहालय को जलियांवाला बाग का स्वरूप दिया गया है। अमृतसर स्थित स्मारक की तरह कुआं भी बनाया गया है। उन ज्ञात लोगों के नाम लिखे गए हैं जो अंग्रेजों द्वारा चलाई गई गोली में मारे गए थे। एएसआइ के अनुसार जलियांवाला बाग में हजारों लोगों के मारे जाने की बात कही गई है, लेकिन अमृतसर के जिलाधिकारी कार्यालय के रिकार्ड में 300 लोगों के मारे जाने की ही जानकारी मिल सकी है।
ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी यह घटना
जलियांवाला बाग हत्याकांड ने भारतीय स्वतंत्रता संग्राम पर सर्वाधिक प्रभाव डाला था। ऐसा माना जाता है कि यह घटना भारत में ब्रिटिश शासन के अंत की शुरुआत बनी। किसी कवि ने लिखा है - जलियां की धरती रक्त सनी घर घर से बागी निकल पड़े, हर आंगन से आवाज उठी भारत को मुक्त कराना है।' वर्ष 1997 में ब्रिटेन की महारानी एलिजाबेथ द्वितीय ने अमृतसर स्थित इस स्मारक पर मृतकों को श्रद्धाजलि दी थी। वर्ष 2013 में ब्रिटिश प्रधानमंत्री डेविड कैमरून भी इस स्मारक पर आए थे। विजिटर्स बुक में उन्होंनें लिखा कि ब्रिटिश इतिहास की यह एक शर्मनाक घटना थी।