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काला पानी ही नहीं, काला आम भी था क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजों का अहम हथियार

धन सिंह कोतवाल ने हजारों कैदियों को जेल से रिहा कराकर क्रांतिकारियों की सेना में शामिल कर दिया था।

By JP YadavEdited By: Published: Thu, 10 May 2018 04:00 PM (IST)Updated: Sat, 12 May 2018 02:15 PM (IST)
काला पानी ही नहीं, काला आम भी था क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजों का अहम हथियार
काला पानी ही नहीं, काला आम भी था क्रांतिकारियों के खिलाफ अंग्रेजों का अहम हथियार

नोएडा (धर्मेंद्र चंदेल)। मेरठ से 10 मई, 1857 को अंग्रेज सरकार के खिलाफ प्रथम स्वतंत्रता संग्राम में गौतमबुद्ध नगर के दादरी के क्रांतिकारियों का भी महत्वपूर्ण योगदान रहा था। हालांकि, पकड़े गए 84 क्रांतिकारियों को बुलंदशहर के काला आम पर एक साथ फांसी दे दी गई थी।

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वहीं, इससे पहले मेरठ में मंगल पांडे और धन सिंह कोतवाल गुर्जर के नेतृत्व में बिगुल बजने के बाद दादरी से भी बड़ी संख्या में क्रांतिकारियों के साथ किसानों और मजदूरों ने दिल्ली चलो के नारे के साथ कूच कर दिया था।  धन सिंह कोतवाल ने हजारों कैदियों को जेल से रिहा कराकर क्रांतिकारियों की सेना में शामिल कर दिया था। इस आन्दोलन को इतिहासकारों द्वारा सबसे बड़ी सशस्त्र क्रांति भी कहा जाता है।

दस मई को मेरठ से अंग्रेजों के खिलाफ जैसे ही क्रांति की शुरुआत हुई तो देखते ही देखते दादरी और बुलंदशहर में भी आन्दोलन शुरू हो गया। यहां के ग्रामीण भी अंग्रेजों को खदेड़ने के लिए क्रांतिकारियों के साथ मिल गए।

दादरी क्षेत्र में युद्ध की कमान दादरी के राजा राव उमराव सिंह भाटी ने संभाली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का नेतृत्व किया। मेरठ के बहसूमा और परीक्षित की सेना के साथ ग्रामीणों का नेतृत्व राव कदम सिंह नागर ने किया। दूसरी तरफ इनके साथ मालागढ़ के नवाब वलीदाद खां ने भी अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया था।

बागपत क्षेत्र से शाहमल गुर्जर और सरधना क्षेत्र में नरपत सिंह ने क्रांतिकारियों का नेतृत्व किया। क्रांतिकारियों ने दादरी, बुलंदशहर, गाजियाबाद और सिकंदराबाद को अपने कब्जे में ले लिया था। इन शहरों से अंग्रेज सेना को खदेड़ दिया गया।

वहीं अपनी सत्ता हिलती देख अंग्रेजों ने जल्द से जल्द इस क्रांति को कुचलने के लिए आगे बढ़ाना शुरू कर दिया। इसके लिए दिल्ली और मेरठ पर हमले के लिए बर्नाड के नेतृत्व में सेना बुलाई गई। मेरठ में रुकी अंग्रेजी सेना को हरनंदी (हिंडन) पार कर दिल्ली के पास बुलाया।

दिल्ली के बादशाह ने राव उमराव सिंह भाटी से सहायता मांगी, ताकि अंग्रेजी सेना को हरनंदी पर रोक जा सके। राव उमराव सिंह भाटी ने दादरी बुलंदशहर के गांवों के क्रांतिकारियों के साथ गाजियाबाद में हरनंदी के पुल के पास अंग्रेजी सेना पर हमला बोल दिया। 30 और 31 मई 1857 को गाजियाबाद के हरनंदी पर अंग्रेज सेना को दिल्ली जाने से रोकने के लिए जमकर लड़ाई हुई। क्रांतिकारियों ने अंग्रेज सेना को मुंहतोड़ जवाब दिया।

गाजियाबाद में मौजूद हैं कब्रें

दो दिन चली इस लड़ाई में सैकड़ों की संख्या में क्रांतिकारी शहीद हुए लेकिन अंग्रेजों को भागना पड़ा। गाजियाबाद के हरनंदी पुल के समीप आज भी उनकी कब्र मौजूद हैं। इस युद्ध के बाद दादरी और बुलदंशहर क्षेत्र में अंग्रेजी चौकियों को नष्ट कर दिया गया। सिकंद्राबाद में अंग्रेजों का खजाना लूट लिया गया।

दिल्ली से अलीगढ़ तक अपना आधिपत्य कमजोर होता देख अंग्रेज सेना ने सितंबर में बड़ी सेना लेकर दादरी रियासत पर हमला बोल दिया। अंग्रेजों की प्रशिक्षित सेना के सामने क्रांतिकारियों ने जान लगाकर लड़ाई की, लेकिन उनके आधुनिक हथियारों के सामने क्रांतिकारी बड़ी संख्या में शहीद हुए।

राव उमराव सिंह भाटी उनके चाचा रोशन सिंह भाटी, भाई बिशन सिंह भाटी और अन्य क्रांतिकारियों को एक साथ पकड़ लिया गया। 84 क्रांतिकारियों को एकसाथ बुलंदशहर के काला आम पर फांसी दे दी गई।

इन क्रांतिकारियों को दी गई थी फांसी

दादरी क्षेत्र के जिन 84 क्रांतिकारियों को फांसी दी गई उनमें अट्टा गांव के इंदर सिंह , नत्थू सिंह , जुनैदपुर के दरियाव सिंह नागर, राजपुर के सरजीत सिंह, गुनपुरा के रामबक्श, चिटहैड़ा से फत्ता नंबरदार, लुहारली के मजलिस जमीदार, रानौली के हिम्मत सिंह , नंगली समाना के हरदयाल सिंह, नंगला नैनसुख के झंडू जमीदार व मानसिंह , बील अकबरपुर के हरदे, रूपराम, गहलोत के दीदार सिं , खुगवा वास के सिम्मा, रामसहाय, तिलबेघमपुर के करीम बख्श, चीती के कल्लू जमींदा , मसौता के इंदर सिंह, सैथली के मुंगनी, नंगला चमरू के वंशी प्रमुख थे। इनमें नाम दादरी तहसील में लगे शिलालेख पर अंकित हैं।


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