IIT ग्रेजुएट होकर भी नहीं की नौकरी, पर्यावरण के प्रति प्रेम ने बागवानी को बना दिया व्यवयास का जरिया
आइआइटी दिल्ली से ग्रेजुएट होकर भी वसु गुप्ता ने किसी बड़े संस्थान में नौकरी नहीं की बल्कि अपने पर्यावरण प्रेम व बागबानी के शौक को धीरे-धीरे व्यवसाय में बदल दिया।
नई दिल्ली, रितु राणा। हमारे चारों ओर हरियाली हो, महकते फूल हों, पेड़ों की डाली पर बैठकर चिड़िया चहचाहट कर रही हो, ऐसा मनोरम दृश्य किसे नहीं भाता, इसी शौक में बहुत से लोग अपनी छतों व पार्कों में पौधे लगाते भी हैं लेकिन दिल्ली विश्वविद्यालय में रहने वाले वसु गुप्ता ने अपने इस शौक के चलते खुद को आर्थिक रूप से मजबूत भी बनाया है।
आइआइटी दिल्ली से ग्रेजुएट होकर भी वसु गुप्ता ने किसी बड़े संस्थान में नौकरी नहीं की बल्कि अपने पर्यावरण प्रेम व बागबानी के शौक को धीरे-धीरे व्यवसाय में बदल दिया। 1982 में वसु ने शौक में पौधे लगाने शुरू किए और आज दिल्ली के बड़े- बड़े संस्थानों में उनके पेड़- पौधों की सुगंध महक रही है।
वसु गुप्ता ने बताया कि 38 वर्ष पहले उन्होंने दिल्ली विश्वविद्यालय के नार्थ कैंपस में सुगंधा फॉर्म की शुरुआत की और तभी वह से बागबानी कर रहे हैं। पर्यावरण के प्रति प्रेम के कारण ही उनके अंदर बागबानी का एक जुनून संवार हुआ। उन्होंने कहा कि पहले यह उनका शौक था और अब तो यह पेड़-पौधे उनके जीवन का हिस्सा बन गए हैं।
दिल्ली के बड़े बड़े संस्थानों की शोभा बढ़ा रहे सुगंधा फॉर्म के पौधे
दिल्ली विश्वविद्यालय के लगभग सभी कॉलेज में सुगंधा फॉर्म के पेड़-पौधे लगे हैं, जो कॉलेज की सुंदरता में चार चांद लगा रहे हैं। इसके अलावा दिल्ली की कई नर्सरी व बड़े-बड़े सरकारी व निजी संस्थानों में भी यहीं से पौधे सप्लाई होते हैं। दिल्ली के अलग-अलग क्षेत्रों से आकर भी लोग यहां अपने घर की छत व गार्डन के लिए पौधे ले जाते हैं।
पिता की बागबानी को बेटा बढ़ा रहा आगे
वसु गुप्ता के बेटे विनायक गुप्ता ने बताया कि पिछले दस वर्षों से वही सुगंधा फॉर्म की देखरेख कर रहे हैं। वह खुद संगीतकार हैं लेकिन चाहत है कि वह अपने पिता की इस मेहनत को आगे लेकर जाएं। उन्होंने बताया कि बहुत से लोग बागबानी कर खुद को आर्थिक रूप से मजबूत बना सकते हैं लेकिन इस काम को करने के लिए जुनून होना चाहिए तभी सफलता हासिल होगी। विनायक के साथ उनकी पत्नी गहना भी यही काम कर रही है।
बागबानी के साथ विनायक लैंड सकैपिंग व गार्डन डिसाइनिंग का काम भी करते हैं। उनके पिता ने अकेले जो काम शुरू किया था आज उसकी देखरेख 4-5 लोग मिलकर कर रहे हैं। उन्होंने बताया कि पिता को पेड़-पौधों से इतना प्यार है कि उन्होंने अपना पूरा जीवन बागबानी में लगा दिया और इसी को अपनी आजीविका का साधन भी बनाया। उन्होंने कहा कि पेड़-पौधे जीवित होते हैं जिन्हें हमें समय देना होता है। जैसे हम एक बच्चे का पालन पोषण करते हैं, ठीक वैसे ही वह अपने पौधों की देखरेख भी करते हैं।
1.2 एकड़ जमीन पर कर रहे बागबानी
विनायक ने बताया कि वह दिल्ली विश्वविद्यालय स्थित 1.2 एकड़ जमीन पर बागबानी करते हैं। जिसमें 200 से अधिक किस्म के पेड़-पौधे वह उगाते हैं। इनमें फल, फूल, सब्जी, औषधीय पौधे, सदाबहार सजावटी पौधे आदि की बागबानी करते हैं। वहीं, कुछ पौधे जो दिल्ली की जलवायु में नहीं होते वह बाहर से मंगाकर यहां सप्लाई करते हैं।