जामा मस्जिद में इफ्तारः यहां आप पाएंगे कि इंसानियत में धर्म की सरहदें नहीं होतीं
जामा मस्जिद के आसपास के बाजार को सलीके से सजाया गया है। गेट नंबर-एक के सामने भीड़भाड़ ज्यादा है।
नई दिल्ली (नेमिष हेमंत)। दरियागंज की जहां सीमा खत्म होती है, वहां से एक रास्ता ऐतिहासिक जामा मस्जिद की ओर जाता है। श्रद्धा की तस्वीर रास्ते में दिखने लग जाती है। कुर्ता पायजामा पहने और सिर पर टोपी लगाए लोगों के कदम तेजी से बढ़े जा रहे हैं। साथ में महिलाएं और बच्चे। आकाश में लालिमा है। यह इफ्तारी का समय है।
इस दौरान रास्ते में दोनों तरफ तरह-तरह के पकवान, फल और खजूर की दुकानें लगी हैं। पकौड़ी की दुकान पर भीड़ ज्यादा है। जामा मस्जिद के आसपास के बाजार को सलीके से सजाया गया है। गेट नंबर-एक के सामने भीड़भाड़ ज्यादा है। इसमें काफी विदेशी पर्यटक भी दिख रहे हैं।
एक विदेशी पर्यटक के दो बच्चे चारों तरफ देखकर माहौल को भांपने की कोशिश कर रहे हैं। फिर वे अपनी मां के माध्यम से जिज्ञासा शांत करते हैं। कुछ अन्य जो हर दृश्य को कैमरे में कैद करने में लगे हैं। एक गाइड पूरे दल को रमजान और इफ्तार में पुरानी दिल्ली के महत्व को बता रहा है।
...और मैं, जामा मस्जिद की ऊंची सीढि़यों से चढ़ने लगता हूं। सामने विशाल दरवाजा, शान से सैकड़ों सालों से खड़ा। जूते निकालकर और सिर को ढंककर मस्जिद में प्रवेश करता हूं। कुछ माह पहले जब आया था तो सिर ढंकने को लेकर टोक दिया गया था। अंदर चहल-पहल, हर उम्र के लोग। मस्ती में दौड़ते बच्चे। 15 घंटे से अधिक का रोजा व्यवहार में परिलक्षित हो रहा है, लेकिन चेहरे पर सुकून का भाव।
खुदा की इबादत में रोजा फर्ज है
सलीके से खुद को ढंके महिलाएं इफ्तारी की तैयारी कर रही हैं। बुजुर्ग से लेकर मस्जिद के आगन में वजू कर लोग हाथ और चेहरे को साफ कर रहे हैं। आंगन से लेकर बरामदे में छत पर भी लोग कतार और समूहों में बैठे हैं। कुछ समूह फल-पकौड़ी समेत अन्य खाने-पीने का सामान प्लेट में सजा रहे हैं, जिसे कतार में बैठे लोगों को दिया जाएगा। मेरे सामने कुछ अखबार बिछा कर बैठे एक दंपती और उनकी छोटी बेटी का इंतजार बढ़ता जा रहा है। तभी एक धमाके और रोशनी के साथ रोजा खोलने का एलान होता है। खुदा को शुक्र अदा करने के साथ लोग इफ्तारी करने लग जाते हैं। नीले आकाश में रोशनी से डूबी जामा मस्जिद की चमक देखते ही बन रही है। हल्की हवा रुहानी अहसास करा रही है। तभी सामने के परिवार से मुझे भी कुछ खाने की पेशकश होती है। मैं भी थोड़ा सा टुकड़ा लेकर मीठी और यादगार यादों के साथ लौट आता हूं।