30 साल से अधिक देश के करोड़ों युवाओं को जरूर पढ़नी चाहिए यह खबर
All India Institute Of Medical Science के कार्डिलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज राय ने बताया कि देश में करीब 20 करोड़ लोग हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं इनमें युवा भी शामिल हैं।
नई दिल्ली, जेएनएन। हाइपरटेंशन (High blood pressure) की बीमारी अब कम उम्र में होने लगी है, इसलिए यदि 30 की उम्र पार कर चुके हैं तो ब्लड प्रेशर की नियमित जांच जरूर कराएं। इससे पीड़ित ज्यादातर लोगों को बीमारी का पता नहीं होता। शहरी क्षेत्र में हर तीन में से एक व्यक्ति हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। ग्रामीण क्षेत्र में भी यह बीमारी बढ़ रही है। चिंताजनक यह है कि करीब 10 फीसद मरीज ही बीमारी का पूरा इलाज कराते हैं और ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखते हैं। शेष ब्लड प्रेशर नियंत्रित नहीं रख पाते। कई शोध पत्रों के आंकड़ों पर आधारित समीक्षात्मक अध्ययन (मेटा एनालिसिस) में यह बात सामने आई है।
अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (All India Institute Of Medical Science) के कार्डिलॉजी विभाग के प्रोफेसर डॉ. अंबुज राय ने बताया कि देश में करीब 20 करोड़ लोग हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। इसमें से करीब दो करोड़ लोग अपना ब्लड प्रेशर नियंत्रित रखते हैं। उन्होंने कहा कि शहरी क्षेत्र में 30 व ग्रामीण क्षेत्र में करीब 25 फीसद लोग इस बीमारी से पीड़ित हैं। इनमें से ज्यादातर लोगों को अपनी बीमारी के बारे में मालूम नहीं होता। ऐसे में इलाज नहीं कराते।
ऐसे भी लोग हैं, जिन्हें बीमारी के बारे में मालूम तो होता है फिर भी वे नजरअंदाज करते हैं। वे ब्लड प्रेशर नियंत्रित नहीं रखते। हृदय की बीमारियों से सबसे अधिक मौतें होती हैं। हाइपरटेंशन हार्ट अटैक, ब्रेन स्ट्रोक व किडनी खराब होने का सबसे बड़ा कारण है। हाइपरटेंशन को साइलेंट किलर भी कहा जाता है। हाइपरटेंशन होने पर यदि ब्लड प्रेशर नियंत्रित न रखा जाए तो आंख की रोशनी भी प्रभावित हो सकती है। आंखों की नसों से रक्त स्त्राव का खतरा रहता है। उन्होंने कहा कि वेलनेस सेंटरों के माध्यम से स्क्री¨नग कार्यक्रम शुरू करने की बात हो रही है। स्क्रीनिंग के बाद इस बीमारी से पीड़ित लोगों को सरकार को निशुल्क दवा उपलब्ध कराना चाहिए।
बीएलके कार्डियक सर्जरी विभाग के विभागाध्यक्ष डॉ. अजय कौल ने कहा कि हृदय की बीमारी से पीड़ित होकर ऐसे युवा पहुंचते हैं, जिन्हें पहले से मालूम नहीं होता कि वे हाइपरटेंशन से पीड़ित हैं। डॉक्टर कहते हैं कि 30 साल से अधिक उम्र वाले लोगों को नियमित ब्लड प्रेशर की जांच करानी चाहिए। जीवन शैली में बदलाव व योग से इस बीमारी से बचाव संभव है। तनाव व भागदौड़ भरी जीवन शैली से यह बीमारी बढ़ रही है।
जानें ये अहम बातें
गर्मियों के मौसम में आमतौर पर ब्लड प्रेशर सर्दियों की तुलना में 10 मि.मी. कम हो जाता है। ऐसा इसलिए क्योंकि सर्दियों में रक्तवाहिनी (ब्लड वेसेल्स)ठंड के कारण सिकुड जाती हैं और गर्मियों में यानी अप्रैल-मई में जब तापमान में वृद्धि होती है, तो रक्तवाहिनियां फैल जाती हैं और धमनियों पर ब्लड का प्रेशर कम होता है।
हाई ब्लड प्रेशर के मरीज डॉक्टर से परामर्श कर अपनी दवा की डोज को कम कर सकते हैं। इसी प्रकार जो व्यक्ति हाई ब्लड प्रेशर के इलाज के लिए डाईयूरिक दवाएं (जिनसे पेशाब ज्यादा होती है) लेते हैं, उन्हें इन दवाओं की मात्रा कम कर देनी चाहिए।
ऐसा देखा गया है कि जो लोग इन दवाओं का सेवन करते हैं, उनमें गर्मी में पसीना आने के कारण शरीर में पानी की कमी (डीहाइडे्रशन) तथा आवश्यक लवण सोडियम की कमी हो जाती है। इसके परिणास्वरूप सुस्ती, उदासी, कमजोरी महसूस होती है। ऐसी दवाओं को डॉक्टर के परामर्श से बंद कर देना चाहिए।
हाई बीपी से बचने की सलाह
1. जितना संभव हो नमक का इस्तेमाल कम करें
2. सलाद आदि में अतिरिक्त नमक के प्रयोग से बचें
3. चटनी, आचार जैसी चीजों से परहेज करें
4. अधिक तैलीय भोजन से दूर रहें
5. समय से सोएं व सुबह जल्दी उठें
6. सुबह या शाम टहलने अवश्य जाएं
7. परिश्रम से बचने की कोशिश न करें
8. तनाव छोड़ सुकून की जिंदगी जिएं
यहां पर बता दें कि अब तक सिस्टोलिक 140 व डाइस्टोलिक 90 ब्लड प्रेशर को डॉक्टर सामान्य मानते थे, लेकिन अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन (एएचए) व अमेरिकन कॉलेज ऑफ कार्डियोलॉजी (एसीसी) की नई गाइड लाइन से बीपी की परिभाषा बदल गई है।
इसके तहत ऐसे लोग जिनका बीपी 130 व 80 है उन्हें ही सामान्य माना जाएगा। इसके अलावा सिस्टोलिक 130 से 140 व डाइस्टोलिक 80 से 90 के बीच रहे तो अतिरिक्त एहतियात बरतने की जरूरत है। हालांकि ऐसे लोगों को दवा की बजाय लाइफ स्टाइल व खानपान सुधारकर बीपी कम करने के सलाह दी गई है।
नई गाइडलाइन के मुताबिक हाई बीपी की नई परिभाषा का लाभ 20 से 25 फीसद आबादी को मिलेगा। कारण यह कि वह अपना बीपी कंट्रोल करने के लिए प्रयासरत रहेगी। गाइड लाइन के अनुसार 130 व 80 बीपी को सामान्य जरूर माना गया है, लेकिन इसका यह अर्थ कतई नहीं है कि इससे ऊपर होते ही दवा शुरू कर दी जाए।
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