Kisan Andolan: साजिश को नहीं समझ पाई पुलिस व आइबी, इंटेलीजेंस की चूक मान रहे हैं लोग
उपद्रवियों की संख्या करीब 40 हजार थी सुरक्षाकर्मियों की संख्या आधी भी नहीं थी। लिहाजा सभी जगह उपद्रवियों के सामने सुरक्षाकर्मी मूक दर्शक ही नजर आए। पुलिस अधिकारी का कहना है कि जब इतने बड़े पैमाने पर उपद्रवियों का जमावड़ा हो जाए व्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाता है।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। ट्रैक्टर परेड की आड़ में उपद्रवियों ने मंगलवार को दिनभर जिस तरह से दिल्ली की सड़कों पर उत्पात मचाया। इसमें दिल्ली पुलिस के अलावा आइबी आदि सुरक्षा एजेंसियों की बड़ी चूक मानी जा रही है। सिघु, टीकरी व गाजीपुर की सीमाओं से जिस तरीके से हजारों की संख्या में उपद्रवी नई दिल्ली की सीमा आइटीओ तक पहुंच गए।
उससे माना जा रहा है कि पुलिसकर्मियों को तनिक भी आभास होता तो मजबूत सुरक्षा व्यवस्था की पहले तैयारी कर ली जाती। नई दिल्ली में घुसने से रोकने पर उपद्रवियों का झुंड बाद में लालकिला भी पहुंच गया।
दिल्ली पुलिस यह सोचकर चल रही थी कि जिन शर्तो पर ट्रैक्टर परेड निकालने की इजाजत दी गई है। किसान उन्हीं रूटों पर सीमा से सटे इलाके में परेड निकालेंगे। उसी के अनुरूप दिल्ली पुलिस ने सुरक्षा के बंदोबस्त किए थे। सीमाओं पर 5-6 स्तर की मजबूत बैरिके¨डग किए गए थे ताकि किसानों को मध्य दिल्ली तो दूर रिंग रोड पर भी परेड न निकालने दें। इसलिए केवल सीमाओं पर ही बैरिके¨डग की गई थी।
हजारों की संख्या में उपद्रवी जब पुलिस की सुरक्षा व्यवस्था को धता बताते हुए लगातार मध्य दिल्ली की तरफ बढ़ते चले गए तब पुलिसकर्मियों में अफरा-तफरी मच गई। आनन- फानन में कहीं डीटीसी बसों को सड़कों पर बैरिके¨डग के तौर पर खड़ी की गई तो कहीं सीमेंट के बने मजबूत बैरिकेड लगाए गए। उपद्रवी जब ट्रैक्टरों से सारे बैरिकेड तोड़ते व हटाते हुए आइटीओ तक पहुंच गए तब पुलिसकर्मियों के पसीने छूट गए।
उपद्रवियों की संख्या करीब 40 हजार थी उनके सामने सुरक्षाकर्मियों की संख्या आधी भी नहीं थी। लिहाजा सभी जगह उपद्रवियों के सामने सुरक्षाकर्मी मूक दर्शक ही नजर आए। पुलिस अधिकारी का कहना है कि अचानक जब इतने बड़े पैमाने पर उपद्रवियों का जमावड़ा हो जाए तब कानून व्यवस्था को संभालना मुश्किल हो जाता है।
सड़कों पर हजारों की संख्या में ट्रैक्टर-टाली के साथ दिल्ली की सीमा में प्रवेश करने वाले आंदोलनकारी किसानों से दिल्ली को अशांत होने से बचाना दिल्ली पुलिस के सामने एक बड़ी चुनौती थी। कश्मीरी गेट, लाल किला, अक्षरधाम, आइटीओ, नांगलोई, मुकरबा चौक, बुराड़ी बाईपास समेत कई मार्गो पर उग्र हुए किसानों को रोकने में पुलिस को खासी मशक्कत करनी पड़ी। हालांकि, तनावपूर्ण स्थिति होने के बाद भी दिल्ली पुलिस ने दिल्ली को अशांत नहीं होने दिया और स्थिति पर काबू पाने में कामयाब रही।
पूर्व पुलिस आयुक्त निखिल कुमार का कहना है कि किसानों की ट्रैक्टर-रैली को लेकर दिल्ली पुलिस के ऊपर काफी दबाव था और पुलिस के सामने जो विकट स्थिति थी, उस हिसाब से दिल्ली पुलिस इससे सही ढंग से निपटी।
उन्होंने कहा कि इतने बड़े पैमाने पर आंदोलन हो तो योजना के तहत कुछ होना मुश्किल हो जाता है, लेकिन फिर भी हजारों की संख्या में किसानों के दिल्ली में घुसने के बाद दिल्ली को अशांत नहीं होने दिया। हालांकि, उनका यह भी कहना है कि पुलिस ने किसानों की रैली के लिए जो मार्ग तय किया था, उसे फॉलो करवाना था।
वहीं दूसरी तरफ उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी प्रकाश सिंह का कहना है कि दिल्ली पुलिस के सामने सबसे आसान था कि वह रैली की अनुमति देने से इन्कार कर देती, लेकिन ऐसा मेरा व्यक्तिगत मानना है कि केंद्र सरकार रैली से इन्कार कर किसानों को मौका नहीं देना चाहती थी।
दिल्ली पुलिस के सामने यह बड़ी मुश्किल थी कि ट्रैक्टर-ट्रॉली को दिल्ली में आने की अनुमति दें और इसे नियंत्रित भी रखें। प्रकाश सिंह का कहना है कि जिस तरह की स्थिति या माहौल बन चुका था, उसमें जिस तरह की गड़बड़ी हुई उसमें कोई आश्चर्य नहीं था।
उनका कहना है कि जो कुछ हुआ दुर्भाग्यपूर्ण है, लेकिन दिल्ली पुलिस के साथ सहानुभूति की जा सकती है, क्योंकि स्थिति को नियंत्रित करना मुश्किल था, लेकिन अगर पुलिस की गोली से कोई नहीं मरा तो इसका श्रेय दिल्ली पुलिस को जाता है।
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