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Kisan Andolan: किसानों के आंदोलन की धार कुंद होने के पीछे एक नई वजह आ रही सामने, जानिए क्या है कारण

कृषि कानून के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा आंदोलन अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। धरना स्थल पर बचे चंद लोगों को देखकर किसान नेताओं के चेहरे पर मायूसी है। किसान नेता अपनी यूनियन को मजबूत दिखाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं

By Vinay Kumar TiwariEdited By: Published: Tue, 20 Apr 2021 01:33 PM (IST)Updated: Tue, 20 Apr 2021 01:33 PM (IST)
Kisan Andolan: किसानों के आंदोलन की धार कुंद होने के पीछे एक नई वजह आ रही सामने, जानिए क्या है कारण
धरना स्थल पर बचे चंद लोगों को देखकर किसान नेताओं के चेहरे पर मायूसी है।

जागरण संवाददाता, दिल्ली/साहिबाबाद। कृषि कानून के विरोध में दिल्ली की सीमाओं पर चल रहा आंदोलन अब अपनी अंतिम सांसें गिन रहा है। धरना स्थल पर बचे चंद लोगों को देखकर किसान नेताओं के चेहरे पर मायूसी है। किसान नेता यहां भीड़ बढ़ाने और अपनी यूनियन को मजबूत दिखाने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं मगर कोई कामयाबी हाथ नहीं लग रही है।

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अब दिल्ली में लॉकडाउन लग जाने की वजह से उनके आंदोलन में लोगों की संख्या और भी कम हो गई है। साथ ही यहां पर जो सुविधाएं उनको अब तक मिल रही थी, उनमें भी कमी होने का अंदेशा है। दिल्ली सरकार ने लॉकडाउन की घोषणा कर दी है, जरूरी सेवाओं को जारी रखने की अनुमति दे दी है मगर इस तरह के धरना प्रदर्शनों में शामिल होने के लिए कोई इजाजत नहीं है। उधर यूपी में धारा 144 लागू है उसके बाद भी लोग यहां जमा है।

इस वजह से कम होती जा रही भीड़

तीन नए कृषि कानूनों के विरोध में यूपी गेट पर नवंबर 2020 से भारतीय किसान यूनियन (भाकियू) के बैनर तले धरना शुरू हुआ। धरना स्थल पर हजारों की भीड़ भी जुटी, जिसमें पंचायत चुनाव के संभावित प्रत्याशियों ने अपने लाव-लश्कर लेकर एड़ी-चोटी का पूरा जोर लगाया। पंचायत चुनाव के साथ ही धरना स्थल पर प्रदर्शनकारियों की संख्या रोजाना कम हो रही है। आलम यह है कि अब यहां मंच खाली है, पंडाल और टेंट सूने पड़े हैं और दूर तक सन्नाटा पसरा है।

नए कृषि कानूनों के विरोध में कई संगठनों ने साथ मिलकर नवंबर 2020 में दिल्ली चलने का आह्वान किया था। शासन-प्रशासन की ओर से दिल्ली की व्यवस्था बिगड़ने से बचाने के लिए प्रदर्शनकारियों को उत्तर प्रदेश व हरियाणा के बार्डर पर ही रोक दिया था। सरकार ने प्रदर्शनरत विभिन्न संगठनों के नेताओं के प्रतिनिधिमंडल से उनकी मांगों को लेकर बातचीत का दौर शुरू किया। कई दौर तक चली बातचीत में कुछ संगठन के लोग राजी हुए तो कुछ अड़े रहे। बातचीत का दौर बेनतीजा खत्म हुआ।

समर्थकों की भीड़ के साथ पहुंचे थे, फिर वापस लौट गए

इस बीच पंचायत चुनाव की सुगबुगाहट के साथ ही संभावित प्रत्याशी भी प्रदर्शन में शामिल होने के लिए न सिर्फ खुद पहुंचे बल्कि समर्थकों की भीड़ के साथ ट्राली और गाड़ियों में राशन लेकर आने लगे। उन्हें लगा कि प्रदर्शन की सीढ़ी के सहारे ही वह गांव में बनने वाली सरकार की कुर्सी तक का रास्ता तय करेंगे। इसमें उन्होंने अपने खर्च पर समर्थकों की भीड़ यूपी गेट तक लाने में जान झोंक दी। मकसद एक ही था कि यूपी गेट में प्रदर्शन की सहानुभूति बटोरकर गांव में अपनी सरकार बनाई जाए। अब जैसे ही पंचायत चुनाव संपन्न होने लगे तो यहां प्रदर्शनकारियों की संख्या भी घट गई। मंच दिन भर सूना है तो सामने के पंडाल में भी लगे कूलर और पंखों के नीचे चंद लोग सोकर वक्त बिता रहे हैं।

भूख हड़ताल पर बैठने वालों के लाले

यूपी गेट धरना स्थल के मंच पर पिछले काफी समय से 10 लोग प्रतिदिन एक दिन की भूख हड़ताल पर बैठे नजर आते थे। मंच का संचालन चलता रहता था, लेकिन अब कई दिनों से भूख हड़ताल पर बैठने के लिए कोई एक व्यक्ति भी मंच पर नजर नहीं आ रहा है। मंच एकदम से खाली नजर आता है।

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