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दिल्ली के सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी, 17 दिन में 19 हुई संख्या

महर्षि वाल्मीकि अस्पताल में 17 दिनों में डिप्थीरिया के शिकार 19 बच्चों की मौत हो चुकी है। अस्पताल में करीब एक वर्ष से पर्याप्त टीके नहीं हैं। मौतों की वजह केवल सरकारी लापरवाही है।

By Amit SinghEdited By: Published: Sun, 23 Sep 2018 10:10 AM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 05:47 PM (IST)
दिल्ली के सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी, 17 दिन में 19 हुई संख्या
दिल्ली के सरकारी अस्पताल में बच्चों की मौत का सिलसिला जारी, 17 दिन में 19 हुई संख्या

नई दिल्ली (जेएनएन)। बाहरी दिल्ली के किंग्सवे कैंप स्थित उत्तरी दिल्ली नगर निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में डिप्थीरिया (दमघोंटू) के शिकार बच्चों की मौत का सिलसिला जारी है। दो दिन पहले तक इस अस्पताल में बच्चों की मौत का आंकड़ा 13 था, जो अब बढ़कर 19 हो चुका है। एक बच्चे ने सोमवार को दम तोड़ा है। ये मौतें महज 17 दिन में हुई हैं।

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निगम के अनुसार रविवार को छह नए मरीज पश्चिमी उत्तर प्रदेश के इलाकों से अस्पताल में दाखिल हुए। इस माह अभी तक डिप्थीरिया से पीड़ित 153 बच्चे अस्पताल में भर्ती किए जा चुके हैं। बच्चों की इस मौत के पीछे केवल सरकारी लापरवाही जिम्मेदार है। बताया जा रहा है कि अस्पताल में पिछले करीब एक वर्ष से डिप्थीरिया का पर्याप्त टीका नहीं है। ये बात अस्पताल प्रबंधन को अच्छे से पता थी। अस्पताल प्रबंधन अच्छी तरह से जानता है कि इस सीजन में बच्चे तेजी से इस खतरनाक संक्रमण का शिकार होते हैं। बावजूद समय रहते पुख्ता इंतजाम नहीं किए गए।

सीआरआइ, कसौली से कोई इंजेक्शन लेने ही नहीं गया
हिमाचल प्रदेश के कसौली स्थित केंद्रीय अनुसंधान संस्थान (सीआरआइ) से अस्पताल को डिप्थीरिया के इंजेक्शन की आपूर्ति कम हुई थी। इस बीच अस्पताल की यह लापरवाही भी सामने आई कि 200 वायल इंजेक्शन बनकर तैयार होने के बावजूद उसे लाने के लिए किसी कर्मचारी को कसौली नहीं भेजा गया। 13 बच्चों की मौत होने के बाद तीन दिन पहले अस्पताल प्रबंधन ने एक कर्मचारी को टीका लेने के लिए हिमाचल भेजा है। साथ ही शनिवार शाम को अस्पताल प्रबंधन ने 300 टीकों का इंतजाम किया था।

दो अफसरों पर गिर सकती है गाज
उत्तरी दिल्ली निगम के महर्षि वाल्मीकि संक्रामक रोग अस्पताल में हुई बच्चों की मौत के मामले में अब निगम सक्रिय हो गया है। सोमवार को इसको लेकर निगम में काफी हलचल दिखाई दी। इस पूरे मामले में निगमायुक्त मधुप व्यास अब भी चुप्पी साधे हुए हैं, कुछ भी बोलने से बच रहे हैं।

सूत्रों के मुताबिक, इस संबंध में सोमवार को जांच समिति की बैठक हुई। इस बैठक में प्रारंभिक स्तर पर अस्पताल के चिकित्सा अधीक्षक की लापरवाही सामने आई है। साथ ही अस्पताल के प्रशासनिक विभाग के अलावा निगम मुख्यालय के कुछ अधिकारियों की भी संदिग्ध भूमिका इस मामले में मानी जा रही है। उत्तरी दिल्ली के महापौर आदेश गुप्ता ने बताया कि अधिकारियों के छुट्टी पर होने की वजह से जांच तीन दिन के लिए बढ़ा दिया गया है। अब बुधवार तक निगम अधिकारियों को इस संबंध में रिपोर्ट सौंपने के निर्देश दिए हैं। निगम के अनुसार अतिरिक्त आयुक्त स्वास्थ्य ने सोमवार को अस्पताल का दौरा किया।

निगमायुक्त की कार्यशैली पर भी उठ रहे सवाल
डिप्थीरिया से मासूमों की मौत के मामले में निगमायुक्त मधुप व्यास की कार्यशैली पर भी सवाल खड़े हो रहे हैं। सवाल उठ रहा है कि आखिर क्यों समय रहते दवा नहीं मंगाई गई। क्या इसको लेकर कभी समीक्षा बैठक में यह बात सामने नहीं आई कि डिप्थीरिया से निपटने के लिए इंजेक्शन निगम के पास नहीं है, अगर नहीं है तो इसकी व्यवस्था कैसे और कहां से करनी है।

बढ़ रही है लोगों में जागरूकता
उत्तरी दिल्ली निगम के स्वास्थ्य विभाग के एक अधिकारी के अनुसार, अस्पताल में आने वाले मरीज बच्चे अब समय रहते भर्ती कराए जा रहे हैं। अधिकारी ने बताया कि मीडिया में यह मामला सामने आने के बाद अब अभिभावक अपने बच्चे को किसी और अस्पताल लेकर जाने की बजाय सीधे इसी अस्पताल लेकर आ रहे हैं। उन्होंने बताया कि पहले बच्चे बहुत गंभीर स्थिति में अस्पताल में दाखिल हो रहे थे, लेकिन अब लोगों को जैसे ही बीमारी का अंदेशा हो रहा है तो वह बच्चे को सीधे अस्पताल लेकर आ रहे हैं। इससे चिकित्सकों को इलाज करने में आसानी हो रही है।


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