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केजरीवाल की योजना से बिगड़ी स्वास्थ्य सेवाएं, HC के गुस्से से बैकफुट पर सरकार

जीटीबी अस्पताल में आधे हुए मरीज, अन्य अस्पतालों में मरीजों का बोझ हुआ दोगुना। दिल्ली का मतदाता पहचान पत्र दिखाने पर स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराने के आदेश को HC में चुनौती।

By Amit SinghEdited By: Published: Fri, 05 Oct 2018 12:51 PM (IST)Updated: Fri, 05 Oct 2018 12:54 PM (IST)
केजरीवाल की योजना से बिगड़ी स्वास्थ्य सेवाएं, HC के गुस्से से बैकफुट पर सरकार
केजरीवाल की योजना से बिगड़ी स्वास्थ्य सेवाएं, HC के गुस्से से बैकफुट पर सरकार

नई दिल्ली (स्वदेश कुमार)। राजधानी के सरकारी अस्पतालों के दरवाजे बाहरी मरीजों के लिए बंद करने की केजरीवाल सरकार की योजना के कारण स्वास्थ्य सेवाएं चरमराने लगी हैं। फिलहाल, प्रायोगिक तौर पर जीटीबी अस्पताल में 80 फीसद सुविधाएं दिल्ली के लोगों के लिए आरक्षित की गई हैं। इस संबंध में एक याचिका पर सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने नाराजगी व्यक्त की है, जिसके बाद से दिल्ली सरकार बैकफुट पर है।

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इस वजह से राजधानी के बाहर से आने वाले मरीजों ने अब दूसरे अस्पतालों में दौड़ लगानी शुरू कर दी है। नतीजतन, कम क्षमता वाले दिल्ली सरकार के अन्य अस्पतालों और निगम के अस्पताल में मरीजों की संख्या दोगुनी से ज्यादा हो गई है। इन अस्पतालों में पंजीकरण से लेकर दवा वितरण में भी अराजक स्थिति हो गई है। कई मरीज दिनभर की मशक्कत के बाद भी बिना इलाज कराए ही लौटने पर मजबूर हो रहे हैं।

गौरतलब है कि यमुनापार के अस्पतालों में उप्र के विभिन्न जिलों से बड़ी संख्या में मरीज पहुंचते हैं। इनमें से अधिकतर लोग जीटीबी अस्पताल जाते थे। यहां मेडिकल कॉलेज के कारण स्वास्थ्य सुविधाएं अन्य अस्पतालों से बेहतर हैं। इस अस्पताल में एक अक्टूबर से 80 फीसद सुविधाएं दिल्ली के मतदाताओं के लिए आरक्षित कर दी गई हैं।

दूसरे राज्यों के मरीजों को न तो अब यहां दवाएं मिल रही हैं और न ही उनकी जांच हो रही है। यहां बेड भी उनके लिए मात्र 20 फीसद ही बचे हैं। अस्पताल में 30 सितंबर तक करीब नौ हजार मरीज प्रतिदिन आते थे। एक अक्टूबर से नई योजना शुरू होते ही बाहर के मरीजों का इलाज लगभग बंद हो गया।

अस्पताल में रजिस्ट्रेशन के लिए 25 काउंटर हैं। इनमें 21 काउंटर दिल्ली के मतदाताओं के लिए आरक्षित हो गए हैं। अन्य चार पर बाहरी के साथ दिल्ली के ऐसे मरीजों का भी रजिस्ट्रेशन होता है, जिनके पास मतदाता पहचान पत्र नहीं है। कई बाहरी मरीजों को गेट पर ही रोक दिया जा रहा है और उन्हें दूसरे अस्पताल में जाने को कहा जा रहा है। इसकी वजह से जीटीबी के पास स्थित निगम के स्वामी दयानंद अस्पताल पर सबसे ज्यादा बोझ बढ़ गया।

इस अस्पताल में एक अक्टूबर से ओपीडी में 50 फीसद तक मरीज बढ़ गए। आपातकालीन विभाग में प्रतिदिन मरीजों की संख्या 350 से बढ़कर 500 तक पहुंच गई है। गीता कॉलोनी स्थित चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय में भी मरीजों की संख्या डेढ़ गुनी हो गई। यहां आश्चर्यजनक रूप से रेफर होकर आने वाले मरीजों की संख्या भी 250 से 500 प्रतिदिन हो गई है। लाल बहादुर शास्त्री अस्पताल, जगप्रवेश चंद्र अस्पताल और हेडगेवार अस्पताल में भी मरीजों की संख्या में 20 से 30 फीसद तक बढ़ोतरी हो गई।

स्वामी दयानंद अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. रजनी कांडपाल ने बताया कि अस्पताल पहले से ही क्षमता से अधिक मरीजों का भार ढो रहे थे। ऐसे में बिना क्षमता में इजाफा किए मरीजों की संख्या बढ़ने से स्थिति चिंताजनक हो गई है। चाचा नेहरू बाल चिकित्सालय के चिकित्सा निदेशक डॉ. अनूप मेहता का कहना है कि इस योजना के साथ यमुनापार में सफाई नहीं होने के कारण भी मरीजों की संख्या बढ़ी है।

निजी लैब व मेडिकल दुकानों की मौज
जीटीबी अस्पताल में सीमित संख्या में जो बाहरी मरीज पहुंच रहे हैं, उन्हें न तो दवा मिल रही है और न ही उनकी कोई भी जांच हो रही है। अस्पताल के गेट नंबर सात के बाहर बड़ी संख्या में निजी लैब खुले हुए हैं, जो अब मनमाने रेट पर इन मरीजों की जांच कर रहे हैं। दवा दुकानों की बिक्री और आमदनी भी काफी बढ़ गई है। एक निजी लैब संचालक ने बताया कि पहले प्रतिदिन चार से पांच हजार रुपये की जांच होती थीं। एक अक्टूबर से औसतन 10 हजार रुपये प्रतिदिन का काम हो रहा है। अस्पताल से बाहर निकले मरीजों को पकड़ने के लिए बड़ी संख्या में दलाल भी सक्रिय हो गए हैं।

सीएम ने जीटीवी अस्पताल का किया दौरा
एक अक्टूबर से दिल्ली के मतदाताओं के लिए 80 फीसद सुविधाएं आरक्षित होने के बाद मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल बृहस्पतिवार को जीटीबी अस्पताल का दौरा करने पहुंचे। यहां उन्होंने चिकित्सा निदेशक डॉ. सुनील कुमार के साथ ओपीडी, वार्ड, फार्मेसी और आपातकालीन विभाग का जायजा लिया। उन्होंने डॉक्टरों और मरीजों से भी बात की। डॉक्टरों ने बताया कि अब भीड़ काफी कम हो गई है।

पत्रकारों से बातचीत में केजरीवाल ने कहा कि दिल्ली सरकार का बजट सीमित है। इसे पूरे देश के लोगों पर खर्च नहीं किया जा सकता है। इसलिए जीटीबी अस्पताल में यह योजना शुरू की गई है। आपातकालीन विभाग में किसी के लिए कोई बंदिश नहीं है। ओपीडी में भी डॉक्टर किसी मरीज को मना नहीं करेंगे। हालांकि उन्होंने यह नहीं बताया कि बाहरी लोगों का रजिस्ट्रेशन सीमित कर दिया गया है। इस योजना के बाद अस्पताल में दलालों के सक्रिय होने के सवाल पर मुख्यमंत्री ने पत्रकारों से सुबूत पेश करने के लिए कहा।

जीटीबी अस्पताल में फिर सबको मिलेगा इलाज
गुरुतेग बहादुर (जीटीबी) अस्पताल में दिल्ली का मतदाता पहचान पत्र दिखाने पर ही स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया कराये जाने वाले आदेश के खिलाफ दायर की गई जनहित याचिका पर बृहस्पतिवार को सुनवाई हुई। गैर सरकारी संगठन सोशल जूरिस्ट की जनहित याचिका पर हाई कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए दिल्ली सरकार ने अदालत को आश्वस्त किया कि जीटीबी अस्पताल में किसी भी मरीज को इलाज से इन्कार नहीं किया जाएगा।

दिल्ली सरकार ने मुख्य न्यायमूर्ति राजेंद्र मेनन व न्यायमूर्ति वीके राव की पीठ को बताया कि आपातकालीन और जांच सुविधा देने से किसी भी व्यक्ति को इंकार नहीं किया जाएगा। दिल्ली सरकार के वकील राहुल मेहरा ने मांग की कि इस मामले में कोर्ट कोई अंतरिम आदेश न जारी करे। उन्होंने अनुरोध किया कि इस मामले में 8 अक्टूबर को सुनवाई की जाए और उन्हें इससे जुड़े तथ्यों को अदालत के समक्ष पेश करने की अनुमति दी जाए।

मुख्य पीठ ने सुबह के सत्र में याचिका पर सुनवाई करते हुए दिल्ली सरकार के पायलट प्रोजेक्ट को अस्वीकृत करने का संकेत दिया। फिर दिल्ली सरकार को दोपहर के बाद अपना रुख स्पष्ट करने को कहा। राहुल मेहरा ने कहा कि जनहित याचिका में गलत तरीके से मामले को पेश किया गया है। पीठ ने जब कहा कि वह मामले में शुक्रवार को सुनवाई करेगी तो राहुल मेहरा ने 8 अक्टूबर तक समय देने की मांग की और अदालत को आश्वस्त किया कि अस्पताल में इलाज उपलब्ध कराने से किसी मरीज को इन्कार नहीं किया जाएगा।

बता दें कि एनजीओ की तरफ से वकील अशोक अग्रवाल ने याचिका दायर कर दिल्ली सरकार द्वारा जारी उस आदेश को चुनौती दी जिसमें 1 अक्टूबर से पायलट प्रोजेक्ट के तौर पर दिलशाद गार्डन स्थित जीटीबी अस्पताल में दिल्ली के मरीजों को प्राथमिकता देने की बात कही गई थी। याचिका के अनुसार, अस्पताल को दिल्ली से बाहर के मरीजों का इलाज करने से मना किया गया है।

याचिका में कहा गया कि मरीजों को इलाज उपलब्ध कराने में भेदभाव नहीं किया जा सकता। इस तरह का भेदभाव देश के किसी अस्पताल में नहीं होता है। याचिका के अनुसार, मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने अगस्त माह में ऐसे प्रस्ताव को स्वीकृति दी थी जिसके अनुसार दिल्ली का मतदाता पहचान पत्र दिखाने पर ही अस्पताल से दवाइयां निशुल्क मिल सकेंगी।


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