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Article 370: आतंकियों ने पिता को मारने के बाद कहा छोड़ दो कश्‍मीर, जानें उस काली रात की कहानी

रमेश मोटा के परिवार के सभी सदस्य घर में बैठे थे। तभी तीन-चार आतंकी घर में घुसे और पिता ओएन मोटा पर अंधाधुंध फायरिंग कर मार दिया। फिर कश्‍मीर छोड़ने की धमकी दी।

By Prateek KumarEdited By: Published: Tue, 06 Aug 2019 10:07 AM (IST)Updated: Tue, 06 Aug 2019 10:24 AM (IST)
Article 370: आतंकियों ने पिता को मारने के बाद कहा छोड़ दो कश्‍मीर, जानें उस काली रात की कहानी
Article 370: आतंकियों ने पिता को मारने के बाद कहा छोड़ दो कश्‍मीर, जानें उस काली रात की कहानी

नई दिल्‍ली, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर के पंपोर में 29 जुलाई 1990 की रात 8 बजे जब रमेश मोटा के परिवार के सभी सदस्य घर में बैठे टीवी देखते हुए भोजन कर रहे थे। तभी तीन-चार आतंकी घर में घुसे और पिता ओएन मोटा पर अंधाधुंध फायरिंग करने लगे। पिता का खून से लथपथ शव फर्श पर पड़ा था। परिवार के अन्य सदस्य बदहवाश होकर इधर-उधर भाग रहे थे। जान बचाने की कोशिश कर रहे थे। तभी आतंकियों के फेंके हुए पर्चे मिले, जिसमें धमकी दी गई थी कि जम्मू-कश्मीर छोड़कर चले जाओ, वरना पूरे परिवार का यही हश्र होगा। केंद्र सरकार ने सोमवार को जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद-370 हटाया तो जैसे रमेश की आंखों के सामने उस काली रात की घटना का एक-एक दृश्य घूम गया। उनकी नम आंखों से यह संतोष साफ झलक पड़ा कि अब जल्द वे अपने गांव लौट सकेंगे।

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पिता का था केसर का व्यापार
रमेश मोटा (45) उस वक्त महज 18 साल के थे। रमेश ने बताया कि पोस्टमार्टम के बाद श्रीनगर में पिता का अंतिम संस्कार किया। पिता की चिता की आग भी नहीं बुझी थी कि उन्हें अपना शहर छोड़ना पड़ा। मां, छोटे भाई व आठ साल की बहन को लेकर दर-दर भटके। रिश्तेदारों के यहां शरण ली और तीन दिन बाद आखिरकार दिल्ली रवाना हुए।

30 सालों से चुभ रही है यह टीस
30 साल पहले हुई इस घटना की टीस अब भी उनके दिलो-दिमाग में है। कहते हैं- तब से कितनी सरकारें आईं और गईं। किसी ने कश्मीरी पंडितों का दर्द नहीं समझा। आज मोदी सरकार ने हमारे दर्द को अपना मानकर हमें न्याय दिलाया है। यह ऐतिहासिक दिन है। हम इसे आजादी के जश्न की तरह मनाएंगे। रमेश मोटा ने कहा कि कश्मीरी पंडितों के साथ ही पूरा देश इस दिन का इंतजार कर रहा था।

दिल्ली में 30 साल का संघर्ष
रमेश के पिता का केसर का व्यवसाय था। पिता की हत्या के बाद रमेश मां व भाई-बहन को लेकर दिल्ली तो आ गए, लेकिन मुश्किलें यहां भी थीं। 18 साल की उम्र में परिवार को संभालना मुश्किल हो रहा था। एक रिश्तेदार के यहां कुछ दिन साकेत में रहे। फिर छोटी-मोटी नौकरी की और पंजाबी बाग शिफ्ट हुए। कुछ समय बाद महरौली में रहने लगे। पेंट्रिंग का काम सीखा और अपना काम शुरू किया। कुछ समय बाद वे मयूर विहार में शिफ्ट हो गए तब से वहीं रहते हैं। रमेश कहते हैं कि पंपोर के घर पर समुदाय विशेष के लोगों ने कब्जा कर लिया। जिन खेतों में पिता केसर उगाते थे वहां आतंक की बेल फैल गई थी, लेकिन अब उम्मीद है कि घाटी में विकास की बयार चलेगी, खुशहाली आएगी।

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