पूरी दुनिया में महिलाओं की स्थिति एक जैसी : नासिरा शर्मा
प्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा को हिंदी में उनकी कृति ‘पारिजात’ के लिए अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है।
नई दिल्ली (जेएनएन)। साहित्य अकादमी ने बुधवार को 24 भारतीय भाषाओं के रचनाकारों को साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की। आठ कविता संग्रह, सात कहानी संग्रह, पांच उपन्यास, दो समालोचना, एक निबंध संग्रह और एक नाटक का पुरस्कार के लिए चयन किया गया है।
प्रसिद्ध लेखिका नासिरा शर्मा को हिंदी में उनकी कृति ‘पारिजात’ के लिए अकादमी पुरस्कार से नवाजा गया है। पुस्कारों की घोषणा साहित्य अकादमी के सचिव डॉ. के श्रीनिवास राव ने की। इससे पहले अकादमी के अध्यक्ष विश्वनाथ प्रसाद तिवारी की अगुआई में अकादमी के कार्यकारी मंडल की बैठक में इन पुरस्कारों का अनुमोदन किया गया।
साहित्य अकादमी पुरस्कारों की घोषणा, 24 भाषाओं के रचनाकार होंगे सम्मानित
ये पुरस्कार 1 जनवरी 2010 से 31 दिसंबर 2014 के दौरान पहली बार प्रकाशित पुस्तकों में से दिया गया है। ताम्रफलक, शॉल और एक लाख प्रदान की जाएगी। अगले साल 22 फरवरी को ये पुरस्कार प्रदान किए जाएंगे।
महिलाओं के जीवन से जुड़े विभिन्न पहलुओं पर अपनी निगाह रखकर भौगोलिक सीमा से परे जाकर उनके मन की टोह लेने में माहिर और अपने , कहानी, उपन्यासों के लिए विख्यात लेखिका नासिरा शर्मा को इस वर्ष हिंदी में उनकी रचना पारिजात के लिए साहित्य अकादमी पुरस्कार देने की घोषणा की गई है। लेखिका नासिरा शर्मा से उनकी कृतियों के बारे में हमारे वरिष्ठ संवाददाता अभिनव उपाध्याय ने बातचीत की। पेश हैं प्रमुख अंश :
-पारिजात उपन्यास आपकी अन्य कृतियों से कैसे भिन्न है?
मेरे हर उपन्यास का विषय अलग रहता है। इसमें मैंने लखनऊ और इलाहाबाद की पृष्ठभूमि को लिया है कि कैसे अवध की तहजीब बनी, उसने लोगों को कैसे प्रभावित किया, लेकिन अब वो चीज गायब हो गई है। इसमें मैंने कर्बला, हुसैनी ब्राह्मण और आधुनिक जमाने को समेटने की कोशिश की है।
-आपका लेखन महिलाओं की दशा, दिशा को लेकर भी है। चाहे वह खाड़ी देश की हों या भारत की। आप दोनों देशों की महिलाओं की स्थिति में कितनी समानता या विभिन्नता देखती हैं?
पूरी दुनिया में भावनात्मक रूप से देखें तो महिलाओं की स्थिति एक जैसी ही है। आप चाहे जितने बहादुर हो जाएं, लेकिन आपकी भावनाएं तो बहादुर नहीं हो सकतीं। अगर इस्लाम के नजरिए से देखिए तो खाड़ी के देशों में महिलाओं को सबकुछ मिला है, लेकिन जिसे हम आजादी कहते हैं वैसी आजादी उन्हें नहीं मिली है। यह भी सच है कि 20 फीसद औरतों ने जो चाहा वो हासिल किया है, लेकिन ज्यादातर औरतें परेशान हैं। कई तरह की बंदिशें महिलाओं के लिए हैं। उनकी तकलीफों को समझना मुश्किल है।
-आपने विभिन्न विधाओं में लिखा है, किस विधा में खुद को सहज पाती हैं?
इधर दस-बारह सालों में मैंने एक या दो कहानियां लिखी हैं। ज्यादातर मेरा समय उपन्यास लेखन में जा रहा है। कहानी लिखने में तत्काल आनंद मिलता है, लेकिन उपन्यास में अपने आपको डालना पड़ता। उसके किरदारों के नाम याद रखना आदि काफी मुश्किल काम है।