'वो लाशें थी जो तैरती थी, मुझे तो जिंदगी चाहिए डूबने के लिए' से लूट ली महफिल
कनॉट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क में चल रहे जश्न-ए-विरासत-ए-उर्दू महोत्सव के तीसरे दिन गजलों की महफिल सजी। दिल्ली और मुंबई के फनकारों ने अपने मधुर फन के जौहर से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया।
नई दिल्ली, जेएनएन। कनॉट प्लेस स्थित सेंट्रल पार्क में चल रहे जश्न-ए-विरासत-ए-उर्दू महोत्सव के तीसरे दिन गजलों की महफिल सजी। दिल्ली और मुंबई के फनकारों ने अपने मधुर फन के जौहर से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। सोमवार को महोत्सव की शुरुआत में टैलेट ग्रुप की ओर से किस्सा 'मुहावरों और कहावतों' का मंचन किया गया। ग्रुप के बच्चों ने अपने अभिनय से लोगों को तालियां बजाने के लिए मजबूर कर दिया। किस्से के मंचन में कड़ियों को जोड़कर माहौल बनाया गया। इस दौरान दर्शकों ने तालियां बजाकर बाल कलाकारों का उत्साह बढ़ाया।
किस्से के मंचन के बाद शाम-ए-गजल में जीशान जमीर ने अपने लफ्जों से सुरों की महफिल का आगाज किया। जामिया मिलिया इस्लामिया और दिल्ली विश्वविद्यालय के छात्रों के समूह के बीच बैत बाजी का मुकाबला हुआ, जिसमें लोगों को अपने अंदर छिपे शायरी के हुनर को शायराना अंदाज में पेश करने का मौका मिला।
इस दौरान एक शख्स द्वारा सुनाई गई शायरी 'वो लाशें थी जो तैरती थी, मुझे तो जिंदगी चाहिए डूबने के लिए' के बाद काफी देर तक तालियां बजती रहीं। इसके बाद महफिल ए गजल में शकील अहमद ने 'उर्दू है मेरा नाम, मैं गालिब की साहिबा हूं...' पेशकर ढलती शाम को और रंगीन बना दिया। इसके बाद 'मुझको बनाते हैं बारूद का निशाना' पर शकील अहमद ने श्रोताओं की खूब तालियां बटोरी।
स्पीकर के माध्यम से आवाज सुनकर लोग गजल सुनने के लिए सेट्रल पार्क में पहुंचने लगे। हर कोई गजल का आनंद लेने को बेताब दिखा। युवा पीढ़ी ने भी गजल का भरपूर आनंद लिया। इसके बाद स्कूल के बच्चों ने कव्वाली व समूह गीत प्रस्तुत किया। शाम ढलने के साथ ही पार्क में लोगों की भीड़ बढ़ती जा रही थी। इसके बाद गालिब इन नई दिल्ली का मंचन किया गया, जिसमें कलाकार कामीर अहमद के अभिनय को देख दर्शक हंस-हंसकर लोटपोट हो गए। महफिल-ए-गजल में सुदीप बनर्जी ने अपनी गजलों से श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर दिया। कार्यक्रम के अंत में सूफी महफिल में रूना रिजवी ने खूब तालियां बटोरीं।