एक हाथ गंवाने का अफसोस नहीं, दुश्मनों से मोर्चा लेने के लिए आज भी तैयार है मां भारती का ये सपूत
जनबीर जून 1999 की उस रात का जिक्र करते हुए गर्व से कहते हैं कि उस रात जब मुझपर चारों तरफ से दुश्मन वार कर रहे थे तो मेरे मन में एक ही बात घूम रही थी कि मां भारती के लिए प्राणों की आहुति देने का यही समय है।
गुरुग्राम [महावीर यादव]। कारगिल युद्ध में अपने अदम्य साहस और वीरता के बल पर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाले देश के कई वीर सपूतों की आपबीती हमें प्रेरित करती है। जम्मू-कश्मीर के कारगिल में घुसपैठ करने वाले पाकिस्तानी सैनिकों को खदेड़ने के लिए जान की बाजी लगा देने वाले इन्हीं जवान में से एक हैं गांव रिठौज निवासी जनबीर खटाना। युद्ध के दौरान साथियों को गोला-बारूद पहुंचाते समय उन्होंने अपना एक हाथ गंवा दिया था।
प्राणों की आहुति देने का यही समय है
जनबीर जून 1999 की उस रात का जिक्र करते हुए गर्व से कहते हैं कि उस रात जब मुझपर चारों तरफ से दुश्मन वार कर रहे थे तो मेरे मन में एक ही बात घूम रही थी कि मां भारती के लिए प्राणों की आहुति देने का यही समय है। जनबीर बताते हैं कि जब वह कारगिल से निकलकर बटालिक सेक्टर में पहुंचे तो पहाड़ियों से लगातार उनके वाहन पर गोले दागे जाने लगे। साथियों के साथ मोर्चा संभालकर दुश्मनों को मुंहतोड़ जवाब दिया। तभी एक गोला उनके ऊपर आकर गिरा। बुरी तरह से घायल होने के बाद भी वह जंग लड़ते रहे।
डॉक्टरों के अथक प्रयास बच गया पैर
हालांकि अधिक देर तक होश में नहीं रह पाए। जब होश आया तो खुद को श्रीनगर अस्पताल के बेड पर पाया। वहां साथियों ने बताया कि अस्पताल में भर्ती कराए तीन दिन हो गए हैं। जब उन्होंने अस्पताल में आंखें खोलीं तो देखा कि उनका एक हाथ नहीं है। दुश्मनों के वार ने उनका बायां हाथ छीन लिया था। इतना ही नहीं बारूद का जहर इतना फैल चुका था कि डॉक्टरों ने पैर भी काटने की बात कही। उन्होंने डॉक्टरों से पैर को बचाने का आग्रह किया तो उन्हें दिल्ली के आरआर अस्पताल में रेफर कर दिया और वहां भी डॉक्टरों ने पैर को बचाने में असमर्थता जताई। इसके बाद उन्हें पुणे के अस्पताल में रेफर किया गया, जहां डॉक्टरों के अथक प्रयास ने उनके पैर को कटने से बचा लिया गया। जनबीर कहते हैं कि दुश्मनों से लोहा लेते समय सिर्फ देश दिखता है। रणभूमि में ऐसा साहस आ जाता है कि बड़े सा बड़ा मोर्चा भी खेल जैसा लगता है।
शहीद मान चुके थे घरवाले
जनबीर के घरवालों ने बताया कि जब कारगिल से टेलीग्राम आया तो परिवार में कोहराम मच गया था। कुछ स्पष्ट संदेश नहीं होने के कारण उन्होंने मान लिया था कि जनबीर शहीद हो चुके हैं। कई दिनों बाद परिजनों को पता लगा कि जनबीर ठीक हैं और बस उनके हाथ व पैर में दिक्कत है। करीब दो महीने बाद दिल्ली के आरआर अस्पताल में परिजनों से मुलाकात हो पाई।
जोश बरकरार, मोर्चा लेने को तैयार
जनबीर खटाना को अपना एक हाथ गंवाने का कोई अफसोस नहीं है। इस जांबाज का जोश अब भी बरकरार है। दैनिक जागरण को युद्ध का हाल बताते हुए उन्होंने यह भी कहा कि दर्द जरूर झेला पर अब भी मां भारती की रक्षा के लिए सीमा पर भेजा गया तो एक हाथ से ही दुश्मनों से मोर्चा लेने को तैयार हूं।