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कारगिल युद्ध के दौरान कमांडर बोले- इसी दिन के लिए सेना में हुए भर्ती, नहीं मिलेगा ऐसा सौभाग्य

सामने दुश्मन था और पीछे साथियों का हौसला। रग-रग में देशप्रेम रक्त बनकर दौड़ रहा था। कमांडर ने जोश भरते हुए कहा कि हम आज के दिन के लिए ही सेना में शामिल हुए थे।

By Amit MishraEdited By: Published: Mon, 06 Aug 2018 02:35 PM (IST)Updated: Mon, 06 Aug 2018 07:19 PM (IST)
कारगिल युद्ध के दौरान कमांडर बोले- इसी दिन के लिए सेना में हुए भर्ती, नहीं मिलेगा ऐसा सौभाग्य
कारगिल युद्ध के दौरान कमांडर बोले- इसी दिन के लिए सेना में हुए भर्ती, नहीं मिलेगा ऐसा सौभाग्य

नोएडा [रणजीत मिश्रा] कारगिल का नाम सुनते ही ऐसे युद्ध का दृश्य आखों के सामने आ जाता है, जिसमें भारतीय जवानों ने दुर्गम पहाड़ियों में छिपे दुश्मनों के दांत खट्टे कर उन्हें वापस लौटने के लिए मजबूर कर दिया था। इस युद्ध (1999) के समय हर किसी की नजरें टीवी व समाचार पत्रों पर टिकी थीं। लोग पल-पल की जानकारी हासिल कर रहे थे। इसी युद्ध में ग्रेटर नोएडा के सुत्याना गांव के रहने वाले जांबाज सिपाही रज्जन सिंह भी मौजूद थे।

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पूरा देश सैनिकों के साथ खड़ा था 

युद्ध की बात छेड़ते ही उनके चेहरे पर चमक आ जाती है। सीना गर्व से चौड़ा हो जाता है। कहते हैं कि उस समय पूरा देश हमारे साथ खड़ा था। रज्जन सिंह बताते हैं कि जिस बंकर में वह तैनात थे, वहा से चंद कदम की दूरी पर ही माइंस बिछी थीं। दुश्मन साफ दिखाई दे रहे थे। सामने से आने वाली गोलियां कई बार हेलमेट को छूकर निकलीं। बंकर के सामने नदी बह रही थी। बीच में जंगल व दोनों तरफ ऊंची-ऊंची चोटियां। दिल में सिर्फ आगे बढ़ने व देश के लिए मर मिटने का जज्बा था।

जोश कम नहीं था

हमारी 24 राजपूत यूनिट पाक सेना को मुंहतोड़ जवाब दे रही थी। सीमा पर बने बंकर में साथियों के पास तक खाना पहुंचाना भी चुनौती से कम नहीं था। साथी रात में खाना लेकर पैदल ही आते थे। युद्ध के दौरान तीन दिनों तक भूखे भी दुश्मनों का सामना करना पड़ा, लेकिन जोश कम नहीं था। दुश्मन ऊंचाई पर थे, इसलिए उनकी नजर हमेशा हम पर बनी हुई थी। इसके बावजूद हमारी यूनिट ने उन्हें मुंहतोड़ जवाब दिया।

1971 के युद्ध में बने बंकरों का किया उपयोग 

रज्जन सिंह बताते हैं वह वर्ष 1983 में वह 24 राजपूत यूनिट का हिस्सा बने। इससे पहले वह कश्मीर के दरावा सेक्टर में तैनात थे। यहां से उनकी यूनिट जम्मू लाई गई। यहां कमांडर ने नक्शा व सैंड मॉडल (रेत की आकृति) दिखाकर जवानों को सीमा पर स्थिति की जानकारी दी। रात में ही पूरी यूनिट को कारगिल के लिए रवाना कर दिया गया। भारत-पाकिस्तान के बीच हुए 1971 के युद्ध में बने बंकरों का इस समय सदुपयोग किया गया। उस समय से ये बंकर खाली पड़े थे। इनमें राजपूत यूनिट को तैनात किया गया।

सौभाग्य दोबारा नहीं मिलेगा

सामने दुश्मन था और पीछे साथियों का हौसला। रग-रग में देशप्रेम रक्त बनकर दौड़ रहा था। कमांडर ने और जोश भरते हुए कहा कि हम आज के दिन के लिए ही सेना में शामिल हुए थे। हमें दुश्मनों का डटकर मुकाबला करना होगा। ऐसा सौभाग्य दोबारा नहीं मिलेगा। पूरी टुकड़ी जोश व देशभक्ति से ओतप्रोत होकर दुश्मनों का सामना कर रही थी।

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आग जलाने की भी नहीं थी इजाजत

रज्जन सिंह बताते हैं कि कारगिल युद्ध में दुश्मन इतने पास थे कि बंकर से निकलना तो दूर हमें रात में रोशनी के लिए आग जलाने की भी इजाजत नहीं थी। हम अपने साथियों को पोजीशन के आधार पर ही संदेश भेजते थे। यहा तक कि टॉर्च के उपयोग की भी मनाही थी। इस दुर्गम पहाड़ी के बीच दुर्लभ युद्ध का हिस्सा होने का अनुभव आज भी गौरवान्वित करता है। 


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