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नहीं हटी पाबंदियां तो आंदोलन को विवश होंगे व्यापारी: सुभाष खंडेलवाल

व्यापारी चाहते हैं कि उन्हें व्यापार करने के लिए पूरी तरह से छूट मिले। संक्रमण फैलने के साथ लगाई गई पाबंदियों में ढील देनी होगी। वीकेंड कर्फ्यू और सम-विषम (इवेन-आड) से व्यापार काफी प्रभाावित है। व्यापारी इन दोनों से छुटकारा चाहते हैं।

By Nimish HemantEdited By: Prateek KumarPublished: Sun, 23 Jan 2022 03:04 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 03:04 PM (IST)
नहीं हटी पाबंदियां तो आंदोलन को विवश होंगे व्यापारी: सुभाष खंडेलवाल
डीडीएमए को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। कोरोना संक्रमण के मद्देनजर बाजारों पर लगाई गई पाबंदियों में दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (डीडीएमए) ने फिलहाल राहत देने से इंकार किया है। वैसे, संक्रमण के घटते मामलों और इसके कम घातक होेने पर शुक्रवार की बैठक से व्यापारियों को काफी उम्मीदें थी। इसके कुछ घंटे पहले ही दिल्ली सरकार द्वारा पाबंदियाें को हटाने को लेकर भेजे गए प्रस्ताव से खुशी की लहर थी, लेकिन कुछ ही घंटाें में उपराज्यपाल के यहां से फैसला आने के बाद यह काफूर हो गया। व्यापारी कारोबार में नुकसान और आर्थिक दिक्कतों का हवाला देते हुए कोरोना नियमों में ढील की मांग कर रहे हैं। इसे लेकर नेमिष हेमंत, ने चैंबर आफ ट्रेड एंड इंडस्ट्री (सीटीआइ) के अध्यक्ष सुभाष खंडेलवाल से बात की, प्रस्तुत है अंश...

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व्यापारियों की मांग क्या है?

व्यापारी चाहते हैं कि उन्हें व्यापार करने के लिए पूरी तरह से छूट मिले। संक्रमण फैलने के साथ लगाई गई पाबंदियों में ढील देनी होगी। वीकेंड कर्फ्यू और सम-विषम (इवेन-आड) से व्यापार काफी प्रभाावित है। व्यापारी इन दोनों से छुटकारा चाहते हैं।

डीडीएमए ने कहा है कि पांच प्रतिशत से नीचे संक्रमण दर आने पर ही ढील मिलेगी, फिर क्या?

डीडीएमए को अपने फैसले पर पुनर्विचार करना चाहिए। जब दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने प्रस्ताव दे दिया है कि वीकेंड कर्फ्यू समेत अन्य प्रतिबंध हटनी चाहिए तो डीडीएमए को किस बात की आपत्ति है। आखिरकार यह चुनी हुई सरकार का फैसला है। उसके फैसले को तवज्जो मिलनी चाहिए। इसे विवाद का विषय नहीं बनाना चाहिए। आखिरकार दुकानदार भी हर विषय देखकर ही यह मांग कर रहे हैं।

व्यापारी व्यग्र नजर आ रहे है?

व्यापारी वर्ग शांत कौम है। अभी तक इसके सभी आंदोलन शांतिपूर्ण रहे हैं, क्योंकि हम लोकतंत्र पर विश्वास रखते हैं। कोरोना काल में भी इस वर्ग ने जिस तरह से प्रभावित लोगों की मदद की, वह नजीर है। यहीं नहीं, पिछली लहर में जब कोरोना संक्रमण के मामले बढ़े तो व्यापारी वर्ग ने खुद ही आगे बढ़कर लाकडाउन लगाने की पेशकश की थी। अब जबकि स्वास्थ्य विशेषज्ञ यह कह रहे हैं कि मौजूदा ओमिक्रोन वैरिएंट ज्यादा खतरनाक नहीं है। इसका अंदाजा अस्पतालों के खाली बिस्तरों से भी लगाया जा सकता है। लोग घर पर ही जल्द ठीक हो रहे हैं। उसमें भी यह देखने वाली बात है कि पड़ोसी राज्यों के साथ ही देश के किसी अन्य भाग में इस तरह के कठोर प्रतिबंध नहीं है। इस स्थिति में दिल्ली के व्यापारी खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं।

प्रतिबंधोें से दिक्कतें क्या हो रही है?

शनिवार व रविवार को वीकेंड कर्फ्यू है। इसके साथ ही सम-विषम फार्मूले के आधार पर दुकानें खुल रही है। ऐसे में किसी हफ्ते दो दिन तो किसी हफ्ते तीन दिन दुकानें खुल रही है। इसमें यह देखना होगा कि दिल्ली सामानों के पूरे देश में वितरण का थोक केंद्र है। यहां दूसरे राज्यों से रोजाना लाखों खरीदार आते हैं। उन्हें इन प्रतिबंधों की वजह से यह पता नहीं होता है कि कौन सी दुकान किस दिन खुल रही है और किस दिन बंद है। ऐसे में दुकानों की बिक्री में 60 से 70 प्रतिशत तक गिरावट आई है।

अब आगे क्या है?

डीडीएमए की अगली बैठक अगले हफ्ते सोमवार या मंगलवार को होगी। उससे हमारा आग्रह है कि उसमें जो भी फैसला लिया जाएं वह काफी सोच-समझकर लिया जाए। दिल्ली के दुकानदारों के लिए राहत का रास्ता निकालना चाहिए। शुक्रवार को ही 100 से अधिक व्यापारिक संस्थाओं ने सीटीआइ से विरोध दर्ज कराया है। व्यापारिक असंतुष्ट हैं और आंदोलन को उतारू हैं। उनके पास कोई चारा भी नहीं है।


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