शिक्षा के मानव संसाधन मॉडल ने विद्यार्थियों को टूल बनाने का काम किया : मनीष सिसोदिया
मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज भारत से ब्रेन-ड्रेन हो रहा है। हम भारत की प्रतिभाओं को विदेशी कंपनियों को दान दे रहे हैं। अमेरिका और यूरोप के देश विकासशील देशों की प्रतिभाओं को ढूंढ कर अपने देशों में ले जाते है।
नई दिल्ली, ऑनलाइन डेस्क। भारतीय विश्वविद्यालय संघ, उत्तरी जोन द्वारा गुरुगोविंद सिंह इंद्रप्रस्थ विश्वविद्यालय में आयोजित दो दिवसीय वर्चुअल उपकुलपति संवाद कॉन्फ्रेंस के समापन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शामिल हुए।
उपमुख्यमंत्री ने नई शिक्षा नीति के सलाह से बने शिक्षा मंत्रालय का स्वागत करते हुए कहा कि नई शिक्षा नीति ने यह मान लिया कि शिक्षा का काम केवल मानव को संसाधन मात्र बनाना नहीं है। उन्होंने कहा कि अबतक भारत का शिक्षा मॉडल बच्चों को एक संसाधन के रूप में ढाल रहा था, उन्हें टूल के रूप में तैयार कर रहा था, जबकि शिक्षा का असल उद्देश्य बच्चों को एक अच्छा मानव और नागरिक बनाना है, संसाधन नही।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने वर्तमान में उच्च शिक्षा के 4 चुनौतियों पर बात की। उन्होंने कहा कि भारत के विश्वविद्यालयों के सामने आज सबसे बड़ी चुनौती विस्तार करने की है। पिछले बीस सालों में भारत में स्कूलों से बड़ी संख्या में बच्चे पास होकर निकल रहे है, लेकिन हमारे विश्वविद्यालयों के पास उन्हें उच्च शिक्षा देने के लिए पर्याप्त संसाधन नहीं है। इसलिए उच्च शिक्षा को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालयों के विस्तार की जरूरत है।
सिसोदिया ने कहा कि देश में आजादी के बाद शिक्षा पर कार्य हुए, लेकिन उसका लाभ सिर्फ 5 प्रतिशत विद्यार्थियों को ही मिला, जबकि शेष 95 प्रतिशत बच्चों को अच्छी शिक्षा नहीं मिल पाई। सरकारों की नीतियां और प्राथमिकताएं चाहे जो भी रही हों, लेकिन आउटकम पर नजर डालें तो यही दिखेगा कि 95 प्रतिशत बच्चे अच्छी शिक्षा से वंचित रह गए। इसलिए आज यह सुनिश्चित करना ज़रूरी है कि हम शिक्षा का एक न्यूनतम मानदंड जरूर तय करें।
डिप्टी सीएम मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज हमारे विश्वविद्यालयों के सामने अपनी पहचान बनाए रखने की चुनौती है। अपनी पहचान को बनाए रखने के लिए विश्वविद्यालयों को अनुसंधानों एवं नवाचारों पर काम करने की आवश्यकता है। अपने पाठ्यक्रमों में उद्यमिता को शामिल करने की जरूरत है। उन्होंने कहा कि विश्वविद्यालयों को यह समझना होगा कि उनका भूतकाल उनका भविष्य नहींं बन सकता। भविष्य की मांगों को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालयों को अपने ढाँचे में बदलाव लाना होगा।
मनीष सिसोदिया ने कहा कि आज भारत से 'ब्रेन-ड्रेन' हो रहा है। हम भारत की प्रतिभाओं को विदेशी कंपनियों को दान दे रहे हैं। अमेरिका और यूरोप के देश विकासशील देशों की प्रतिभाओं को ढूंढ कर अपने देशों में ले जाते है। हमें यह समझने की जरूरत है कि हमारे विद्यार्थी उन देशों की ओर क्यों आकर्षित हो रहे हैं? हमारे विश्वविद्यालय विद्यार्थियों की प्रतिभा निखारने में तो कामयाब हो रहे है, पर राष्ट्र निर्माण में उन प्रतिभाओं को शामिल करने में विफल रहे हैं। हमें हमारे विश्वविद्यालयों के माध्यम से इन प्रतिभाओं को राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनाना होगा।
उपमुख्यमंत्री ने कहा कि आज भारतीय जनमानस का औसत सपना उच्च शिक्षा के लिए अपने बच्चों को हार्वर्ड, ऑक्सफ़ोर्ड जैसे विश्वविद्यालयों में भेजने का है। परंतु आज हमें यह प्रण लेना चाहिए कि हम अपनी शिक्षा पद्धति पर इतनी मजबूती से काम करें कि भविष्य में अमेरिका, जापान, ब्रिटेन जैसे देश के अभिभावक अपने बच्चों को उच्च शिक्षा प्राप्त करने के लिए भारत के किसी शहर में भेजने का सपना देखें। जिस दिन हम दुनिया के लोगों को यह सोचने के मजबूर कर देंगे, उस दिन एक राष्ट्र के रूप में हम सफल हो जाएंगे। इसलिए हम सभी को संयुक्त प्रयासों के माध्यम से, साथ मिलकर शिक्षा के विकास के लिए काम करने की आवश्यकता है।
आईपी विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित इस समारोह में डॉ. तेज प्रताप, अध्यक्ष (भारतीय विश्वविद्यालय संघ), डॉ.पंकज मित्तल, सचिव (भारतीय विश्वविद्यालय संघ), प्रो.महेश वर्मा, उपकुलपति (गुरुगोविंद सिंह आईपी विश्वविद्यालय) के साथ-साथ विभिन्न विश्वविद्यालयों के उपकुलपति भी शामिल थे।