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Court News: हाई कोर्ट ने पांच किशोरियों के भागने के मामले में की अहम टिप्पणी, जानें दिल्ली के किस बाल सुधार गृह में जुड़ा है मामला

Delhi High Court News बाल सुधार केंद्र (सीसीआइ) के बेहतर कामकाज के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा कि इस तरह से देखभाल के व्यक्तिगत गुणवत्ता मानकों को प्रदान किया जाता है और बच्चे के अधिकार सुरक्षित रहते हैं।

By Jagran NewsEdited By: Vinay Kumar TiwariPublished: Fri, 30 Sep 2022 02:47 PM (IST)Updated: Fri, 30 Sep 2022 02:47 PM (IST)
Court News: हाई कोर्ट ने पांच किशोरियों के भागने के मामले में की अहम टिप्पणी, जानें दिल्ली के किस बाल सुधार गृह में जुड़ा है मामला
Delhi High Court: एक याचिका पर बाल सुधार केंद्र में बेहतर कामकाज के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए की टिप्पणी।

नई दिल्ली, जागरण संवाददाता। Delhi High Court News: केंद्र से पिछले साल दिल्ली के बख्तावरपुर स्थित एक बाल गृह से पांच किशोरियों के भागने के मामले की न्यायिक जांच की मांग को लेकर दायर याचिका पर दिल्ली हाई कोर्ट ने अहम टिप्पणी में कहा कि यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि अधिकारियों की उदासीनता के कारण कच्ची उम्र के बच्चों के विकास में बाधा डाल रही है।

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बाल सुधार केंद्र (सीसीआइ) के बेहतर कामकाज के लिए दिशानिर्देश जारी करते हुए अदालत ने कहा कि इस तरह से देखभाल के व्यक्तिगत गुणवत्ता मानकों को प्रदान किया जाता है और बच्चे के अधिकार सुरक्षित रहते हैं।

न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की पीठ ने कहा कि ऐसा प्रतीत होता है कि इन संस्थानों का संचालन करने वालों के बीच दिशा और पहल का पूर्ण अभाव है कि उन्हें बेहतर भविष्य के लिए बच्चों का मार्गदर्शन कैसे करना चाहिए।

तीन महीने में एक बार करें बैठक, साल में दो बार पेश करें रिपोर्ट

पीठ ने निर्देश दिया कि सीसीआइ के कामकाज की निगरानी के लिए हर तीन महीने में कम से कम एक बार बैठकें आयोजित की जाएं।साथ ही दिल्ली में सभी सीसीआइ का तीन महीने में कम से कम एक बार निरीक्षण भी सुनिश्चित करें।

पीठ ने यह भी निर्देश दिया कि प्रत्येक सीसीआइ के कामकाज की रिपोर्ट और सचिव-महिला एवं बाल विकास विभाग और अध्यक्ष-दिल्ली बाल अधिकार संरक्षण आयोग के अध्यक्ष द्वारा आयोजित बैठक का कार्यवृत्त इस अदालत में प्रत्येक वर्षीक कैलेंडर में 31 जुलाई और 31 जनवरी को दायर किया जाएगा।पीठ ने देखा कि क्षेत्र को नियंत्रित करने वाले कानूनी शर्तों में कोई कमी नहीं है, लेकिन प्रविधानों की घोषणा और जमीन पर उनके कार्यान्वयन के बीच स्पष्ट अंतर है।

धन की अनुपलब्धता का तर्क स्वीकार नहीं

पीठ ने कहा कि राज्य अनुदान के अक्षम उपयोग के साथ अपने दायित्वों को पूरा करने के लिए धन की अनुपलब्धता को स्वीकार नहीं कर सकता।यह राज्य सरकार का संवैधानिक दायित्व है कि बाल देखभाल संस्थानों के लिए पर्याप्त धन उपलब्ध कराए।

इन युवा लड़कियों के बार-बार भाग जाने से पता चलता है कि इन सीसीआइ में स्पष्ट रूप से एक निश्चित असंतोष है।यह या तो हो सकता है कि उनकी बुनियादी जरूरतें पूरी न हों या उन्हें वह शारीरिक या मानसिक पोषण नहीं मिल रहा है जिसकी उस उम्र में जरूरत है।यह वास्तव में एक खेदजनक स्थिति है जिसमें जल्द से जल्द सुधार की आवश्यकता है।

प्राथमिक है बच्चों की सुरक्षा

पीठ ने कहा कि बच्चों की सुरक्षा प्राथमिक महत्व है और रात में पर्यवेक्षण में सुधार करने और 27 मार्च 2021 जैसी घटनाओं को रोकने के लिए प्रत्येक रात एक पर्यवेक्षण स्टाफ सदस्य को नियुक्त किया जाना चाहिए।किसी भी आपात स्थिति के लिए सुरक्षाकर्मी रिजर्व में उपलब्ध होने चाहिए।

सुरक्षा उपायों को सीसीटीवी और सुरक्षा गार्ड तक सीमित नहीं किया जा सकता है खासकर यह देखते हुए कि कैसे बच्चे भी अपने निजता और गोपनीयता के अधिकार के हकदार हैं।सुरक्षा गार्डों को सिखाया जाना चाहिए कि बच्चों के साथ कैसे व्यवहार किया जाए।

हर तिमाही में एकत्र किया जाए बच्चों का डाटा

अदालत ने निर्देश दिया कि केंद्र में कार्यरत कर्मचारी और वहां रहने वाले बच्चों की संख्या का डाटा वर्ष की हर तिमाही में एकत्र और अद्यतन किया जाना चाहिए।डाटा के विश्लेषण के निष्कर्षों को डाटा के साथ एक सार्वजनिक पोर्टल पर प्रकाशित किया जाना चाहिए।बच्चे को सीसीआइ में लाए जाने के सात दिनों के भीतर प्रत्येक बच्चे के लिए व्यक्तिगत देखभाल योजना तैयार की जानी चाहिए।

शिक्षा के अधिकार से वंचित न हों बच्चे

अदालत ने यह भी कहा कि आवश्यक संख्या में गैजेट्स बच्चों के बीच आवंटित किए जाएं। इसकी कमी के कारण शिक्षा के अधिकार से वंचित नहीं किया जाना चाहिए। तकनीकी उपकरण उपलब्ध कराने के साथ ही नाबालिगों को इंटरनेट तक निर्बाध पहुंच के निहितार्थ और साइबर अपराध की मूल बातें समझाई जानी चाहिए।


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