'चुनावों में होर्डिंग व पोस्टर लगाने की संस्कृति गलत', हाईकोर्ट ने जताई सख्त आपत्ति; पढ़ें क्यों बताया खतरा?
Delhi High Court ने पोस्टर संस्कृति को खतरा बताते हुए कहा कि बार चुनावों पर पैसा खर्च नहीं किया जाना चाहिए। हाईकोर्ट ने चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की मांग की याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की। पीठ ने कहा कि चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के होर्डिंग और पोस्टर लगाने की संस्कृति बंद होनी चाहिए।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। दिल्ली हाईकोर्ट बार ऐसासिएशन समेत विभिन्न बार ऐसासिएशन के चुनाव के दौरान लगाने जाने वाले पोस्टर व होर्डिंग को लेकर दिल्ली हाईकोर्ट ने सख्त आपत्ति जताई है।
33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की मांग
बार चुनाव में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत सीटें आरक्षित करने की मांग से जुड़े मामले पर सुनवाई करते हुए सोमवार को कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश मनमोहन व न्यायमूर्ति तुषार राव गेडेला की पीठ ने यह टिप्पणी की।
पीठ ने कहा कि राष्ट्रीय राजधानी में बार चुनाव लड़ने वाले उम्मीदवारों के होर्डिंग और पोस्टर लगाने की संस्कृति बंद होनी चाहिए। अदालत ने वकीलों के संगठनों का प्रतिनिधित्व करने वाले वरिष्ठ वकीलों से इस मुद्दे पर स्वत: संज्ञान लेने और पोस्टल व होर्डिंग लगाने वाले उम्मीदवारों के विरुद्ध कार्रवाई करने को कहा, ताकि इस संस्कृति को रोका जा सके।
ऐसी संस्कृति खतरा है
अदालत ने कहा कि ऐसी संस्कृति खतरा है और इस तरह से बार चुनावों पर पैसा और खर्च नहीं किया जाना चाहिए। याचिकाकर्ता शोभा गुप्ता ने याचिका दायर कर बार काउंसिल ऑफ दिल्ली (बीसीडी), डीएचसीबीए और दिल्ली के सभी जिला बार एसोसिएशन के चुनावों में महिला वकीलों के लिए 33% सीटें आरक्षित करने की मांग की है।
अदालत ने कहा कि बार के वरिष्ठ नेताओं के बीच यह संदेश जाना चाहिए कि बार चुनाव को लेकर उम्मीदवारों के पोस्टर लगाना अच्छी परंपरा नहीं है और इसे रोका जाना चाहिए। अदालत ने कहा कि बार में जो हो रहा है वह बहुत गलत है।
जिला बार एसोसिएशन भी महिला आरक्षण के समर्थन में
मामले पर सुनवाई के दौरान अदालत को सूचित किया गया कि शाहदरा बार एसोसिएशन ने चुनाव में महिला वकीलों के लिए 33 फीसदी सीटें आरक्षित करने संबंधी जनहित याचिका का समर्थन किया है। वहीं, अन्य जिला बार एसोसिएशन भी महिला आरक्षण के समर्थन में हैं।
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डीएचसीबीए के अध्यक्ष व वरिष्ठ अधिवक्ता मोहित माथुर ने कहा कि डीएचसीबीए के साथ पंजीकृत सदस्यों की संख्या 35000 से अधिक है, ऐसे में मुद्दे पर विचार करने के लिए कुछ समय दिया जाना चाहिए।
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इस पर मामले को सितंबर माह के लिए सूचीबद्ध करते हुए दो सप्ताह के भीतर डीएचसीबीए और सभी जिला अदालत बार एसोसिएशनों की समन्वय समिति के बीच एक बैठक आयोजित करने को कहा।