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ओसीआइ और विदेशियों को एक मई तक पहले नहीं दी जाएगी ब्लैकलिस्ट किए जाने की सूचना, ये है वजह

हाई कोर्ट ने सिंगल बेंच के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया कार्ड धारकों को एयरपोर्ट पर रोकने की प्रक्रिया को अनुचित करार दिया गया था।

By Mangal YadavEdited By: Published: Thu, 04 Apr 2019 07:33 PM (IST)Updated: Thu, 04 Apr 2019 07:33 PM (IST)
ओसीआइ और विदेशियों को एक मई तक पहले नहीं दी जाएगी ब्लैकलिस्ट किए जाने की सूचना, ये है वजह
ओसीआइ और विदेशियों को एक मई तक पहले नहीं दी जाएगी ब्लैकलिस्ट किए जाने की सूचना, ये है वजह

नई दिल्ली, प्रेट्र। दिल्ली हाई कोर्ट ने पिछले साल अगस्त में अपने एक सदस्यीय(सिंगल) बेंच के उस आदेश पर रोक लगा दी है जिसमें ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआइ) कार्ड धारकों या विदेशी नागरिकों को एयरपोर्ट पर रोकने की प्रक्रिया को अनुचित करार दिया गया था। मुख्य न्यायाधीश की पीठ के समक्ष केंद्र सरकार ने सिंगल बेंच के इस आदेश को चुनौती दी थी।

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केंद्र सरकार की तरफ से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस राजेंद्र मेनन और न्यायमूर्ति ए जे भंभानी(A J Bhambhani)ने सिंगल बेंच के आदेश को एक मई तक अमल में न लाने का आदेश दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई एक मई को होगी।

ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआइ) कार्ड धारकों या विदेशी नागरिकों को एयरपोर्ट पर रोकने की प्रक्रिया को दिल्ली हाई कोर्ट ने 21 अगस्त 2018 को अनुचित करार दिया था। कोर्ट ने आदेश दिया था कि किसी भी ओसीआइ व विदेशी नागरिकों को उन्हें ब्लैकलिस्ट किए जाने की सूचना पहले दी जाए। एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद ब्लैकलिस्ट करने के आधार पर रोकना ठीक नहीं है। विदेशी नागरिकों को एयरपोर्ट पर पहुंचने के बाद ब्लैटलिस्ट किए जाने की सूचना देकर प्रवेश करने से रोकने के कई मामले अदालत में आ चुके हैं।

दिल्ली हाई कोर्ट में याचिका के अनुसार, याचिकाकर्ता के पति ओसीआइ कार्ड धारक हैं और वैध वीजा होने के बावजूद भी उन्हें भारत में प्रवेश करने से एयरपोर्ट पर रोक दिया गया था। याचिका पर सुनवाई के बाद पीठ ने इस बाबत केंद्र सरकार को निर्देश दिया कि वह सुनिश्चित करे कि ओसीआइ व विदेशी नागरिकों को उन्हें ब्लैकलिस्ट किए जाने की सूचना पहले से दी जाए, ताकि भारत आने के बाद उसे परेशानी का सामना न करना पड़े।

सिंगल बेंच ने कहा था कि यह न सिर्फ अनुचित है, बल्कि भारतीय संविधान की भावना के खिलाफ है। इस प्रक्रिया की निंदा की जानी चाहिए। याचिका के अनुसार, महिला के पति भारतीय मूल के हैं और 2006 में उन्होंने इग्लैंड की नागरिकता ले ली थी। याचिका के अनुसार, महिला के पति अगस्त में अमृतसर में एक कान्फ्रेंस के लिए आ रहे थे और उन्हें प्रवेश देने से इन्कार कर दिया गया था।


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