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कस्तूरबा गांधी अस्पताल में अजीबोगरीब बच्चे का हुआ जन्म, कुछ ही घंटे बाद हुई मौत

अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संगीता नांगिया ने कहा कि बच्चा हार्लेक्विन इक्थियोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित था। 30 लाख बच्चों में एक नवजात को यह बीमारी होती है।

By Edited By: Published: Tue, 25 Sep 2018 09:12 PM (IST)Updated: Tue, 25 Sep 2018 10:11 PM (IST)
कस्तूरबा गांधी अस्पताल में अजीबोगरीब बच्चे का हुआ जन्म, कुछ ही घंटे बाद हुई मौत
कस्तूरबा गांधी अस्पताल में अजीबोगरीब बच्चे का हुआ जन्म, कुछ ही घंटे बाद हुई मौत

नई दिल्ली (राज्य ब्यूरो)। उत्तरी दिल्ली नगर निगम के कस्तूरबा गांधी अस्पताल में सोमवार शाम को दुर्लभ जन्मजात बीमारी से पीड़ित एक अजीबोगरीब बच्चे का जन्म हुआ। हालांकि, जन्म के कुछ ही घंटे बाद उसकी मौत हो गई। बच्चे की त्वचा सख्त व सफेद थी। पूरे शरीर की त्वचा पर दरारें थीं। उसका मुंह सामान्य से बड़ा, होठ बाहर की तरफ निकले हुए, आंखें अविकसित व बाहर की तरफ निकली हुई थीं। इसके अलावा हाथ-पैर मुड़े हुए थे और गुप्तांग व कान नहीं थे। यह बच्चा अस्पताल के डॉक्टरों के बीच कौतूहल का विषय रहा।

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30 लाख बच्चों में से एक को होती है यह बीमारी
अस्पताल की चिकित्सा अधीक्षक डॉ. संगीता नांगिया ने कहा कि बच्चा हार्लेक्विन इक्थियोसिस नाम की दुर्लभ बीमारी से पीड़ित था। 30 लाख बच्चों में एक नवजात को यह बीमारी होती है। शरीर में प्रोटीन व म्यूकस मेंबरेंस नहीं होने के कारण इस बीमारी से पीड़ित बच्चों की त्वचा काफी सख्त, मोटी व सफेद हो जाती है।

अल्ट्रासाउंड जांच में पता नहीं चल पाता
अस्पताल के अनुसार, मुस्तफाबाद की रहने वाली 20 वर्षीय गर्भवती महिला ने इस बच्चे को जन्म दिया था। महिला का पहले से ही इस अस्पताल में इलाज चल रहा था। अस्पताल प्रशासन का कहना है कि गर्भावस्था के दौरान अल्ट्रासाउंड जांच की गई थी, लेकिन इस बीमारी का अल्ट्रासाउंड जांच में पता नहीं चल पाता। बच्चे के जन्म के बाद उसे नियोनेटल आइसीयू में भी रखा गया पर उसे बचाया नहीं जा सका।

इसलिए हो जाती है मौत 
अस्पताल प्रशासन के अनुसार, इस बीमारी से पीड़ित ज्यादातर बच्चों की एक महीने के अंदर मौत हो जाती है। अस्पताल के डॉक्टरों के मुताबिक, यह बीमारी एबीसीए 12 जीन की खराबी से होती है। इससे त्वचा के नीचे चर्बी नहीं बन पाती। इससे त्वचा काफी कठोर हो जाती है। त्वचा में गहरी दरारों की वजह से संक्रमण का खतरा अधिक होता है। इसके अलावा त्वचा सख्त होने के कारण फेफड़े को फूलने के लिए जगह नहीं मिल पाती। इसलिए ऐसे बच्चे ठीक से सांस नहीं ले पाते हैं। यही वजह है कि उनकी मौत हो जाती है।

लंबे समय तक जीवित रही थी नेली
हालांकि, इस बीमारी से पीड़ित नेली नाम की एक विदेशी लड़की, जिसका जन्म 1984 में हुआ था, वह लंबे समय तक जीवित रही थी। डॉक्टरों के अनुसार, माश्चराइजर या रेटीनॉयड एसिड के इस्तेमाल से इस बीमारी का इलाज संभव है।


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