अंग्रेजी में मास्टर्स और बीएड की डिग्री के बावजूद अतिथि शिक्षक बेच रहे सब्जी-अचार, बताया दर्द
अतिथि शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने का काम बचा नहीं तो ऐसे में वह बेरोजगार हो गए है और अपने परिवार का पेट पालने के लिए जगह-जगह हाथ-पैर मार रहे हैं।
नई दिल्ली [रीतिका मिश्रा]। जिन हाथों में कुछ समय पहले तक कलम हुआ करती थी आज उन्हीं हाथों से कोई सब्जी का ठेला ढो रहा है, कोई पंक्चर बना रहा है तो कोई अचार बेच रहा है। अतिथि शिक्षकों का यह हाल इसलिए हो गया है क्योंकि शिक्षा निदेशालय ने पांच मई को एक सर्कुलर जारी किया था। सर्कुलर में अतिथि शिक्षकों को आठ मई तक ही भुगतान देने की बात कही गई थी। इसके साथ ही यह भी कहा गया था कि अगर इस बीच उनसे कोई काम लिया जाएगा तो उनको उस दिन की सैलरी दी जाएगी। अब अतिथि शिक्षकों के पास बच्चों को पढ़ाने का काम बचा नहीं तो ऐसे में वह बेरोजगार हो गए है और अपने परिवार का पेट पालने के लिए जगह-जगह हाथ-पैर मार रहे हैं। अब सरकार ने 30 जुलाई तक स्कूलों की छुट्टियां बढ़ा दी हैं। ऐसे में अतिथि शिक्षक 30 जुलाई तक तो बेरोजगार ही हैं।
मां के साथ मिलकर बेच रहे अचार
नवीन वर्मा न्यू सीलमपुर स्थित एक सरकारी स्कूल में बतौर अतिथि शिक्षक के रुप में कार्यरत थे। गृहस्थी चलाने के लिए उनके पास पैसे खत्म हो गए थे। कई जगह हाथ-पैर मारे, लेकिन नौकरी नहीं मिली। पांच सदस्यों के परिवार को चलाने के लिए नवीन के पास और कोई चारा नहीं था। इसलिए उन्होंने अचार बेचना शुरू किया। इसके लिए उन्होंने पहले अपनी मां से अचार बनाना सीखा।
पारंपरिक तरीके से बनाते हैं अचार
नवीन के मुताबिक वो पारंपरिक तरीके से ही अचार बनाते है। इसके बाद फेसबुक, वाट्सएप व प्रचार-प्रसार के माध्यम से लोगों को अचार बेचते हैं। उन्होंने बताया कि हर बार अतिथि शिक्षकों को अपनी नौकरी बचाने के लिए जूझना पड़ता है। बार-बार नौकरी बचाने के लिए भागदौड़ करनी पड़ती। नवीन के मुताबिक अचार बेचकर ज्यादा पैसा तो नहीं बचते लेकिन घर चलाने के लिए किसी के आगे अब हाथ फैलाने जैसे हालात भी नहीं हैं। वो कहते है कि अब उन्हें इंतजार है कि जल्द ही उन्हें वापस नौकरी में रखा जाए और वो छात्रों को पढ़ा सकें।
सब्जी बेच कर परिवार का पाल रहे पेट
सुल्तानपुरी स्थित सर्वोदय बाल विद्यालय में अंग्रेजी के शिक्षक रहे वजीर सिंह की कहानी भी कुछ ऐसी है। आर्थिक संकट के चलते वजीर सब्जी बेचकर अपनी रोजी-रोटी चलाने को मजबूर है। उनको भी आठ मई के बाद से वेतन नहीं मिल रहा था और तबसे वो बेरोजगार हैं। उन्होंने कहा कि शुरुआत में कई छात्रों के अभिभावकों से और आस-पड़ोस के लोगो से उनके बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने की बात की। लेकिन, कोरोना के चलते कोई भी न घर भेजने और न बुलाने को तैयार था। मजबूरन उन्होंने दो हजार रुपए देकर किराए पर ठेला लेकर सब्जी बेचना शुरू किया।
मास्टर्स और बीएड की डिग्री के बावजूद पैसे-पैसे के लिए मोहताज
पांच लोगों के परिवार वाले वजीर सिंह के पास अंग्रेजी में मास्टर्स और बीएड की डिग्री है। वह परिवार में एकमात्र कमाने वाले हैं। उन्होंने कहा कि कई बार हमें काम के लिए बुलाया जाता था बिना वेतन दिए निकाल दिया। जब भी कोई नई भर्ती, स्थानांतरण या पदोन्नति होती है, अतिथि शिक्षक अपने कर्तव्यों से मुक्त हो जाते हैं। एक तरह से हर दिन, अतिथि शिक्षक अपनी नौकरी खोने के भय के साथ जीते हैं।