गुड़िया के पिता बोले, दरिंदगी याद कर कांप उठती है रूह, जल्द मिलना चाहिए था न्याय
15 अप्रैल 2013 को बच्ची के साथ मनोज और प्रदीप ने गैंगरेप किया था। वहीं 17 अप्रैल को 40 घंटे बाद बच्ची को कमरे से निकाला गया। इस घटना से पूरा देश हिल गया था।
नई दिल्ली [राहुल चौहान]। गुड़िया दुष्कर्म कांड में आरोपितों को दोषी ठहराए जाने के बाद पीड़िता के पिता और चाचा दोनों ने खुशी जताई। साथ ही उन्होंने कहा कि हमें न्याय तो मिला लेकिन इसमें काफी समय लग गया। हम दोषियों के लिए फांसी की सजा की उम्मीद करते हैं। यह हमारे देश की लचर कानून व्यवस्था को बताता है। इस केस में हमें दो साल में न्याय मिलना चाहिए था, लेकिन सात साल लग गए।
न्याय व्यवस्था में हो सुधार
इसमें सुधार होना चाहिए। पीड़िता के पिता ने आगे कहा कि हम लोग अपनी बेटी के सामने कभी इस घटना का जिक्र नहीं करते हैं। उसके साथ दोषियों ने काफी दरिंदगी की थी जिसकी वजह से उसे डेढ़ महीने तक एम्स में रहना पड़ा और पूरी तरह सही होने में एक साल का वक्त लग गया।
अस्पताल में हुई कई सर्जरी
अस्पताल में भर्ती रहने के दौरान उसकी कई सर्जरी की गई थीं। सर्जरी में डॉक्टर ने पीड़िता के शरीर से एक मोमबत्ती के तीन टुकड़े, एक तेल की शीशी भी निकाली थी, इसलिए हम नहीं चाहते कि उसके सामने ऐसी कोई बात की जाए। वह अब इस घटना को भूल चुकी है। आज जब मैं कोर्ट के लिए निकला तो उसने मुझसे पूछा कि आप कहां जा रहे हो तो मैंने उसे बताया कि मैं दिल्ली जा रहा हूं। उसके बाद वह स्कूल चली गई।
पांचवीं कक्षा में पढ़ती
अब वह 5वीं क्लास में पढ़ती है। उसकी पढ़ाई का सारा खर्चा बचपन बचाओ आंदोलन संस्था उठाती है। इस केस में मेरी संस्था और सामाजिक कार्यकर्ता योगिता सिंह ने काफी मदद की। इन सभी के सहयोग से मैं इस लड़ाई को लड़ पाया।
गुड़िया गैंगरेप कांड में कब क्या हुआ
- 15 अप्रैल 2013 को बच्ची के साथ मनोज और प्रदीप ने किया गैंगरेप
- 17 अप्रैल को 40 घंटे बाद बच्ची को कमरे से निकाला गया
- 20 अप्रैल को पुलिस ने मनोज को बिहार के मुजफ्फरपुर से गिरफ्तार किया
- 22 अप्रैल को पुलिस ने प्रदीप को बिहार के दरभंगा से गिरफ्तार किया
- 24 मई को दिल्ली पुलिस ने आरोपितों के खिलाफ चार्जशीट दाखिल की
- 11 जुलाई को कोर्ट ने आरोपितों के खिलाफ एक नाबालिग के साथ बलात्कार, अप्राकृतिक अपराध, अपहरण, हत्या का प्रयास, सबूतों को नष्ट करना और आईपीसी के तहत गलत इरादे से बंदी बनाने और गलत बयान देने को लेकर पॉक्सो अधिनियम के तहत यौन उत्पीड़न के आरोप तय किए
- 21 मार्च 2014 को आरोपित प्रदीप ने घटना के समय खुद के नाबालिग होने का दावा किया
- 12 अप्रैल 2017 को अदालत ने प्रदीप को किशोर घोषित कर मामले को किशोर न्याय बोर्ड को ट्रांसफर किया
- 2018 में दिल्ली हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट को निर्देश दिया कि वह फिर से उसके किशोर होने के दावों की जांच करे, ट्रायल कोर्ट ने साफ किया कि उसने प्रदीप को किशोर घोषित नहीं किया
- 7 जनवरी 2020 को अदालत ने फैसला सुरक्षित रखा
- 18 जनवरी 2020 को अदालत ने मनोज और प्रदीप को यह कहते हुए दोषी ठहराया कि इस घटना ने समाज के सामूहिक विवेक को हिला दिया था।