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वेबिनार में फिल्म एक्ट्रेस हेमा मालिनी ने कहा- अपने अंदर भरोसा रखते हुए सफलता हासिल करें

सिनेमा में महिलाओं के योगदान पर हेमा मालिनी ने अपने जीवन के कई लम्हों को वेबिनार में मौजूद लोगों और इसे फेसबुक के जरिये लाइव देख रहे लोगों से साझा किया।

By Prateek KumarEdited By: Published: Sat, 25 Jul 2020 08:36 PM (IST)Updated: Sun, 26 Jul 2020 08:24 AM (IST)
वेबिनार में फिल्म एक्ट्रेस हेमा मालिनी ने कहा- अपने अंदर भरोसा रखते हुए सफलता हासिल करें
वेबिनार में फिल्म एक्ट्रेस हेमा मालिनी ने कहा- अपने अंदर भरोसा रखते हुए सफलता हासिल करें

नई दिल्ली [राहुल मानव]। जवाहरलाल नेहरू विश्विद्यालय (जेएनयू) की तरफ से लैंगिक पक्षपात एवं रूढ़िवादिता, लैंगिक समानता और महिला अधिकार विषय पर शनिवार को वेबिनार का किया गया। इसमें फिल्म अभिनेत्री एवं उत्तर प्रदेश के मथुरा से लोकसभा सांसद हेमा मालिनी, अमेरिका के साउथ डेकोटा विश्वविद्यालय से असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ अनामिका प्रसाद और अमेरिका के वाशिंगटन डीसी की जॉर्जटन यूनिवर्सिटी से डॉ अंजू प्रीत, जेएनयू के कुलपति प्रो.एम जगदीश कुमार और रेक्टर-3 प्रो. राणा प्रताप सिंह शामिल हुए।

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सिनेमा में महिलाओं के योगदान पर हेमा मालिनी ने अपने जीवन के कई लम्हों को वेबिनार में मौजूद लोगों और इसे फेसबुक के जरिये लाइव देख रहे लोगों से साझा किया। उन्होंने बताया कि उनकी माता-पिता, दो भाई और परिवार ने उनका हमेशा बहुत साथ दिया और आगे बढ़ने में सहायता दी। उन्होंने कहा कि जब वह 14 साल की थीं, तब दक्षिण फिल्म जगत में एक डायरेक्टर ने उनके नृत्य को देखकर उन्हें एक फिल्म के लिए अस्वीकार कर लिया था। लेकिन मैंने हार नहीं मानी और उम्मीद नहीं छोड़ी। मैंने संघर्ष किया और फिर मुझे मुंबई से कई फिल्मी किरदार के ऑफर आए। मुझे राज कपूर साहब के साथ सपनो के सौदागर फिल्म में काम करने का अवसर मिला। इसके बाद आगे बढ़ती गई। इसी तरह से मैंने ठान लिया था कि मुझे उस दक्षिण फिल्म जगत के निदेशक यह दिखाना था जिसने मुझे अस्वीकार किया था कि मैं काबिल हूं। इसी तरह से मैंने असफलता के बाद भी आगे बढ़ने का रास्ता तय किया। अपने अंदर भरोसा करते हुए सफलता हासिल करें। असफलता से डरें नहीं।

वहीं उन्होंने फिल्मों को मौजूदा हालात पर टिप्पणी करते हुए कहा कि ऐसा मौजूदा समय में फिल्म जगत में सुनने में आता है कि कुछ अभिनेत्रियां फिल्म का किरदार पाने के लिए प्रड्यूसर के दफ्तर में जाकर उनसे फिल्म के किरादार निभाने के लिए कहती हैं। उनकी जीहजूरी की जाती है, दूसरे किरदारों को छीनने की कोशिश की जाती है। मुझे लगता है कि इस तरह से किसी को भी नीचे गिरने की जरूरत नहीं है। अपनी मेहनत से किरदार हासिल करना चाहिए। मैंने जो भी फिल्में अपने जीवन में की हैं कि वह मेरे लिए लिखी गई थीं। मैं कभी भी दूसरी पसंद नहीं रही थी।

फिल्म जगत में भाई-भतीजावाद की बहस पर उन्होंने कहा कि हमारे जमाने में ऐसा नहीं होता था। अगर किरदार मुझे पसंद आता था तो मैं हा करती थीं। अगर पसंद नहीं आता था तो मना कर देती थी। लेकिन ऐसा भी हुआ है कि कई बार मैंने एक ही प्रड्यूसर के साथ पांच फिल्में भी कीं।

वहीं उन्होंने अपने वक्तवय में दिवंगत अभिनेता सुशांत सिंह राजपूत का जिक्र करते हुए अवसाद पर भी कहा कि आत्महत्या जैसा कदम बिल्कुल भी नहीं उठाना चाहिए।

समाज में समान अवसर देने के लिए नेतृत्व करना जरूरी - डॉ अनामिका

वहीं डॉ अनामिका प्रसाद ने अपने निजी जीवन का उदाहरण देते हुए कहा कि स्नातक के दिनों में लड़कों के छात्रावास में लड़कियों के छात्रावास से ज्यादा सुविधाएं हुआ करती थीं। लेकिन मुझे लगता है कि अब हमें मौजूदा समय में नेतृत्व का अलग नजरिया जरूर अपनाना चाहिए। समाज में महिला व पुरुष को समान अवसर देने के लिए कार्य करना महत्व रखता है। मैं यह भी कहना चाहूंगी कि किसी भी अनुसंधान प्रोजेक्ट के लिए महिला शोधकर्ताओं का चयन करते वक्त यह ना देखा जाए कि वह शादीशुदा है, या शादी होने के बाद आगे परिवारीक जिम्मेदारी आ जाएंगे। इस तरह से इनका चयन करना ऊचित नहीं है। शोध प्रोजेक्ट के लिए लड़कियों को बेहतर प्रोत्साहन देना परिवार, उनके शिक्षक द्वारा देना बहुत अहम है।

बॉयोमेडिकल साइंस एंड रिसर्च में दिया है महिलाओं ने योगदान - डॉ अंजू प्रीत

डॉ अंजू प्रीत ने बॉयोमेडिकल साइंस एंड रिसर्च के क्षेत्र में महिलाओं के योगदान पर कहा कि एक समय ऐसा था कि महिलाएं समाज में कई कार्य नहीं कर पाती थीं। लेकिन मौजूदा स्थिति में बॉयोमेडिकल साइंस व रिसर्च में महिलाओं ने वैश्विक स्तर पर बहुत नाम कमाया है। उन्होंने कहा कि आनंदीबाई जोशी भारत की प्रथम महिला डॉक्टर वर्ष 1885 में बनी थीं। वहीं कॉर्डियोलॉजी की भगवान कही जाने वाली डॉ शिवारमा कृष्णा अय्यर पदमावती को उनके कार्य के लिए 1992 में भारत सरकार से पद्म-विभूषण भी प्राप्त हुआ है। वह पिछले 60 सालों से सक्रिय डॉक्टर हैं। अभी भी वह 103 वर्ष की उम्र में दिल्ली स्थित नेशनल हार्ट इंस्टिट्यूट की निदेशक के तौर पर काम कर रही हैं। उन्होंने कहा कि स्कूली छात्राओं को आगे और भी बेहतर नेतृत्व के लिए जेएनयू समेत अन्य शिक्षण संस्थानों में ग्रीष्मकालीन अवधि में कुछ पाठ्यक्रम संचालन करने चाहिए। जिससे इन्हें काफी कुछ सीखने को मिले।


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