सुनसान हैं रास्ते और खौफ में आधी आबादी, सुरक्षा तो दूर यहां रोशनी का भी नहीं है इंतजाम
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बड़ी संख्या में महिलाएं छात्राएं युवतियां रोजाना इलाके में छेड़छाड़ का सामना करती हैं।
जागरण संवाददाता, नई दिल्ली। हैदराबाद व उन्नाव में हुई खौफनाक वारदात के बावजूद व्यवस्था है कि सुधरती दिखाई नहीं दे रही है। राजधानी के प्रमुख स्टेशनों को छोड़ दिया जाए तो बस स्टैंड से लेकर रेलवे स्टेशन तक कहीं भी सुरक्षा तो दूर रोशनी तक के इंतजाम दिखाई नहीं देते हैं। ऐसे में सुबह जल्दी व देर रात में चहल-पहल कम होने का फायदा उठाकर मनचले हर जगह खड़े हो जाते हैं। नतीजतन स्कूल व र्कोंचग जाने वाली छात्राओं के साथ ही कामकाजी महिलाओं को इन असामाजिक तत्वों की फब्तियों का सामना करना पड़ता है। छेड़छाड़ व मानसिक प्रताड़ना से तंग आकर कई बार तो आधी आबादी को अपना रास्ता बदलने या फिर रोजगार से तौबा करने तक की नौबत आ जाती है।
राजधानी में सुबह के समय अन्य शहर व कस्बों से बड़ी संख्या में महिलाएं छात्राएं व युवतियां लोकल ट्रेन, ईएमयू और बसों से आवाजाही करती हैं। इनमें कामकाजी महिलाओं से लेकर पढ़ाई करने वाली युवतियां भी शामिल हैं। शिवाजी ब्रिज और तिलक ब्रिज रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा नाम की कोई व्यवस्था नहीं है। यहां प्लेटफार्म से लेकर प्रवेश द्वार और गेट के बाहर तक पुलिस दिखाई नहीं पड़ी। यहां आने वाली युवतियों और महिलाओं का कहना है कि सुबह तड़के की बात छोड़िये दिन में भी यहां सीढ़ियों पर मनचले युवक देखे जा सकते हैं। यह लोग आते-जाते समय युवतियों पर टिप्पणी करने के साथ ही ओछी हरकतें भी करते हैं।
लोधी रोड क्रॉसिंग के बस स्टैंड पर अकेले बैठी महिला। यहां आसपास कोई भी सुरक्षाकर्मी दिखाई नहीं दिया, ऐसे में यहां अपराध की आशंका बनी रहती है।
सुबह जल्दी जाने वाली लोकल ट्रेनों में भी यही हाल दिखाई दिया। प्लेटफार्म या ट्रेन के अंदर सुरक्षा के कोई इंतजाम दिखाई नहीं दिए। ऐसे में कब कौन छेड़छाड़ का शिकार हो जाए, इसका भगवान ही मालिक है। महिलाएं व छात्राएं समूह में चलती हैं, तब भी उन्हें कई बार छेड़छाड़ और फब्तियों का सामना करना पड़ता है। मदद की उम्मीद कहीं दिखाई नहीं देती है। इसकी वजह से वह डरी सहमी अपने गंतव्य की तरफ बढ़ जाती हैं। बस स्टैंड की हालत तो इससे भी बदतर है, यहां तो घंटों गश्ती पुलिस तक दिखाई नहीं देती है।
कामकाजी महिलाओं ने बताया सुबह जल्दी बस पकड़ने वह जाती हैं, तो मनचले इन स्टैंडों के आसपास खड़े रहते हैं। इसके चलते डर तो लगता है, लेकिन क्या करें मजबूरी है। इसलिए सबकुछ अनदेखा करके जाना पड़ता है। कई बस स्टैंड तो ऐसे हैं, जहां न तो पुलिस दिखाई देती है, न ही स्ट्रीट लाइट की पर्याप्त व्यवस्था है। लोधी रोड व इसके आसपास के कई बस स्टैंड पर भी महिलाएं अकेले ही खड़ी दिखाई पड़ीं। कहीं भी सुरक्षा के कोई इंतजाम नहीं मिले। यहां पुलिस की गैरमौजूदगी में कई बार विषम परिस्थिति का सामना करना पड़ता है।
रिंग रोड पर आइपी पावर स्टेशन के बस स्टैंड पर रोशनी कम है, इससे यहां महिलाओं व युवतियों के साथ झपटमारी का भी खतरा रहता है। जागरण
पश्चिमी दिल्ली क्षेत्र में छोटे रेलवे स्टेशन पर सुरक्षा के पुख्ता इंतजाम नहीं है। इलाके के पालम रेलवे स्टेशन पर एक भी सुरक्षाकर्मी नहीं दिखाई दिया। शाहबाद मोहम्मदपुर रेलवे स्टेशन पर भी सुरक्षा के इंतजाम नहीं हैं। इन स्टेशनों पर कोई मेटल डिटेक्टर भी नहीं है। ऐसे में असामाजिक तत्व बिना किसी बाधा के यहां जा सकते हैं। पंखा रोड पर जनकपुरी, सी-1 बस स्टैंड पर रोशनी की कोई व्यवस्था नहीं है। बाहरी रिंग रोड पर कृष्णा पार्क एक्सटेंशन के पास बने बस स्टैंड पर भी रोशनी नहीं रहती है। इसके अलावा नजफगढ़ रोड पर भी उजाले के लिए कोई इंतजाम नहीं हैं। बाहरी दिल्ली इलाके में स्कूल कॉलेज की छात्राओं, कामकाजी महिलाओं के लिए अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए रेल सुगम साधन हैं।
खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाली बड़ी संख्या में महिलाएं छात्राएं, युवतियां रोजाना इलाके में छेड़छाड़ का सामना करती हैं। नरेला, होलंबी, खेड़ा, बादली, आदर्श नगर, आजादपुर रेलवे स्टेशनों पर पुलिस की मौजूदगी तो दूर, रोशनी तक का प्रबंध नहीं है। स्टेशन परिसर के बाहर भी ऐसी ही स्थिति है। इन स्टेशनों के बाहर नशेड़ियों, झपटमारों व असामाजिक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है।