इस कलाकार की बेजोड़ कला पर खिंचे चले आए फ्रांस के राष्ट्रपति, बोल उठे सुबोध गुप्ता
कला की जुबां नहीं होती है, भाव होता है। एक कलाकार के भीतर अपनी कला के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए।
गुरुग्राम [ आदित्य राज ]। कला की जुबां नहीं होती है, भाव होता है। एक कलाकार के भीतर अपनी कला के प्रति समर्पण भाव होना चाहिए। कला के क्षेत्र में नहीं नहीं बल्कि किसी भी क्षेत्र में जब कोई भी कार्य समर्पित भाव से किया जाता है, फिर उसके कद्रदान अपने आप ही सामने आ जाते हैं। उन्हें कहीं कद्रदान को ढूंढने नहीं जाना पड़ता है बल्कि वो अपने आप ही खिंचे चले आते हैं।
प्रश्न केवल एक ही है कि आप अपनी कला के प्रति कितने समर्पित हैं। ये विचार इंस्टॉलेशन आर्ट में विश्व में पहचान बनाने वाले जाने माने आर्टिस्ट सुबोध गुप्ता ने सोमवार को दैनिक जागरण से खास बातचीत में कही। उन्होंने कहा कि फ्रांस के राष्ट्रपति गुरुग्राम के आइडीसी स्थित उनकी आर्ट गैलरी देखने के लिए क्यों पहुंचे, इसका जवाब तो वही दे सकते हैं। किस कला को कौन कितना महसूस करता है, वह वही बता सकता है।
इतना तय है कि फ्रांस के राष्ट्रपति कला के कद्रदान हैं। वे एक कद्रदान के रूप में कला को देखने के लिए पहुंचे थे न कि राष्ट्रपति के रूप में। जब मन से कोई चीज बनाई जाती है तो उसमें आकर्षण होता है। जिस चीज में आकर्षण होता है उस चीज से कद्रदान दूर रह ही नहीं सकते। चाहे किसी भी पद पर बैठा हुआ व्यक्ति ही क्यों न हो।
अपनी संस्कृति से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए
गुप्ता कहते हैं कि चाहे आप जितनी भी ऊंचाई क्यों न प्राप्त कर लें, अपनी संस्कृति से मुंह नहीं मोड़ना चाहिए। यह बात एक कलाकार के लिए सबसे अधिक मायने रखती है। अपनी संस्कृति के प्रति जिस कलाकार का लगाव रहेगा वह कभी पीछे मुड़कर नहीं देख सकता। उनकी कला में अपनी संस्कृति की झलक होती है।
भारतीय संस्कृति की पूरी दुनिया मुरीद है। आवश्यकता है उनके सामने बेहतर तरीके से प्रस्तुत करने की। वे कहते हैं कि सही मायने में उन्होंने 1996 से इंस्टॉलेशन कला के ऊपर काम करना शुरू किया। उनकी जिंदगी कब और किस तरह बदलती चली गई, यह पता नहीं चला।